संदीप देव। आज से करीब ढाई साल पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ख्वाजा इफ्तिखार अहमद की इस पुस्तक ‘The Meeting of Minds: A Bridging Initiative’ का लोकार्पण किया था। ख्वाजा इफ्तिखार RSS के इन साइडर हैं, जिसे वह स्वीकारते हैं।
इस पुस्तक को लिखवाने में बड़ी भूमिका संघ के ही ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ प्रमुख इंद्रेश कुमार की है। इसके लोकार्पण पर मोहन भागवत ने कहा था कि इस पुस्तक को पूरा समय लेकर उन्होंने पढ़ा है। अर्थात् हिंदू-मुस्लिम के बीच के विवाद को लेकर एक तरह से इस पुस्तक में लिखी बातें संघ की ऑफिशियल स्वीकृत लाईन है। मोहन भागवत ने इस पुस्तक के लोकार्पण पर हिंदू-मुस्लिम के ‘समान DNA’ की थ्योरी ही दोहराई थी।
यह पुस्तक हर संघी और हर हिंदू को पढ़ना चाहिए। हालांकि यह थोड़ी मोटी और अंग्रेजी में है, परंतु सामान्य अंग्रेजी ही है, इसलिए समझ में आ जाएगी।
इस पुस्तक पर इतनी चर्चा के बाद आखिरकार मैंने इसे मंगवाया और पढ़ा। पढ़कर मेरे पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई, क्योंकि जो हिंदू समाज संघ के भरोसे बैठा है, वह संघ ही हिंदुओं को उसका धर्म छुड़वाने की दिशा में आगे बढ़ता दिख रहा है! जितना मैं इसे अभी तक पढ़ पाया हूं, उसके अनुसार इस पुस्तक का निष्कर्ष कुछ इस प्रकार है:-
१) जो भी फैसले होंगे, वह संविधान और शरिया से तय होंगे। हिंदू धर्म ग्रंथों की कोई भूमिका ही नहीं है।
२) हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा समाज में है ही नहीं, यह मूलतः संघ और इस्लाम के बीच है। अर्थात् संघ के बाहर के हिंदुओं को हिंदू माना ही नहीं गया है।
३) सर संघ चालक संघियों के पिता हैं, इसलिए उनके कहे को सभी मानें और मुस्लिमों के प्रति कुछ भी बोलने से बचे।
४) समाज में वैमनस्यता हिंदू के फ्रिंज एलिमेंट उत्पन्न करते हैं, हां कभी-कभी इस्लामी कट्टरपंथी और सीमा पार वालों की भी भूमिका होती है।
५) संघ और भागवत के कहे अनुसार सभी भारतीय समुदाय ‘हिंदू’ पहचान अपनाने को तैयार हैं, लेकिन यह तब होगा जब हिंदू अपनी हिंदू रूपी धार्मिक पहचान को छोड़ने के लिए तैयार हों। आपको ज्ञात हो कि “सभी भारतीय हिंदू हैं”, यह मोहन भागवत और संघियों की फेवरेट लाईन है। इफ़्तिख़ार के अनुसार, इसे मानने में सबसे बड़ी बाधा धार्मिक हिंदू हैं।
६) हिंदुओं को सरकारी फार्म के कॉलम आदि में उनकी धार्मिक पहचान के लिए सनातन धर्म दे दिया जाए, फिर मुस्लिम एवं अन्य समुदाय भी खुद को ‘हिंदू’ कह लेंगे।
७) इसमें बड़ी बारीकी से हिंदुओं को हिंदू धर्म अनुष्ठान छोड़ देना चाहिए, इसके लिए संघ और मुस्लिम में एक सहमति का मसौदा दिखता है।
८) इस पुस्तक में यह स्थापित करने का प्रयास है कि सनातन धर्म से अलग हिंदुओं की पहचान बने, तब सभी मुस्लिम भी अपने आप को हिंदू कह सकेंगे।
९) इस पुस्तक की मान्यता यदि मान ली गई तो विश्व में हिंदुओं की जो स्थापित धार्मिक पहचान है, वही मिट जाएगी।
१०) यह पूरी पुस्तक बड़ी ही चालाकी से हिंदुओं से उनकी हिंदू पहचान छीनने, धार्मिक हिंदुओं को फ्रिंज एलिमेंट और संघ व मुसलमान के बीच के समझौते में सबसे बड़ी बाधा मानने एवं इस्लामी मान्यता को सर्वोपरी रखने को स्थापित करती है, जिसमें संघ नेतृत्व की पूरी की पूरी सहमति है। संघ के स्वयंसेवकों के लिए ख्वाजा का निर्देश है कि वह केवल मोहन भागवत के कहे को ही ‘धर्म वाक्य’ मान कर चलें।
११) मैंने जो बार-बार कहा है कि धार्मिक, पौराणिक और आनुष्ठानिक हिंदू, संघ और मुस्लिम समाज के बीच ब्रिज बनने में सबसे बड़ी बाधा हैं, वह इस पुस्तक से पूरी तरह स्थापित और प्रमाणित होती है।
मैंने अपने लिए इस पुस्तक को मंगवाने के साथ अन्य हिंदुओं के लिए भी इसे कपोत पर उपलब्ध करा दिया है। लिंक नीचे है। हां, पढ़ने से पहले ध्यान रखें कि लच्छेदार भाषा में राष्ट्र के लिए हिंदू धर्म और पहचान को गौण करने के लिए बड़े ही सुंदर-सुंदर (कु) तर्क गढ़े गये हैं! अतः सावधानी से पढ़ें।
संघ का पूरा इतिहास भी इसमें मुस्लिम प्वाइंट आफ व्यू से लिखा गया है। यह पुस्तक हर तरह से स्थापित करती है कि मुस्लिम अपने शरिया से चलेगा और हिंदू भारतीय संविधान से चले तो ही समाज में एका हो पाएगा और यह राष्ट्र बचा रहेगा, अतः हिंदुओं को केवल शास्त्रविहीन संघ की बात सुनकर ही आगे बढ़ना चाहिए। धन्यवाद। #SandeepDeo
पुस्तक प्राप्ति लिंक– https://www.kapot.in/product/the-meeting-of-minds/