वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तथा प्रवर्तन निदेशालय के पूर्व निदेशक करनैल सिंह के किताब Batla House: An Encounter That Shook The Nation में नया खुलासा हुआ है। बाटला हाउस एनकाउंटर को लेकर दिल्ली पुलिस के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी करनैल सिंह जो प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख भी रह चुके हैं। उन्होंने Batla House: An Encounter That Shook The Nation नामक किताब लिखी है, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया है कि 19 सितंबर, 2008 के दिन बाटला हाउस में इंडियन मुजाहिदीन के आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन का उन्होंने खुद नेतृत्व किया था।
किताब में इस बात का वर्णन है कि इस वास्तविक मुठभेड़ को किस तरह वोट बैंक की राजनीति, मीडिया टीआरपी और षड्यंत्र के तहत प्रभावित किया गया। इसी किताब में करनैल सिंह ने आगे लिखा है कि 14 अक्टूबर को बाटला हाउस एनकाउंटर को एक नया आयाम दिया गया, जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के कुछ वरिष्ठ राजनेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला किया था।
इस वास्तविक मुठभेड़ को मुसलमानों के साथ अन्याय बताते हुए इसकी न्यायिक जांच की मांग की गई थी।
उन्होंने बताया कि तत्कालीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने अन्य नेताओं के साथ सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह से मिलने से पहले बटला हाउस क्षेत्र का दौरा किया। उसी दिन समाजवादी पार्टी के संस्थापक संरक्षक मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह ने न्यायिक जांच के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी। सभी नेता अपनी तरफ से पुलिस पर राजनीतिक दबाव बढ़ रहा थे। इसके बाद तत्कालीन उपराज्यपाल तेजिंदर खन्ना के आवास पर कपिल सिब्बल को दिल्ली पुलिस की ओर से सबूत दिखाने के बाद ही तत्कालीन केंद्र सरकार को यकीन हो पाया था कि यह एक वास्तविक मुठभेड़ थी।
उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि आखिर में कपिल सिब्बल ने स्वीकार किया कि उन्हें मुठभेड़ की असलियत और अभियुक्तों के आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का यकीन था। वह यह बात मनमोहन सिंह को भी बताने के लिए तैयार हो गए थे। उन्होंने मेरा नंबर लिया और मेरी बातों पर खरे उतरे। उन्होंने शाम को मुझे यह बताने के लिए फोन किया कि उन्होंने चर्चा के दौरान जो पाया है, उससे प्रधानमंत्री को अवगत करा दिया है।
करनैल सिंह बताते हैं कि 22 फरवरी, 2009 को दिल्ली पुलिस के एक समारोह में उस समय के पीएम मनमोहन सिंह ने उनसे कहा था कि आपने अच्छा काम किया है। सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी करनैल सिंह कहते हैं कि बाटला हाउस एनकाउंटर को लेकर दिल्ली पुलिस ने उच्च न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के सामने सच्चाई पेश की और यही वजह है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने अपना फैसला सुनाया और बटला हाउस एनकाउंटर के फर्जी होने के सभी आरोपों से स्पेशल सेल को मुक्त कर दिया।
करनैल सिंह ने किताब के जरिए यह बताया है कि 12 अक्टूबर 2008 को जामिया मिलिया इस्लामिया के शिक्षकों के एक समूह ने एक जन सुनवाई की थी। उनके जूरी में राजनेता और कार्यकर्ता शामिल थे। इनमें स्वामी अग्निवेश, मानवाधिकार राजनीतिक कार्यकर्ता जॉन दयाल और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तृप्ता वाही, विजय सिंह और निर्मलंगशु मुखर्जी आदि शामिल थे। जामिया के दर्जनों निवासियों ने उस बैठक में पुलिस के विरोध में गवाही दी। बाद में जूरी ने अपने वही निष्कर्ष दिए, जो बात पहले से ही मीडिया के कुछ हिस्सों में कही जा रही थी। हमारे विभाग दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल द्वारा पहले से ही इन बातों के जवाब दे दिए गए थे।
वह बताते हैं कि जन सुनवाई के निष्कर्ष उचित नहीं थे क्योंकि जूरी में जिन लोगों को शामिल किया गया था, उनमें से किसी को भी घटना की सही जानकारी नहीं थी। यही कारण है कि उनमें से कोई भी बाद में इन गवाही को साझा करने के लिए आगे नहीं आया।
