जम्मू-कश्मीर के कठुआ और उत्तर प्रदेश के उन्नाव में हुए बलात्कार के मामले पर हो रहे हंगामे का पूरा देश साक्षी है। दुर्भाग्य की बात है कि पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए हंगामा करना पड़ता है। और इस हंगामें के बीच एक खास वर्ग अपना हित साधता दिखता है। इसी संदर्भ में मैं आज आपको बलात्कार के उन दो मामलों के बारे में बताने जा रहा हूं, जो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और गांधी परिवार के सबसे वफादार सिपहसालार माने जाने वाला अहमद पटेल से जुडा है। आपको ये भी बताऊंगा कि आज अपना हित साधने के लिए जो शोर मचा रहे हैं वही तबका किस तरह चुप्पी साध लिया था। जब राहुल गांधी और अहमद पटेल पर बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे तो सारी मीडिया ने मिलकर तय किया था कि हम इसको नहीं छापेंगे? आज वही मीडिया बलात्कारके पुराने मामले उठाकर दंगा कराने और कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के मिशन पर है?
मुख्य बिंदु
* सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट तक पहुंचा था मामला, फिर अचानक वापस ले लिए गए दोनों केस
* दोनों मामले को मीडिया ने दबा दिया, टीवी चैनलों ने तो इस मामले में चुप्पी साध रखी थी
* दोनों मामलों ने मीडिया, सिविल सोसाइटी और नारीवादियों की असलियत की पोल खोल दी
मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चलने वाली यूपीए सरकार के मध्य यानी साल 2007 में राहुल गांधी को बलात्कार के आरोप का सामना करना पड़ा था। बलात्कार का मामला हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। संयोग देखिए एक मामला 2006 का था तो दूसरा 2007का। 2006 में सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल के खिलाफ एक महिला से बलात्कार करने का आरोप लगा था। उनका मामला भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। लेकिन रहस्यमय ढंग से दोनों ही मामलों में आवेदकों ने सुप्रीम कोर्ट से अपना आरोप या तो वापस ले लिया या फिर उन्हें इस मामले से हाथ खीचना पड़ा। मजे की बात ये रही कि इन दो बड़े लोगों के खिलाफ लगे बलात्कार के आरोप मामले में मीडिया हो या सिविल सोसाइटी या नारीवादी सभी को सांप सूंघ गया था। जो आज शोर मचा रहे हैं उनमें से किसी की आवाज उठाने की हिम्मत नहीं पड़ी थी। अधिकांश मीडिया घरानों ने इस संदर्भ में तब खबर छापने की हिम्मत दिखाई जब याचिकाकर्ताओं ने अपना आरोप वापस ले लिया और केस को खत्म कर दिया गया।
कोर्ट में केस चल रहा था बलात्कार के मामले का, लेकिन राहुल गांधी के वकील पीपी राव ने जो तर्क दिया वह और भी हास्यास्पद था। राहुल गांधी पर लगे रेप के आरोप के मामले में कोर्ट में तीन दिनों तक बहस हुई। तीनों दिन उनके वकील पीपी राव ने एक ही दलील पेश की कि राहुल गांधी के खिलाफ हुई शिकायत राजनीतिक साजिश है, जो उनके राजनीतिक कैरियर को अवरुद्ध करने के लिए की गई है। सीबीआई ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में बलात्कार के आरोप को नकार दिया था।
राहुल गांधी पर लगे बलात्कार के आरोप का घटनाक्रम
साल 2007 की शुरुआत का समय था। कई ब्लॉगरों ने राहुल गांधी पर लगे बलात्कार के आरोप के बारे में लिखा। उन लोगों ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने अपने कुछ दोस्तों के साथ अमेठी के सर्किट हाउस में 3 दिसंबर, 2006 को कांग्रेस के एक स्थानीय नेता सुकन्या देवी की बेटी के साथ बलात्कार किया। ब्लॉग के मुताबिक लड़की और उसके अभिभावक इस संदर्भ में सोनिया गांधी से शिकायत करने दिल्ली आए, लेकिन उन्हें गायब कर दिया गया। उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और वहां विधानसभा चुनाव होने जा रहा था। ताज्जुब की बात है मार्च 2011 तक इस मामले से जुड़ी कोई खबर कहीं न तो छपी न ही किसी चैनल में उसे जगह मिली। लेकिन