अर्चना कुमारी। जवाहर लाल नेहरू ( जेएनयू ) कैंपस में एक अजब सा माहौल तब दिखा जब हर तरफ लाशें ही लाशें नजर आने लगी। दरअसल मौका था द कश्मीर फाइल्स के स्क्रीनिंग का । इस तरह की तस्वीर देखकर कोई भी सन्न रह गया हालांकि, लाश की डमी के तौर पर रखा गया था।
बृहस्पतिवार देर शाम कैंपस में “द कश्मीर फाइल” फिल्म का स्क्रीनिंग रखा गया था। फिल्म के स्क्रीनिंग के आयोजन को लेकर इस तरह का माहौल बनाया गया था। लेकिन इस तरह की तस्वीर को देखकर हर कोई हैरान था। छात्र-छात्राओं ने इस दर्द को महसूस किया और बताया कि आयोजकों को इस हिसाब से इस फिल्म को दिखाने और ऐसे माहौल को दिखाने का मकसद यही था कि भारत की सरकार और भारत में रहने वाला हर इंसान कश्मीरी पंडितों के साथ 1990 मे जो कश्मीर में हुआ, वह उसे भूले नहीं।
बताया जाता है कि कश्मीरी पंडित के कई संस्थाओं के साथ-साथ एबीवीपी द्वारा इस पूरे कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। जिसमें हर तस्वीर की अपनी एक अलग दर्दनाक कहानी नजर आ रही थी। इस तरह के कार्यक्रम के आयोजकों में से एक यूथ फ़ॉर पेनन कश्मीर के दिगंबर रैना ने बताया की जब 1990 में कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को निकाला गया तो वह 14 साल के थे।
कश्मीरी पंडितों के दर्द की दास्तान यहां पर बताने और दिखाने की कोशिश की गई। कई ऐसे कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से हत्या करके उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया, जिसकी आज तक ना कोई एफआईआर ना कोई जांच हुई। फिल्म के जरिए इस दर्द को महसूस करने की कोशिश की गई और यहां के छात्र छात्राओं ने इसकी सराहना की है।
इस मौके पर जेएनयू एबीवीपी इकाई के अध्यक्ष रोहित ने कहा कि पहली बार इस तरह की सफल कोशिश की गई है। जिसमें 400 से ज्यादा छात्रों ने आकर द कश्मीर फाइल फिल्म को देखा। उनका कहना था कि मूवी के माध्यम से छात्रों को समझाने की कोशिश की गई है इस तरह की कोशिश से संदेश दिल तक जाता है ।
एबीवीपी जेएनयू के सेक्रेटरी उमेश चंद्र अजमेरा ने कहा कि एक समय ऐसा भी था, जब यहां जेएनयू केंपस में भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाए गए। हम लोगों ने यह दिखाकर इस तरह के नेक्सेस को एक्सपोज करने की छोटी सी कोशिश की है। किस तरह से हिंदू को कश्मीर में मारा गया था। इसके बाद पैनल डिस्कशन भी किया गया। पीड़ित परिवारों के मन की बात को सुनने की कोशिश की गई। इस मौके पर सभी छात्र छात्राओं ने कश्मीरी पंडितों के दर्द को समझा