आईएसडी नेटवर्क । लीगल राइट ऑब्जर्वेटरी (LRO) ने एक बार फिर वकील कॉलिन गोंजाल्विस के खिलाफ हमला बोला है। इस बार ट्वीट के सीरीज में LRO राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष को टारगेट करने के लिए चर्च, कथित मानवाधिकार कानून नेटवर्क और इस्लामवादियों गठजोड़ का खुलासा करते हुए कहा है कि इन लोगों ने गिरोह बना लिया है ताकि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग एंटी-सीएए विरोध में बच्चों के उपयोग, बाल तस्करी नेटवर्क और चर्च के अवैध कारोबार आदि के खिलाफ कोई कार्यवाही ना कर सके।
लीगल राइट ऑब्जर्वेटरी ने ट्वीट कर आरोप लगाया है कि दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक POCSO अभियुक्त को जमानत दिलाने के लिए, वकील कॉलिन गोंसाल्वेस पेश हुए थे।यह आरोपी एक कथित फैक्टचेक वेब साइट चलाता है, परंतु इसकी आड़ में यह लेफ्ट प्रोपोगंडा को कवर-फायर देता है। इस आरोपी और उसके वकील की कोशिश थी कि उसके खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी को किसी तरह से रद्द कराया जाए ।
दरअसल LRO ने जिस मामले की चर्चा की है वह ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर से जुड़ा है, जिस पर आरोप है कि ऑनलाइन बहस के दौरान एक नाबालिग बच्ची की ब्लर की हुई तस्वीर उसने पोस्ट की थी। बाद में इस पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने संज्ञान लेते हुए उसके खिलाफ दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद उनके ख़िलाफ़ आईटी एक्ट और पॉक्सो एक्ट की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
विभिन्न पक्षों को सुनने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने ट्विटर पर नाबालिग लड़की को कथित तौर पर धमकाने और प्रताड़ित करने के मामले में ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ तत्काल दंडात्मक कार्रवाई न करने का निर्देश दिल्ली पुलिस को दिया।
अदालत ने उस तथाकथित पत्रकार मोहम्मद जुबैर की अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी खारिज करने के अनुरोध वाली याचिका पर दिल्ली पुलिस और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से जवाब भी मांगा है । साथ ही उच्च न्यायालय ने ‘ट्विटर इंडिया’ को भी मामले की जांच में पुलिस के साथ सहयोग करने का निर्देश दिया है।
इस सुनवाई के दौरान जुबैर की ओर से पेश वकील कॉलिन गोंसाल्विस ने बताया था कि उनके मुवक्किल एक फैक्ट-चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक हैं और बिना किसी पूर्वाग्रहों के राजनीतिक दलों और लोगों द्वारा फैलाई जा रही गलत जानकारी की असलियत सामने लाते हैं। उनके इसी काम के चलते उन्हें अक्सर गालियां और धमकियां दी जाती हैं।
जुबेर के बचाव में उन्होंने आगे कहा कि इस बारे में दो प्राथमिकी की गई हैं । एक दिल्ली में और एक रायपुर में । उन्होंने कहा कि जुबैर को ट्विटर पर उनकी पोस्ट्स के लिए एक व्यक्ति द्वारा ट्रोल किया गया, उनका अपमान किया गया साथ ही सांप्रदायिक टिप्पणी भी की गई थी।
इस पर पुलिस के वकील राहुल मेहरा ने सुनवाई के दौरान जुबेर को आदतन अपराधी बताया जबकि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष की ओर से पेश हुई वकील अनिंदिता पुजारी ने कहा कि उनके मुवक्किल का नाम मुकदमा करने वालों की सूची से हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि वे सिर्फ सूचना देने वाले व्यक्ति थे और अपनी वैधानिक जिम्मेदारी का पालन कर रहे थे। इस पर जुबैर के वकील का कहना था कि आयोग के अध्यक्ष को पार्टी इसलिए बनाया गया है क्योंकि उन्होंने इस बारे में जो ट्वीट किया था वह अपने निजी एकाउंट से किया था न कि आयोग के आधिकारिक हैंडल से।
LRO ने इसी मुद्देे को केंद्र में रखते हुए कॉलिन गोंजाल्विस पर निशाना साधते हुए बताया है कि हैरानी की बात यह है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा पारित आदेश के लिए प्रियांक कानूनगो को व्यक्तिगत रूप से 50 लाख रुपये के मुआवजे के दावों के साथ पार्टी बनाया गया था, जो सही नहीं था। LRO का कहना है कि कॉलिन गोंजाल्विस के गिरोह ने पहले दौर में एनसीपीसीआर के चेयरपर्सन को व्यक्तिगत रूप से इस मामले में एक पार्टी बनाकर और बाल अपराधी के दोषी को पीड़ित के रूप में पेश किया है।