समाजवादी पार्टी के एक विधायक किशोर सम्रिते ने सभी को पछाड़ दिया। उन्होंने मार्च 2011 में सुकन्या देवी और उसके परिवार के गायब होने के साथ ही बलात्कार के मामले में जांच की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला दायर कर दिया। एकल जज पीठ ने इस मामले को संज्ञान में लेकर राहुल गांधी, यूपी सरकार तथा पुलिस के खिलाफ नोटिस जारी कर दिया। इलाहाबाद कोर्ट से राहुल गांधी को नोटिस जारी होने को कई अखबारों ने बड़ी खबर के रूप में छापा लेकिन खबरिया चैनलों ने एकदम चुप्पी साध ली थी। अपनी याचिका में विधायक ने बताया था कि वे खुद सुकन्या के घर गए थे, लेकिन उनका घर खाली मिला। 2006 में दिल्ली जाने के बाद उनके गायब होने के बारे में पड़ोसियों तक को भी कुछ पता नहीं था।
लेकिन दो दिन के बाद ही अचानक एक नाटकीय घटनाक्रम सामने आया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के ही अलग दो जजों की एक बेंच के सामने कीर्ति नाम की एक लड़की प्रकट हो गई। लेकिन उन्होंने अपना नाम सुकन्या बताया। सुकन्या देवी के रूप में उन्होंने याचिकाकर्ता किशोर समरीतेके खिलाफ ही जांच की मांग कर दी। उन्होंने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि दूसरी बेंच के पास दायर याचिका में समाजवादी विधायक किशोर सम्रिते ने मेरे सम्मान को नुकसान पहुंचाने के लिए मेरा नाम जोड़ा है। इस मामले में विरोधी पक्ष को बिना सुने ही बेंच ने उसी दिन उन सारे ब्लॉगों के खिलाफ, जिनमें राहुल गांधी पर बलात्कार के आरोप के मामले छपे थे, सीबीआई जांच का आदेश दे दिया। इतना ही नहीं बेंच ने किशोर अम्रिते पर 50 लाख का जुर्माना ठोक दिया। इस प्रकार का आश्चर्यजनक फैसला आ जाने के बाद तो पहली बेंच द्वारा राहुल गांधी को जारी नोटिस खुद-ब-खुद निरस्त हो गया।
किशोर समरीते ने एक सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के डिविजन बेंच द्वारा कीर्ति सिंह जैसी अनजान महिला के आरोप पर दूसरे पक्ष को सुने बगैर 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाने जैसे अप्रत्याशित फैसले के खिलाफ याचिका दे दी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई को अधिकांश अखबारों ने कवर करना शुरू कर दिया लेकिन टीवी चैनल अपनी चुप्पी तोड़ने को तैयार नहीं हुआ। न्यूज चैनलों ने अपनी चुप्पी जारी रखी। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के डिविजन बेंच के फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2012 के मध्य इस मामले की सुनवाई शुरू कर दी।
लेकिन एक दिन अचानक ही किशोर समरीते ने भी अपनी ही याचिका से अपना हाथ खीच लिया। उन्होंने कोर्ट को बताया कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से इस मामले की कोई जानकारी नहीं थी। मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने शिकायत करने का दबाव दिया था। इस मामले में दिल्ली स्थित मुलायम सिंह यादव के घर पर चर्चा हुई थी। सम्रिते ने कोर्ट को बताया कि राहुल गांधी के खिलाफ उन्होंने मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की तरफ से ही याचिका दायर की थी। इसके बाद अक्टूबर 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के खिलाफ लगे बलात्कार के आरोप को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ये आरोप राजनीतिक उद्देश्य से लगाए गए थे। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट किशोर सम्रिते पर लगे 50 लाख के जुर्माने को भी घटाकर 10 लाख रुपये कर दिया।
अभी तक कई सवालों के नहीं मिले जवाब
