
भारत की सुगठित सामजिक संरचना को तोड़ने का काम कर रहा है ‘बिग बॉस’!
परिवार के साथ बिग बॉस देखने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए! बिग बॉस क्यों देखा जाता है? ये प्रश्न मुझे बड़ा उद्धेलित करता है। एपिसोड ख़त्म होने के बाद दर्शक की मनोदशा क्या होती है? सपरिवार देखे जाने पर किसे झेंपना पड़ता है और कौन टीवी सेट से आँखे हटाकर दूसरी ओर देखने लग जाता है? बिग बॉस के ‘बारह फेरे’ बीते समय में समाज में क्या बदलाव ले आए हैं? बिग बॉस के ‘साइड इफेक्ट’ हमें कैसे दिखाई देने लगे हैं? ये सवाल उन लोगों के मन में गूंज रहे हैं जो ये प्रसिद्ध रियलिटी शो नहीं देखते हैं। आइये जानते हैं बिग बॉस की सामाजिक स्वीकार्यता के क्या मायने हो सकते हैं?
बिग बॉस के घर में रहना है तो दूसरे को लात मारकर निकालना ही होगा। इसके लिए आपको षड्यंत्र रचने हैं। कानाफूसी करनी है। साथी प्रतियोगियों को जलील करना है। अश्लील गालियां देनी हैं और कभी कभार ‘नीली फिल्मों’ की तरह पोज देने के लिए ख़ुफ़िया कैमरे के सामने आना है। बिग बॉस की ठीक-ठीक परिभाषा ऐसी ही है। जीतने के लिए आप जितने अधिक नकारात्मक होंगे, उतनी अधिक टीआरपी मिलेगी। विश्व की सबसे सुगठित सामाजिक संरचना को नष्ट करना हो तो बड़े भागीरथी प्रयास करने पड़ते हैं।
भारत की सामाजिक संरचना पर प्रहार करने के लिए ‘सलमान खान’ जैसे हथौड़े की आवश्यकता पड़ती ही है। बिग बॉस ऐसा ही हथौड़ा है जो हमारी शक्तिशाली सामाजिक संरचना पर लगातार प्रहार कर रहा है। शो में शिरकत कर रहे भजन गायक अनूप जलोटा बोल ही चुके हैं ‘लोग यह समझते हैं कि भजन गाता है तो साधु-संत होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। मैं बहुत ही मस्ती वाला आदमी हूं। मजे करता हूं लाइफ में।’
हर सप्ताह पैंतालीस लाख की भारी भरकम फीस के एवज में अनूप जलोटा ने अपने निजी जीवन के परदे उंघाड़ दिए। वे बेलाग होकर अपनी उम्र के लोगों को प्रेम करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। एक पक्ष कहेगा इसमें क्या बुराई है। प्रेम उम्र का बंधन नहीं देखता। न प्रेम बुरा है, न प्रेम का प्रदर्शन परन्तु निजता को एक शो के लिए बेच देना कहाँ तक ठीक है। इसका समाज पर क्या इम्पेक्ट हुआ ये हम टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर देख और महसूस कर सकते हैं।
एक आम भारतीय जीवन भर जानी पहचानी गन्दी लत से ग्रसित रहता है। सड़क पर दो लोग झगड़ रहे हो तो उसे बवाल देखने में बहुत रस आता है। भारत में बिग बॉस की लोकप्रियता का आधार आम भारतीय की यही गन्दी आदत है। सड़क पर अच्छे काम करते लोग हमें कभी नहीं भाते लेकिन वे लोग आपस में लड़ पड़े तो तमाशा देखने में हम सबसे आगे होते हैं। जलोटा ने एक बेहतरीन मिथक तोड़ दिया है। अब तक माना जाता था कि भजन गाने वाले धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं और इसलिए ही लाखों लोग उन्हें सुनते हैं। हम जानते हैं कि अनूप जलोटा ‘स्क्रिप्टेड संवाद’ बोल रहे हैं परन्तु समाज में क्या सन्देश जा रहा है, ये भी देख लीजिये।
इस शो में सलमान खान अनूप जलोटा की ‘उपलब्धि’ पर उन्हें सम्मान प्रदान करते हैं। आख़िरकार जलोटा ने महान कार्य किया है। इस मौके पर दिबांग जैसा वरिष्ठ पत्रकार जलोटा से कहता है ‘आपको नहीं लगता कि फेमस होने के बाद चिड़िया उड़ भी सकती है’। सलमान कहते हैं ‘अरे! दूसरी चिड़िया आ जाएगी’। अनूप जलोटा कहते हैं ‘अब उड़ गई तो उड़ गई, मैंने ये तो नहीं कहा कि दूसरी आएगी नहीं’।
जलोटा प्रकरण तो अब पुराना हो चला है। आपको जानना चाहिए कि बिग बॉस अब नेक्स्ट लेवल पर जा चुका है। अली मिर्जा ने सोनाली राउत को गलत ढंग से छुआ तो सोनाली ने उसे चांटा मार दिया। गौतम गुलाटी और डायंड्रा के बीच हुए लिप लॉक ने बड़ी सुर्खियां बटोरी। किश्वर ने ऋषभ की थाली में थूक दिया। स्वामी ओम ने पिछले सीजन में अन्य प्रतियोगियों पर पेशाब फेंककर गंद फ़ैलाने में सबसे ऊंचा स्थान हासिल किया था और समाज के सामने स्क्रिप्टेड ढंग से संन्यासियों के बारे में धारणा स्थापित कर दी गई।
मैंने शुरुआत में लिखा था मुझे ये प्रश्न बड़ा परेशान करता है कि स्वस्थ मानसिकता के दर्शक इस उद्देलित करने वाले शो को कैसे देखते होंगे। हालांकि लगातार बारहवीं बार सफल इस रियलिटी शो के बारे में मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए। जिस ड्राइंग रूम में ये शो देखा जाता होगा, वहां बैठने वाले दर्शक बहुत हिम्मत रखते होंगे। अपने परिवार के साथ बैठकर प्रतियोगियों की गाली-गलौज और लिप लॉक दृश्य देखना कोई कम साहस का काम है क्या।
URL: ‘Big Boss’ is working to break India’s organized social structure
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