संदीप देव। कुल 18 पुराणों में मेरे पास वायुपुराण को छोड़ कर अन्य सभी पुराण था। चूंकि गीता प्रेस ने इसे छापना बंद कर दिया है तो इसका मिलना कठिन होता जा रहा था।
फिर मेरी टीम ने चौखंबा से बात की। अनेक आग्रह के उपरांत उन्होंने इसे इस वर्ष छापा है, और बहुत ही सुंदर छपाई के साथ छापा है। अब मेरे पास सभी 18 पुराण उपलब्ध हैं।
इस समय वायुपुराण १२००० श्लोकों में ही उपलब्ध हैं । पूर्वकाल में इसकी श्लोक संख्या अत्याधिक थी।
असल में वायु पुराण ही शिवपुराण का मूल स्रोत है। इसे वायुदेव द्वारा कहे जाने के कारण वायुपुराण नाम दिया गया है।
वायुपुराण में इस भूमंडल का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसी के साथ ही ऊर्ध्वस्थ लोकों का भुवन विन्यास एवं ज्योतिष का वर्णन भी इसमें उपलब्ध है।
इसमें वर्णित पाशुपतयोग का वर्णन तो अत्यन्त अलौकिक है।
मैं ज्यों-ज्यों पढ़ता जाऊंगा, आप सभी को महत्वपूर्ण बिंदुओं से परिचित कराता जाऊंगा। धन्यवाद।
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