बहुत बार हम देखते हैं कि ज़्यादातर लोग औरों की हाँ में हाँ मिलाते हैं। और ये कब उनकी आदत और फिर ज़रूरत बन जाता है पता ही नहीं चलता। हाँ सहमति कारक शब्द है लेकिन आज के परिवेश में लोगों की ये मान्यता है कि सामने वाले से अगर काम निकालना है तो उसकी हाँ में हाँ मिलाओ। जबकि ये करते हुए हम अपने अंदर की ‘न’ को ‘हाँ’ समझना शुरू कर देते है और उसके बाद जब हमारा मन और दिमाग इस कश्मकश में उलझ जाता है तब जो हमारे जीवन में होता है उसकी दवा हक़ीम लुकमान के पास भी नहीं!
आइये जानते है कि वो कौन सी बातें है जहाँ हमें खुद से ‘न’ बोलना चाहिए जिससे हम मुसीबत में ना फसें।
अपनी ओवर थिंकिंग को ना कहें
क्या आप की भी आदत है किसी भी बात का जवाब देने से पहले ये सोचने की कि उसने ये क्यों कहा? इस तरह से क्यों कहा? ऐसे क्यों नहीं कहा? उसको मुझसे ही ऐसे कहना था! दूसरों से तो नहीं बोला ऐसे! वगरैह वगरैह तो आप की ये आदत आप के ब्लड प्रेशर बढ़ने का एक कारण हो सकती है। इस आदत को ना बोलना सीखें ये बदलाव एक ही दिन में नहीं आएगा मगर आदत को बदलने के लिए आपको अपने आप को बिलकुल बच्चों की तरह समझाना है कि नहीं आप की ये सोच चाहे जितनी भी सही क्यों ना हो पर आप अपने आप से तो ‘न’ कह सकते है। ऐसा करने के फायदे ज़्यादा है इस से आप को जो समय मिलेगा उसका इस्तेमाल आप अपने लिए कुछ सकारात्मक सोचने में कर सकते है । याद रखिये हर व्यक्ति आपकी तरह ही कई दिशाओं में सोचता हुआ हो सकता है इसलिए इन बातों पर तूल ना दें।
अपनी डाइट का कमांड अपने मन को नहीं दिमाग को दें
मन अगर ड्राइवर हो तो एक्सीसडेंट की संभावना 100 प्रतिशत पक्की हो जाती है इसलिए ड्राइविंग के भी कुछ रूल बनाये जाते है ,जिन्हे आप को फॉलो करना होता है और आप अचानक होने वाले एक्ससीडेंट से बच जाते है। इसी तरह अगर बात आपकी हेल्थ की है तो सबसे पहले आप को ही उसका हल निकलना होगा क्यूंकि वो आपकी प्रॉपर्टी है जिस पर आपका ही पहला और अंतिम अधिकार है, अगर आप ने शुरू से इस पर नियंत्रण नहीं रखा तो इस का कोई और विकल्प नहीं इसलिए अपने खान-पान का नियंत्रण और भोजन के चुनाव में मन और दिमाग की रेस में अपने दिमाग को ज़्यादा दौड़ लगाने के स्थान पर उसे जिताने की आदत डालें और केवल स्वाद के पीछे भागने को स्वयं ‘न’ बोले ।
अपने आप के लिए समय निकालते वक़्त दूसरों को ना कहना सीखे
अक्सर हम दूसरों के कामों या बातों को सुनने के लिए अपने टाइम को वहां स्पेंड कर देते है, जहाँ हमें अपना समय नहीं लगाना चाहिए। कई बार अपने आप को रिलीफ करने के लिए हम उन बातों में अपनी रूचि दिखाते है जहाँ होना हमारे लिए हमारी प्रतिभा और क्षमता दोनों के प्रतिकूल होता है जैसे दूसरों की चुगली सुनते- सुनते हम कब चुगली करना करना प्रारम्भ कर देते है और फिर कब उससे हमें हर बात पर रोना रोने की आदत हो जाती है ये पता नहीं चलता ऐसा करने से बचने के लिए आपको अपना लक्ष्य हमेशा याद रखना होगा। जहाँ आपकी रूचि ना हो वहां आप कोई बहाना कर के या विनम्रता से आग्रह कर के ना कह सकते है।
डर को ना कहे
हमारे सपनों की उड़ान में सबसे बड़ा रोड़ा होता है हमारा डर। हम चिंता एवं डर के कारण सपने को ही छोड़ कर समझौता कर देते है और फिर सोचते है की वक़्त हाथ से निकल गया है अब कुछ नहीं हो सकता, उम्र निकल गयी है, अब सेहत साथ नहीं देती या फिर कुछ रूढ़िवादी बातें हमारा रास्ता रोक देती है। इन सबसे बचने का केवल एक ही उपाए है। वो यह कि- हम अपने डर पर काबू पाए और उसे ख़त्म करने के लिए ठीक वैसे ही कदम बढ़ाएं जैसे एक छोटे बच्चे को चलना सिखाते है। जब वो गिरता है तो ताली बजा कर उसका अभिनन्दन करते है और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते है यही प्रोत्साहन हमें स्वयं को भी देना है क्योंकि सफलता के मांग पर चलते रहने का प्रयास भी अपने आप में सफलता ही वो चढ़ान है जो अनुभव के उतार से ही बनती है इसलिए खुद के डर को ना कहकर उसका हौसला बढ़ाएं।
ये कुछ ऐसी बातें हैं जहाँ खुद को सही रास्ते पर चलाने के लिए हमें ‘न’ कहने से कोई गुरेज़ नहीं करना चाहिये ।
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