चर्च द्वारा वित्त पोषित कॉलिन गोंजाल्विस की संस्था HRLN ने प्रियांक कानूनगो को उखाड़ फेंकना चाहा, और आज ज़ुबैर को बचा रही है। आरोप है कि HRLN को सीआईएससीई नामक चर्च द्वारा संचालित व्यवसाय के लिए 4000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। CISCE पर CBSE के समानांतर अवैध रूप से चलने और शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) का उल्लंघन करने का आरोप है। एनसीपीसीआर ने इसे अदालत में घसीटा था और इसी कारण राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) को टारगेट किया जा रहा है।
LRO ने दावा किया है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को इसलिए भी निशाना पर लिया जा रहा है क्योंकि इसने दिल्ली के स्थानीय प्रशासन को निर्देश जारी किए थे कि वह शाहीन बाग में हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे बच्चों की दयनीय स्थिति और CAA विरोध प्रदर्शनों के बारे में चिंता व्यक्त करें।
गौरतलब हो कि नागरिक कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे महिलाओं के साथ बच्चों की उपस्थिति होने के पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने साउथ-ईस्ट दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट को पत्र लिखकर कोरोना वायरस के खतरे के मद्देनजर शाहीनबाग प्रदर्शन स्थल पर बच्चों के एकत्रित होने के संबंध में एक रिपोर्ट मांगी थी। आयोग ने पत्र में लिखा था कि कि उसे प्रदर्शन स्थल पर बड़ी संख्या में बच्चों के जुटने के संबंध में शिकायत मिली थी।
शिकायत में कहा गया था कि कोविड-19 की रोकथाम पर सुरक्षा के संबंध में प्रदेश और केंद्र सरकार के परामर्श के बावजूद बच्चों को एकत्रित किया जा रहा है। इस बारेे में दिल्ली सरकार के उस आदेश का हवाला दिया गया था, जिसमें कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए 50 से अधिक लोगों की धार्मिक, पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक या सांस्कृतिक किसी भी तरह की सभा की अनुमति नहीं दी गई थी।
LRO ने साफ कहा है कि चर्च द्वारा चलाए जा रहे चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस बाइबिल का अध्ययन करने के लिए गैर-ईसाई बच्चों को मजबूर करके धार्मिक रूपांतरण के इन-हाउस कारखानों के रूप में उपयोग कर रहे थे। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सभी राज्य सरकारों को इस पर नकेल कसने की सख्त चेतावनी दी थी। परिणामस्वरूप, यूरोपीय चर्च समूहों ने चेयरपर्सन को घेरने के लिए कॉलिन गोंजाल्विस की संस्था ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क को पैसा दिया है।
LRO ने आरोप लगाया है कि मिशनरीज ऑफ चैरिटीज को खुले बाजार में शिशुओं को बेचते हुए पकड़ा गया था। उस समय इस मामले को बंद करने के लिए पूरी व्यवस्था पर दबाव डाला गया था क्योंकि अधिकांश शिशु अनाथ नहीं थे, बल्कि गरीब आदिवासी परिवारों से कैथोलिक नन द्वारा खरीदे गए थे।
मिशनरीज ऑफ चैरिटीज द्वारा नाबालिग बच्चों की तस्करी के मामले में NCPCR ने SC में SIT जांच की अपील की थी। इसके लिए भी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को निशाने पर लिया गया है।
LRO का कहना है यूरोपियन यूनियन चर्च भारत के एमआईसीए खनन को बंद करना चाहता था। इस खनन से आदिवासियों को आर्थिक संबल मिलता है, लेकिन मिशनरी आदिवासियों को सब्सिडी वाला ‘चावल बैग’ थमा कर गरीब बनाए रखने की साज़िश रचता है कि वो इनके लिए धर्मांतरण की ‘लहलहाती खेती’ बने रहें।
ज्ञात हो कि एमआईसीए खनन में अतिरंजित बाल श्रम की कहानियां दुनिया भर में फैली, जिसके बाद एनसीपीसीआर आदिवासियों को बचाने के लिए आगे आया। और यही मिशनरियों को पसंद नहीं आ रहा है।
मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स मायलीम गाँव में चर्च समूहों ने स्वदेशी नईम खासी विश्वास पुजारियों के अंतिम संस्कार का विरोध किया था। एक चर्च संचालित स्कूल ने विरोध करने के लिए बच्चों को आगे बढ़ाया। एनसीपीसीआर ने हस्तक्षेप किया। इसमें सम्मिलित दो प्रधानाचार्यों को फटकार लगाई गई और दंडित किया गया। इसके चलते भी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग देश विरोधी तत्वों के टारगेट पर है।