श्वेता पुरोहित-
मनसा चिन्तितं कार्यं वाचा नैव प्रकाशयेत्।
मन्त्रेण रक्षयेद् गूढं कार्यं चाऽपि नियोजयेत् ॥
अर्थः “मन में सोचे हुए कार्य को वाणी द्वारा प्रस्तुत ना करें, बल्कि उसका उपयोग ‘गुरुमंत्र’ की तरह करें। जिसका चिन्तन-मनन करते हुए उसे ‘साकार’ रूप में परिवर्तित कर दें।”
व्याख्याः
आचार्य चाणक्य के इस कथन में बड़ा विशाल रहस्य समायोजित है, मनोविज्ञान का सिद्धान्त है कि आप जिस कार्य के लिए अधिक चिन्तन और मनन करोगे, मौन ही उसको कार्य रूप में परिणत करने का यत्न करोगे, उसमें सिद्धि प्राप्त करने का अवसर भी उतना ही ज्यादा निश्चित है। अकसर हमारे पूर्वज भी कहा करते हैं कि किसी काम को करने से पहले ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए, बल्कि कार्य को गोपनीय रखकर चुपचाप ही उसकी तैयारी में जुट जाना चाहिए। जिसका साकार रूप प्रत्यक्ष आपकी सोच और आपकी मेहनत का प्रमाण होगा। ऐसा नहीं करने पर आपको जग हँसाई का पात्र भी बनना पड़ सकता है।