कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह से हार हो चुकी हैए लेकिन वह जनता के मतों से विश्वासघात करने की ताक में है। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने देवगौड़ा की पार्टी JDS को यह ऑफर दिया है कि वह अपने मुख्यमंत्री बना ले, कांग्रेस उन्हें समर्थन देगी,और वह मान भी गये। यदि दोनों पार्टियां मिल जाती हैं तो कांग्रेस-JDS की सरकार बन जाएगी! लेकिन रुकिए, यह खेल इतना आसान नहीं है! दरअसल कांग्रेस जानती है कि वह जनता की अदालत में हार चुकी है, इसलिए पिछले दरवाजे से सत्ता हथियाना चाहती है! दरअसल कांग्रेस परसेप्शन की लड़ाई लड़ रही है। वह जानती है कि आखिर में भाजपा ही सरकार बनाएगी, लेकिन वह जनता में यह मैसेज देना चाहती है कि बड़ा गठबंधन होते हुए भी भाजपा ने सत्ता गलत तरीके से उससे छीन ली!
क्यों कांग्रेस कर्नाटक में सरकार नहीं बना पाएगी देखिये विडियो:
कांग्रेस यह 2004 में कर्नाटक में कर चुकी है। कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा बनी थी, लेकिन कांग्रेस ने जनतादल (एस) के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। लेकिन यह मोदी-शाह के समय की भाजपा है, जिसने गोवा और मणिपुर में कांग्रेस की सरकार की उम्मीदों को समाप्त कर दिया था। कांग्रेस ने दांव यह खेला है कि उनका गठबंधन बड़ा है, इसलिए राज्यपाल उन्हें पहले सरकार बनाने के लिए बुलाएं। जबकि संविधान में यह साफ लिखा है कि ऐसी स्थिति में राज्यपाल अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसे में यदि राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी के नाते भाजपा को बुलाते हैं तो कांग्रेस और उनके ‘पीडी पत्रकारों’ को जनता के बीच परसेप्शन बनाने का अवसर मिल जाएगा कि देखिए भाजपा लोकतंत्र की हत्या कर रही है! फिर कांग्रेस गोवा और मणिपुर का उदाहरण पेश करेगी, जबकि वहां कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा पेश ही नहीं किया था!
कांग्रेस जानती है कि कर्नाटक की जनता ने उसके खिलाफ मत दिया है, इसलिए वह जनता के मतों का एक तरह से अपहरण करना चाहती है। इसमें दिल्ली के लुटियन पत्रकार उसकी मदद कर रहे हैं, उसके पक्ष में हवा बनाकर। आप देखिए कि कांग्रेस की हार से जिन स्टूडियो में मातम पसरा था, वहां फिर से ‘पीडी पत्रकारों’ ने मोर्चा संभाल लिया है। लेकिन तय मानिए, कांग्रेस केवल हारी हुई लड़ाई लड़ रही है! परसेप्शन की लड़ाई! लेकिन कांग्रेस यह भूल रही है कि समूचे देश की जनता उसके खिलाफ है। इसलिए यह परसेप्शन कहीं काम नहीं करेगा। वैसे यह तो तय हो गया कि देवेगौड़ा की JDS पार्टी को मीडिया ने इस बीच किंगमेकर होने के ऐहसास से भर दिया है।
कुमारस्वामी की पार्टी ने भले ही कांग्रेस के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया हो, लेकिन सरकार वही बनाएगी जिसे राज्यपाल बुलाएंगे। कांग्रेस व जदएस का गठबंधन चुनाव पूर्व का नहीं है, इसलिए बोम्मई जजमेंट के हिसाब से उसे बुलाने के लिए राज्यपाल बाध्य नहीं हैं। राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी को ही सरकार बनाने के लिए बुलाएंगे और उसे बहुमत साबित करने के लिए 10 से 15 दिन का समय दिया जाएगा। इसलिए कांग्रेस केवल परसेप्शन की लड़ाई लड़ रही है और कुछ नहीं!
और हां राज्यपाल ने कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल को अपने यहां प्रवेश करने से रोक दिया है! यानी राज्यपाल जानते हैं कि जीते हुए उम्मीदवारों को निर्वाचन आयोग ने अभी प्रमाण पत्र नहीं दिया है। निर्वाचन आयोग ने राज्यपाल को भी सूची नहीं दी है। बस कांग्रेस मीडिया के जरिए अपनी हारी हुई बाजी जीतते हुए दिखाना चाहती है, इसलिए राज्यपाल के कार्यालय को भी राजनीति का मैदान बनाने की कोशिश कर रही है। इसीलिए उन्होंने कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल को आने से ही रोक दिया।
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