इस चर्चित किताब में करनैल सिंह ने बाटला हाउस एनकाउंटर को लेकर कहा कि इस एनकाउंटर ने बहुत बड़ा राजनीतिक बखेड़ा खड़ा किया था इसलिए उन्होंने किताब के माध्यम से कई सवालों के जवाब देने की कोशिश की है। साल 1984 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी रहे करनैल सिंह इस मुठभेड़ के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वह उस समय स्पेशल सेल में संयुक्त पुलिस आयुक्त तैनात थे। उनकी टीम मुठभेड़ से एक दिन पहले यह जानकारी इकट्ठा करने में कामयाब रही कि एक मोबाइल नंबर जिसका इस्तेमाल आतंकवादी मोहम्मद आतिफ अमीन ने किया था उसका प्रयोग जयपुर विस्फोट (13 मई, 2008), अहमदाबाद (26 जुलाई, 2008) और 13 सितंबर, 2008 को दिल्ली के करोल बाग, कनॉट प्लेस और ग्रेटर कैलाश में हुए सिलसिलेवार विस्फोट में किया गया था। यह भी जानकारी मिली कि यह आतंकी कुछ साथियों के साथ बटला हाउस इलाके में छिपा हुआ है जिसके बाद उन्होंने अपनी टीम को इस आतंकी को जिन्दा पकड़ने का आदेश दिया था।
एनकाउंटर के ठीक 1 दिन पहले 18 सितंबर की शाम को एक टीम को बटला हाउस इलाके के बारे में जानने के लिए मौके पर भेजा गया। मौके पर गई टीम ने आतंकी के छुपे होने की पुष्टि कर दी थी। इसके बाद आतिफ जहां ठहरा था, वहां पर छापेमारी किए जाने का निर्णय लिया गया लेकिन पुलिस टीम में शामिल कर्मी इस पर एक राय नहीं थे क्योंकि उस समय रमज़ान का महीना चल रहा था। लेकिन बाद में एकमत निर्णय होने पर शाम या रात में छापेमारी किए जाने के बजाय दिन मे ऑपरेशन किए जाने का फैसला किया गया।
इस बात का जिक्र करते हुए अपनी किताब में करनैल सिंह ने कहा है कि 19 सितंबर के लिए दो टीमें बनाई गईं। इसमें इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा 18 सदस्यीय टीम का नेतृत्व कर रहे थे जबकि स्पेशल सेल के वर्तमान डीसीपी संजीव यादव (उस समय एसीपी) ने दूसरी टीम का मोर्चा संभाला। उस दिन डेंगू के कारण इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के बेटे को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन उन्होंने छुट्टी नहीं लेकर ऑपरेशन में भाग लेने का फैसला किया। उनकी टीम के अधिकांश अधिकारी, जिनमें इंस्पेक्टर राहुल, धर्मेंद्र और अन्य शामिल थे, 19 सितंबर को देर रात या दूसरे राज्यों से अलग-अलग इनपुट पर काम करने के बाद देर रात लौटे थे और सभी पर पारिवारिक जिम्मेदारियाँ थीं लेकिन जब ड्यूटी की बात आई तो सब इस ऑपरेशन के लिए तैयार हो गए।
बाटला हाउस के मकान संख्या L-18 में छापेमारी से पहले लगभग 11 बजे मोहन चंद शर्मा का फोन आया और कहा, सर एल -18 के अंदर आतंकी मौजूद हैं और हम लोग अंदर जा रहे हैं। इसके लगभग 10 मिनट के बाद, मेरा फोन दोबारा बज उठा दूसरी तरफ से फोन पर संजीव यादव थे। उन्होंने कहा- ‘सर, मोहन और हेड कांस्टेबल बलवंत को गोली लगी है और उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा है। यह भी सूचना दी गई कि कुछ आतंकवादी भी घायल हुए हैं लेकिन वे घर के अंदर मौजूद हैं। इस तरह की सूचना मिलते ही मैं खुद और उस समय के तत्कालीन स्पेशल सेल डीसीपी आलोक कुमार वहां मौजूद आतंकवादियों को पकड़ने का निर्देश देते हुए बटला हाउस पहुंचे।
वह दिन उनके जीवन का सबसे तनाव भरा था क्योंकि वह जब मौके पर पहुंचे तब उन्होंने पाया कि सैकड़ों की भीड़ पुलिस के खिलाफ नारेबाजी कर रही है और माहौल तनाव भरा था। मौके पर मौजूद पुलिसकर्मी राहुल ने बताया कि मोहन चंद शर्मा आगे की टीम का नेतृत्व कर रहे थे। इस बीच आतंकियों के द्वारा चलाई गई गोली उनको लग गई। पुलिस टीम के सदस्यों को सामान्य कपड़ों में ही रहने के लिए इस वजह से कहा गया था क्योंकि अगर आतंकी फ्लैट में नहीं भी मिलें तो भी बिना किसी को खबर हुए सभी वहां से सुरक्षित वापस लौट सकें। यही वजह थी कि टीम से किसी ने भी बुलेट-प्रूफ जैकेट नहीं पहन रखा था।
किताब में लिखा है कि आतंकवादियों ने पहली टीम पर अंधाधुंध गोलीबारी की जिसके कारण मोहन चंद शर्मा को सामने से दो गोलियां लगी थी और हवलदार बलवंत को भी गोली लगी थी। मोहन चंद्र शर्मा शहीद हो गए और बलवंत बच गया था।
इसके अलावा इस किताब में बाटला हाउस एनकाउंटर को लेकर उठाए गए एक-एक सवालों का जवाब विस्तार पूर्वक दिया गया है। करनैल सिंह ने कहा कि इस किताब को पढ़ने के बाद एनकाउंटर पर सवाल उठाने वाले लोगों की बोलती बंद हो जाएगी।
गौरतलब हो कि जामिया नगर इलाके में स्थित बाटला हाउस में हुए एनकाउंटर में इंडियन मुजाहिदीन के दो आतंकवादी आतिफ अमीन और मोहम्मद साजिद मारे गए थे जबकि दो अन्य सैफ मोहम्मद और आरिज़ खान उर्फ जुनैद भागने में कामयाब हो गया था, लेकिन इन दोनों आतंकवादियों को बाद में पकड़ लिया गया था। इसके अलावा इस मॉड्यूल के शाहबाज अहमद और ज़ीशान समेत कुछ अन्य आतंकियों को भी पकड़ कर इंडियन मुजाहिदीन मॉड्यूल को समाप्त कर दिया गया था।