‘मुझसे कहा जाता था कि एक एक्ट्रेस को खुशी-खुशी सेक्स करने आना चाहिए। वो मुझे जहां भी मन हो छूता था, जहां भी दिल करे वो मुझे किस करता था, मैं ये सब देखकर शॉक्ड थी। वो मेरे कपड़ों के अंदर अपना हाथ ले जाता था, जब मैंने उसे ऐसा करने से रोका तो उसने कहा कि अगर तुम्हें इस इंडस्ट्री में काम करना है तो ये सही एटिट्यूड नहीं है।’ अभिनेत्री उषा जाधव का ये रोंगटे खड़े कर देने वाला बयान कास्टिंग काउच के बारे में दिया गया है। सरोज खान के विवादास्पद बयान के बाद बॉलीवुड के गड़े मुर्दे बाहर निकल आए हैं।
एक प्रतिभाशाली लड़की मुंबई के एक जाने-माने निर्देशक के ऑडिशन में पहुँचती है। उसे भरोसा है कि उन पचास लड़कियों में वह चुन ली जाएगी। उसकी डायलॉग डिलेवरी और स्क्रीन प्रेजेंस भी औरों से बेहतर थी। लड़की ऑडिशन के बाद बड़ी उम्मीद लेकर निर्देशक के केबिन में प्रवेश करती है। निर्देशक सिगरेट की राख एश ट्रे में झाड़ता हुआ कहता है कि उसे फिल्म का रोल पाना है तो निर्देशक और निर्माता का बिस्तर गर्म करना होगा। लड़की अवाक सी निर्देशक को देखती रह जाती है और बोझिल क़दमों से घर लौट आती है।
ये कहानी हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री की सच्ची तस्वीर है। बॉलीवुड में कास्टिंग काउच आज से नहीं बल्कि साठ के दशक से भी पहले से चली आ रही है। सिर्फ फिल्म उद्योग में ही नहीं बल्कि ये घिनौना रिवाज राजनीति और दूसरे क्षेत्रों में भी फलफूल रहा है। आज लड़कियां नहीं बल्कि संघर्ष कर रहे लड़के भी कास्टिंग काउच का शिकार बन रहे हैं। ये गन्दी परम्परा हमारे यहाँ पश्चिमी देशों से आई। सन 1910 में अमेरिका से इसकी शुरुआत हुई और उसके बाद यूरोप पार करके ये महामारी एशिया में भी पहुँच गई। मुंबई फिल्म उद्योग में प्रवेश करने वाले हर युवा लड़के-लड़की को अंदर से मालूम होता है कि आगे जाकर कास्टिंग काउच से सामना होना ही है। जो नई लड़कियां अपने पोर्टफोलियो लेकर कास्टिंग वालों के चक्कर लगाती हैं, उनमे आधी से अधिक काम पाने के लिए अपने कपडे उतार चुकी होती है। यही संघर्षरत लड़कों के साथ भी होता है। कौमार्य की ये रिश्वत कास्टिंग डाइरेक्टर से लेकर फिल्म निर्देशक और निर्माता तक को बांटनी पड़ती है।
रोल के बदले सेक्स की मांग
हाल ही में कास्टिंग काउच का तूफ़ान उस वक्त खड़ा हो गया जब कोरियोग्राफर सरोज खान ने ये कहकर सनसनी मचा दी कि कास्टिंग काउच तो हमेशा से चलता आ रहा है और फिल्म उद्योग भी इससे अछूता नहीं है। उन्होंने कहा था कि यह कम से कम रोजगार तो उपलब्ध कराता है। ऐसा नहीं है कि ये बात सरोज खान ने ही की हो। कंगना रनौत, राधिका आप्टे, रणवीर सिंह, आयुष्यमान खुराना, कल्कि कोचलिन, टिस्का चोपड़ा, पायल रोहतगी और जाने कितने सितारें हैं जिन्होंने कास्टिंग काउच की बात स्वीकारी है। टिस्का चोपड़ा और पायल को रोल के बदले सेक्स की मांग की गई थी। यहाँ सिर्फ बी ग्रेड और सी ग्रेड फिल्मों में जिस्म के सौदे नहीं होते बल्कि बड़े निर्माता-निर्देशक भी इसमें लिप्त हैं।
पचास के दशक से ही है चलन
