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मुद्दा

मक्का मस्जिद फैसला: अजमेर ब्लास्ट में तो संघ प्रमुख मोहन भागवत को ही आतंकवादी घोषित करने की थी योजना !

ISD News Network
Last updated: 2018/04/16 at 2:00 PM
By ISD News Network 213 Views 8 Min Read
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India Speaks Daily - ISD News
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हैदराबाद स्थित मक्का मस्जिद में हुए बम धमाके मामले में NIA की विशेष अदालत के फैसले से हिंदू टेरर की थ्योरी तो ध्वस्त हो गई लेकिन यह एक अकेला मामला नहीं था। चाहे समझौता एक्सप्रेस में हुआ धमाका हो या फिर मालेगांव में हुआ बम विस्फोट। सभी घटनाओं में हिंदू आतंकवाद की अवधारणा को मजबूत करने की साजिश थी। अजमेर बम ब्लास्ट मामले में दुनिया के सबसे बड़े सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) के सर संघचालक मोहन भागवत की संलिप्तता साबित कर आतंकवादी घोषित करने की योजना थी।

इस योजना के शिल्पकार थे साधु के वेश में चैनल-चैनल भटकने वाले प्रमोद कृष्णम। उन्होंने ही संभल स्थित अपने आश्रम में इस षड्यंत्र की योजना बनाई थी। हालांकि कोर्ट का फैसला अभी आया है लेकिन वरिष्ठ पत्रकार संदीप देव ने अपनी किताब ‘निशाने पर नरेंद्र मोदी’ में कांग्रेस के इन सारे षड्यंत्र की पोल खोल दी थी। इस किताब में RSS खासकर मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार को आतंकवादी घोषित करने की प्रमोद कृष्णम की योजना का भी विस्तार से खुलासा किया गया है।

प्रस्तुत है किताब का अंश:

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मीडिया में बंजारा की चिट्ठी पहुंचने के करीब 15 दिन बाद ही एक चिट्ठी CBI के अदालत में पहुंची, जिसने भारतीय मीडिया का दोहरा चेहरा पूरे देश के समक्ष सामने ला दिया। 2007 में अजमेर दरगाह में हुए बम धमाके के आरोपी भावेश पटेल ने सबीआई अदालत में एक चिट्ठी दाखिल किया था। इस चिट्ठी के मुताबिक देश के वर्तमान गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह, कोयला राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह सहित ‘नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी’ (NIA) के अधिकारियों ने उस पर दबाव डाला था कि वह अजमेर बम धमाके के मुख्य साजिशकर्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत व पदाधिकारी इंद्रेश कुमार का नाम ले तो उसे छोड़ दिया जाएगा। यह सारा खेल कांग्रेस के नेता से साधु बने आचार्य प्रमोद कृष्णम के संभल स्थित आश्रम में रचा गया था।

‘निशाने पर नरेंद्र मोदी’

भावेश पटेल ने चिट्ठी में लिखा था, “जब मुझे गिरफ्तार किए जाने का अंदेशा हुआ तो मैं अपने गुरु प्रमोद कृष्णम के संभल स्थित आश्रम चला गया। वहां आचार्य प्रमोद कृष्णम ने मेरी मुलाकात दिग्विजय सिंह से करवाई थी। ये सभी लोग चाहते थे कि वह कोर्ट में आरएसएस के नेताओं को फंसाने वाला बयान दे।” भावेश पटेल को मार्च 2013 में गिरफ्तार किया था।

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मक्का मस्जिद फैसला: हिंदुओं को आतंकवादी साबित करने की कांग्रेसी कोशिश नाकाम!

भावेश के अनुसार, “मुझसे कहा गया था कि अदालत में जज के समक्ष मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार का नाम लोगे तब तुमको छोड़ दिया जैएगा, साथ ही पांच लाख रुपये भी दिए जाएंगे। 20 मार्च 2013 को मुझे जयपुर न्यायालय में पेश किया गया और वहां से जेल भेज दिया गया। जेल में आईपीएस विशाल गर्ग ने आईजी संजीव सिन्हा और आचार्य प्रमोद कृष्णम से बात कराई थी। आचार्य प्रमोद कृष्णम ने आईपीएस विशाल गर्ग के कहे अनुसार ही बयान देने को कहा था। मुझ पर दबाव बनाने के लिए विशाल गर्ग डीएसपी जसवीर सिंह आईजी और एनआईए के कई अधिकारी 23 मार्च 2013 को अदालत में मौजूद थे।”

