आज विश्व गौरैया दिवस है याद है न कि भूल गए। याद इसलिए लिखा क्योंकि अब मात्र यादों में ही शेष है प्रकृति की वह अमूल्य धरोहर जो सहज एक छलांग में एक घर की एक मुंडेर से दूसरी पर पहुंच जाती थी।
हां जब कभी हल्द्वानी जाता हूं तो दिख जाती है मेरे घर के आंगन में अपने छोटे छोटे परों से फुदकती हुई मेरे एहसास को शब्दों में ढालने के लिए। कुछ पंक्तियां विश्व गौरैया दिवस पर! शुभकामनाएं…
गौरैया रोज आती थी
सुबह सवेरे ही,
मेरे आंगन में,
चहल कदमी करने!
भोर की नींद में खलल थी
पर अच्छा लगता था,
चहचहाना उनका!
किन्तु!
अब नींद पर पहरा है मेरी!
वे स्वर नहीं जागते मुझको!
संदेह है प्रकृति पर!
मुझे जगाना नहीं चाहती
अहोभाग्य! मेरा,
उठने के लिए कभी मैंने,
कृत्रिम सहारा नहीं लिया,
प्रकृति सदा से ही रही है,
मेरी मार्गदर्शक!
किन्तु!
वह मधुर शोर,
न जाने कहां गुम हो गया?
इंसानों की भीड़ में!
वह बात अलग है कि
गुटूरगूं कबूतर की कभी,
पड़ती है कानों में मेरे!
किन्तु, मुझे तो सुनना है
उसी गौरैया का स्वर
जो देता था,
मेरे स्वप्न को विराम…