इस घटनाक्रम के बाद सहज ही लोगों के मन में कई सवाल उठ सकते हैं। जन सवालों का आज तक जवाब नहीं मिल पाया है। पहला सवाल तो ये कि आखिर सुप्रीम कोर्ट में किशोर सम्रिते ने यू-टर्न क्यो लिया? और दूसरा ये कि अभी तक इस मामले पर पिता-पुत्र मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव कुछ बोले क्यों नहीं? इतना कुछ होने के बाद भी आखिर अखिलेश यादव ने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान उसी राहुल गांधी के साथ गठबंधन क्यों किया जिस पर वे बलात्कार के आरोप लगा चुके थे? राजनीति एक प्रकार का लेन-देन का खेल बन गई है, इसी कारण इस घटना की पूरी सच्चाई अभी तक बाहर नहीं आ पाई है। अगर चाहें तो आप भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला पढ़ सकते हैं।
अहमद पटेल पर लगे बलात्कार के आरोप का घटनाक्रम
अहमद पटेल पर बलात्कार का आरोप साल 2005 की शुरुआत में लगा था। मेरठ निवासी सुनीता सिंह नाम की एक महिला ने अहमद पटेल द्वारा निर्दयतापूर्ण बलात्कार करने का दिल्ली पुलिस से शिकायत की थी। उन्होंने अपनी शिकायत में बताया था कि राष्ट्रीय महिला आयोग की तत्कालीन सदस्य और महिला कांग्रेस की नेता यास्मिन अबरार के घर में पटेल ने उनसे बलात्कार किया।
उनकी शिकायत के मुताबिक वह एक पूर्व फौजी की पत्नी थी। उनका पति उनपर शारीरिक अत्याचार करता था। वह अक्सर उसे मारा-पीटा करता था। एक दिन वह अपने घर से भाग निकली और दिल्ली जाने वाली बस में सवार हो गई। दिल्ली आने के बाद मदद के लिए वह राष्ट्रीय महिला आयोग पहुंची। राष्ट्रीय महिला आयोग ने उन्हें अपने नारी निकेतन में जगह दे दी। एक सप्ताह के बाद अबरार निरीक्षण करने नारी निकेतन आईं और उनसे मिलीं। उनसे मिलने के दौरान अबरार ने उन्हें अपने घर में नौकरानी का काम करने की बात कहकर अपने साथ ले गई। कुछ ही दिनों बाद अहमद पटेल उनके घर आए। बरार ने सुनीता से उन्हें चाय-पानी देने को कहा। जैसे ही सुनीता पटेल को चाय-पानी देने को गई अबरार उस रूम से उठकर चली गईं। इसके बाद अहमद पटेल ने उसके साथ बलात्कार किया। सुनीता ने अपनी शिकायत में कहा है कि बाद में बहुजन समाज पार्टी से मेरठ के सांसद भी बरार के घर आकर उनके साथ बलात्कार किया। सुनीता के मुताबिक इसके बाद तो अनेकों कांग्रेस नेताओं ने उनके साथ बलात्कार किया खासकर तब जब उन्हें
जयपुर और अजमेर ले जाया गया।
चूंकि सरकार सोनिया गांधी के नियंत्रण में चलने वाली यूपीए की थी। इसलिए जैसा होना चाहिए था उसी तरह दिल्ली पुलिस ने इस मामले में चुप्पी साध ली। आजिज आकर सुनीता ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया। लेकिन वहां भी दिल्ली पुलिस की लेट-लतिफी के कारण उनका आवेदन स्वीकार ही नहीं हुआ। क्योंकि दिल्ली पुलिस ने कहा कि वह मामले की जांच कर रही है और जांच प्रक्रिया पूरी करने में थोड़ा वक्त लगेगा। आखिर में उन्होंने साल 2006 की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका दायर की। लेकिन केस की सुनवाई के दौरान ही उन्होंने अपनी याचिका में कुछ सुधार करने का आवेदन दे दिया। उनके इस कदम से स्पष्ट होता है कि उन्होंने ऐसा दबाव में किया। उन्होंने अपनी सुधार याचिका में अहमद पटेल समेत उन सभी का नाम वापस ले लिया जिनके नाम का जिक्र उन्होंने अपनी पहली याचिका में की थी। बाद की सुधार याचिका में उन्होंने बस इतना जिक्र किया कि उनके साथ जिन लोगों ने बलात्कार किया वे सभी लोग या तो सफेद कपड़े में थे या खादी के कपड़े में थे। लेकिन उन्होंने अपनी सुधार याचिका में इस तथ्य को बनाए रखा कि उनके साथ बलात्कार राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य यास्मिन बरार के घर में ही हुआ।
अहमद पटेल पर लगे बलात्कार के आरोप वाली इस खबर को सिर्फ ट्रिब्यून ने छापा था, बाकी सभी मीडिया संस्थानों ने चुप्पी ही साध रखी थी। 2006 के अंत में उन्होंने भी सुप्रीम कोर्ट से अपनी अपील वापस ले ली। भले ही सुनीता सिंह ने अपनी अपील वापस ले ली, लेकिन इस बहाने मीडिया, सिविल सोसाइटी और नारीवादियों की चुप्पी ने तो ये बता ही दिया कि इनकी रीढ़ कांग्रेस के इशारे पर ही तनती और सिकुड़ती है!
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