दिवंगत अभिनेता शशि कपूर ने स्वीकार किया था कि पचास के दशक से ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ये गंदगी घर कर गई थी। उस दौर की कई नामचीन अभिनेत्रियां इसका शिकार हुई थी। पिछले दिनों वरिष्ठ अभिनेत्री डेजी ईरानी ने खुलासा किया था कि एक फिल्म की शूटिंग के दौरान छह साल की आयु में उनके साथ दुष्कर्म किया गया था। राधिका आप्टे ने कास्टिंग काउच के लिए जिम्मेदार लोगों के लिए इशारा करते हुए कहा था ‘वे लोग इंडस्ट्री में भगवान की तरह है। यदि आप उनका नाम लेते हैं तो यहाँ आपको कोई काम नहीं देगा।’ कंगना रनौत का उदाहरण रोंगटे खड़े कर देने वाला है। तनु वेड्स मनु के रोल के बदले उनसे सेक्स की मांग की गई थी। जबकि उस समय तक कंगना जाना-माना नाम हो चुकी थी, इसके बावजूद उनसे सेक्स की मांग की गई थी।
डाक्यूमेंट्री उठाएगी सच पर से पर्दा
शनिवार को बीबीसी एक डाक्यूमेंट्री का प्रदर्शन करने जा रहा है। ‘बॉलीवुड डार्क सीक्रेट’ नामक इस डॉक्युमेंट्री में अभिनेत्री राधिका आप्टे और उषा जाधव ने इंडस्ट्री में अनुभवों को शेयर किया है। इन दोनों अभिनेत्रियों ने कहा है कि ऐसे मामले में पीड़ित हमेशा आगे आने से बचते हैं। उषा जाधव ने तो कई हैरान करने वाली बातें बताई हैं। उन्होंने कहा कि उनसे ये कहा जाता था कि करियर बनाना है तो अभिनेत्री को खुशी-खुशी सेक्स करने आना चाहिए। बीबीसी की इस डाक्यूमेंट्री के प्रदर्शन के बाद हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री कई सवालों से घिरने जा रही है। कास्टिंग काउच का मुद्दा अचानक नहीं उठाया गया है। इस डाक्यूमेंट्री के चलते ये विवाद कब्र से निकलकर बाहर आ गया है।
रणबीर सिंह भी हुए हैं शिकार
ये तस्वीर पचास के दशक की है। फोटो में दिखाई दे रहे फिल्म निर्देशक अब्दुल रशीद कारदार हैं। फोटो में वे नई लड़कियों के ऑडिशन लेते दिखाई दे रहे हैं। पचास के दशक में जब लड़की को निर्देशक के ऑफिस में कपडे उतारने पड़ते थे तो आज सोचिये क्या हालत होंगे। स्टार पुत्र रणबीर कपूर कहते हैं कि मैंने आज तक कास्टिंग काउच का सामना नहीं किया। कास्टिंग काउच का सामना वही करते हैं जो संघर्ष करके यहाँ आते हैं। रणबीर कपूर को तो नहीं लेकिन रणवीर सिंह को कास्टिंग काउच का अनुभव जरूर हो चुका है और उन्होंने इस बात का जिक्र भी किया है कि वे जिस निर्माता को पोर्टफोलियो देने जाते थे वह उनसे कुछ और ही चाहता था।
मुंह खोला तो कोई साथ नहीं देता
मुंबई में ये बात आम है कि कोई नया लड़का या लड़की कास्टिंग डाइरेक्टर के चंगुल से साबुत बचकर नहीं जा सकता। सूत्रों के मुताबिक 99 प्रतिशत स्ट्रगलर लड़कियां काम के बदले अपना कौमार्य सौंप देती है। ऐसा ही आंकड़ा लड़कों का भी है, जिन्हे काम के बदले यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है। जिस्म का सौदा करने के बाद भी पक्का नहीं होता कि आगे काम मिलता रहेगा। कोई फिल्म हिट हो गई तो कास्टिंग काउच के सिलसिले पर रोक लगती है वरना ये सिलसिला चलता ही जाता है। सरोज खान जैसे लोग जब फिल्म इंडस्ट्री का सच सामने लाते हैं तो उन्हें किसी का साथ नहीं मिलता। कंगना हो या पायल रोहतगी, इन सबने ख़ामोशी के साथ इस गंदगी को सहा है।
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