भावेश के मुताबिक, “बयान दर्ज कराते वक्त मेरी आत्मा ने मुझे धिक्कारा। इसलिए मैंने मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार का नाम नहीं लिया। उसी शाम जेल में विशाल गर्ग ने फिर मुझसे मुलाकात की। गर्ग ने कहा कि मनमाफिक बयान नहीं देने की वजह से उसकी कोई मदद नहीं की जाएगी।’ ज्ञात हो कि एनआईए ने अपनी चार्जशीट में पटेल पर अजमेर में धमाके के लिए साजो-सामान उपलब्ध कराने और दरगाह के भीतर बम ले जाने का आरोप लगाया है। देखा जाए तो गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ही वे शख्स हैं, जिन्होंने इस देश में पहली बार ‘हिंदू आतंकवाद’ की अवधारणा गढ़ी है।

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ऐसे में आरएसएस के बहाने पूरे हिंदू समाज के विरुद्ध उनके इस षडयंत्र के सामने आने पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को इसकी तह तक जाना चाहिए था। लेकिन मीडिया ने उल्टी राह पकड़ते हुए कामचलाऊ रिपोर्टिंग कर इसे दबाने का भरपूर प्रयास किया।, जिसमें वो काफी हद तक सफल रही।नरेंद्र मोदी को घरेने के लिए मीडिया जहां करीब 10 दिनों तक बंजारा वाली चिट्ठी दिखाती, चलाती और चैट-शो आयोजित करती रही, वहीं भावेश पटेल की चिट्ठी बस एक मामूली खबर बनकर रह गई। कानूनी रूप से देखें तो बंजारा की चिट्ठी जहां उनके इस्तीफे को लेकर गुजरात सरकार को लिखी गई थी, वहीं भावेश पटेल ने सीधे सीबीआई अदालत को पत्र लिखकर देश के गृहमंत्री व सत्तासीन पार्टी को ही साजिशकर्ता बताया था। कानूनी रूप से मजबूत होते हुए भी कांग्रेस पार्टी व यूपीए सरकार को बचाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने भावेश पटेल के ‘चिट्ठी बम’ को डिफ्यूज कर दिया!

और न केवल डिफ्यूज किया, बल्कि फरवरी 2014 में आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत व पदाधिकारी इंद्रेश कुमार पर इस बार खुद ही मीडिया ने हमला बोल दिया। ‘कारवां’ नामक एक अनजान सी पत्रिका ने मालेगांव समझौता एक्सप्रेस,अजमेर और मक्का मस्जिद बम धमाके के आरोपी व जेल में बंद स्वामी असीमानंद का एक साक्षात्कार छापा। पत्रिका ने यह दावा किया कि उसकी सवाददाता पिछले दो साल में चार बार जेल के अंदर गई है और असीमानंद का साक्षात्कार लिया है। इस साक्षात्कार में दर्शाया गया कि मोहन भागवत व इंद्रेश कुमार को इन बम धमाकों की जानकारी थी।

पूरी मीडिया आरएसएस पर हमलावर हो उठी, जबकि वह जानती है कि यह पूरा साक्षात्कार ही संदिग्ध है। एटीएस, सीबीआई और एनआईए मिलकर भी अभ तक असीमानंद के खिलाफ ठोस सबूत नहीं जुटा पाई है। इसलिए एक बार फिर से ‘मीडिया कार्ड’ का इस्तेमाल आरएसएस और नरेंद्र मोदी को सांप्रदायिक दर्शाने के लिए किया ताकि कांग्रेस की चुनावी राह आसान बन सके।

URL: All accused, including Aseemanand, acquitted in Mecca Masjid blasts-2

Keywords: Swami Aseemanand, Mecca Masjid Blast, Mecca Masjid blast case verdict, CBI, NIA, hindu terrorism, ajmer blast, Sandeep Deo books, मक्का मस्जिद फैसला, स्वामी असीमानंद, सीबीआई, मक्का मस्जिद ब्लास्ट केस, ‘हिंदू आतंकवाद, हैदराबाद, मोहन भागवत

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ISD News Network April 16, 2018
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