संदीप देव। आज की पुस्तक श्रृंखला: यह 19वीं सदी की बात है। भारत के उत्तर हिस्से को दक्षिण हिस्से से अलग करने के लिए एक ईसाई बिशप को चर्च ने तैयार किया। उनका नाम बिशप रॉबर्ट कॉल्डवेल था। इसी ने द्रविड़ नस्ल का आविष्कार किया।
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उसी समय(1867 के आसपास) अलेक्जेंडर कैम्पबेल और मद्रास के तत्कालीन कलेक्टर फ्रांसिस वाइट एलिस को तमिल भाषा को संस्कृत भाषा से अलग करने के काम पर लगाया गया। एलिस ने प्रकल्पना गढ़ी की तमिल हिब्रू से निकली है। आज तमिल वर्णमाला से संस्कृत वर्णमाला को खुरच कर निकालने के कारण तमिल वर्णमाला में केवल 18 वर्ण हैं।
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अगले पड़ाव के रूप में स्कॉटिश मिशनरी ने तमिलों पर आर्यों के आक्रमण की थ्योरी को थोपने और उसे साबित करने के लिए ‘आदिम सिद्धांत’ को सामने रखा। जिसे कॉल्डवेल ने ‘द्रविड़ भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण लिखकर एक आधार प्रदान करने का काम किया।
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भाषा के बाद अब आगे तमिलों को सनातन हिन्दू धर्म और संस्कृति से अलग करना था। इसके लिए मिशनरियों ने तमिल कला रूपों को हिंदू की जगह ईसाई कला रूपों नजदीक दिखाया गया, तमिल भक्ति साहित्य को शेष भारत के साहित्य से काटा गया, शैव सिद्धांत की मनमानी व्याख्या करते हुए इसे अब्राहमिकों के एकेश्वरवाद के करीब दिखाया गया, ब्राह्मणों द्वारा तमिलों के शोषण की नकली कहानियां गढ़ी गई और तमिल परंपराओं का अ-सनातनीकरण, अ-भारतीयकरण किया गया।
इस सबका उद्देश्य ईसाई धर्मांतरण और एक अलग ईसायत से भरे तमिल राष्ट्र की स्थापना का आधार तैयार करना था।
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20वीं सदी में मिशनरियों ने अपने इस पूरे मिशन की बागडोर पेरियार व अन्नादुरै जैसे भारतीयों को सौंपी गई। पेरियार ने हिंदू देवी-देवताओं और ब्राह्मणों को जमकर गालियां दी और अन्नादुरै ने अलग द्रविड़नाडु देश का राग 1962 के युद्ध तक अलापने का कार्य किया।
आधुनिक काल में अमेरिका खुफिया एजेंसी CIA ने इसकी पूरी बागडोर संभाली और येल जैसे विश्वविद्यालय से इसे बौद्धिक आधार प्रदान किय गया। अन्नादुरै को अमेरिका ने 1968 में इसके लिए आमंत्रित भी किया।
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इसी द्रविड़ आंदोलन की कोख से निकले करुणानिधि, उसके बेटे स्टालिन और पोते उदय स्टालिन का जो सनातन विरोधी चेहरा आप सब देखते रहे हैं, उसके पीछे की सारी राजनीति और साजिश को 19वीं शताब्दी से ही परत-दर-परत समझने के लिए राजीव मल्होत्रा की ‘भारत विखंडन’ से अच्छी कोई पुस्तक नहीं है। प्रसन्नता है कि इसका हिंदी अनुवाद मेरे दो मित्र देवेंद्र सिंह और Suresh Chiplunkar ji ने किया है।
आप इस पुस्तक को कपोत के निम्न लिंक से भी प्राप्त कर सकते हैं। धन्यवाद।
पुस्तक प्राप्ति लिंक: https://www.kapot.in/product/bharat-vikhandan/