श्वेता पुरोहित। दुःस्वप्न:
नाभि के अतिरिक्त अन्य अङ्गों में तृण एवं वृक्ष का उगना, मस्तक पर कांसे का कूटा जाना, मुण्डन, नग्नता, मलिन वस्त्रों का धारण करना, तेल लगाना, कीच में धँसना, लेप, ऊँचे स्थान से गिरना, झूलेपर चढ़ना, कीचड़ और लोहे को इकट्ठा करना, घोड़ों को मारना, लाल पुष्प वाले वृक्षों, मण्डल, शूकर, रीछ, गधे और ऊँटों पर चढ़ना, पक्षी, मछली, तेल और खिचड़ी का भोजन, नाचना, हँसना, विवाह, गायन, वीणा को छोड़कर अन्य – वाद्यों का स्वागत करना, जल के सोते में स्नान करने के लिये जाना, गोबर लगाकर जल में स्नान करना, इसी प्रकार कीचड् युक्त जल में तथा पृथ्वी के थोड़े जल में नहाना, माता के – उदर में प्रवेश करना, चिता पर चढ़ना, इन्द्रध्वज का गिरना, चन्द्रमा और सूर्य का पतन, दिव्य, अन्तरिक्ष तथा भौम उत्पातों का दर्शन, देवता, द्विजाति, राजा और गुरुका क्रोध, कुमारी कन्याओं का आलिङ्गन, पुरुषों के साथ सम्भोग, अपने ही शरीर का नाश, विरेचन, वमन, दक्षिण दिशा की यात्रा, किसी व्याधि से पीड़ित होना, फलों तथा पुष्पों की हानि, घरोंका गिरना, घरों की सफाई होना, पिशाच, मांसभक्षी जीव, वानर, रीछ और मनुष्य के साथ क्रीडा करना, शत्रु से पराजित होना या उसकी ओर से किसी प्रकार की आपत्ति का प्रकट होना, काषाय वस्त्र को धारण करना अथवा वैसे वस्त्रवाली स्त्री के साथ क्रीडा करना, तेल-पान या उसीमें स्नान करना, लाल पुष्प और लाल चन्दन को धारण करना तथा इनके अतिरिक्त अन्य भी बहुत-से दुःस्वप्न कहे गये हैं। इन्हें देखने के बाद दूसरे से कह देना तथा पुनः सो जाना कल्याण कारक है।
ऐसे स्वप्न देखने पर :
खली लगाकर स्नान, तिल से हवन और ब्राह्मणों का पूजन करे।
भगवान् वासुदेव की स्तुति उनकी पूजा और
गजेन्द्रमोक्ष की कथा का श्रवण आदिका दुःस्वप्नका नाशक समझना चाहिये।
रात्रि के पहले पहर में देखे गये स्वप्न देखने वाले को निःसंदेह एक वर्ष में, दूसरे पहर में देखे गये छ: महीने में, तीसरे पहर में देखे गये तीन महीने में तथा चतुर्थ पहर में देखे गये एक महीने में फल देते हैं। सूर्योदय के समय देखे जाने पर दस दिन में ही फल प्राप्त होता है।
यदि एक ही रात में शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के स्वप्न दिखायी पड़ें तो उनमें जो पीछे दीख पड़ा हो, उसीका फल कहना चाहिये। इसलिये शुभ स्वप्नके देखने पर मनुष्य को पुनः नहीं सोना चाहिये।
शुभदायक स्वप्न
पर्वत, राजमहल, हाथी, घोड़ा, वृषभ- इनपर आरोहण करना हितकारक है तथा श्वेत पुष्पों वाले वृक्षोंपर चढ़ना शुभप्रद है। नाभि में वृक्ष और तृणका उत्पन्न होना, अनेक बाहुओं का होना, अनेक सिरोंञका होना, फलदान, उद्भिज्जोंका दर्शन, सुन्दर श्वेत माला धारण करना, श्वेत वस्त्र पहनना, चन्द्रमा, सूर्य और ताराओं को हाथ से पकड़ना या उन्हें स्वच्छ करना, इन्द्रधनुष का आलिङ्गन करना या उसे ऊपर उठाना, पृथ्वी और समुद्रोंको निगलना, शत्रुओंका संहार करना, संग्राम, विवाद और जूएमें जीतना, कच्चा मांस, मछली और खीरका खाना, रक्तका दर्शन या रक्तसे स्नान, मदिरा, रक्त, मद्य अथवा दुग्धका पीना, अपनी आँतों से पृथ्वी को बाँधना, निर्मल आकाश को देखना, भैंस, गाय, सिंहिनी, हथिनी तथा घोड़ियों को मुख से दुहना, देवता, गुरु और ब्राह्मणों की प्रसन्नता ये स्वप्न शुभदायक होते हैं।
गौओं के सींग से चूने वाले अथवा चन्द्रमा से गिरे हुए जलसे अभिषेक होना राज्यप्रद समझना चाहिये। राज्याभिषेक, सिरका कटना, मृत्यु, अग्नि का प्रज्वलित होना या घरमें आग लगना, राज्यचिह्नों की प्राप्ति, वीणा का स्वर सुनायी पड़ना, जलमें तैरना, दुर्गम स्थानों को पार करना,
घर में हथिनी, घोड़ी तथा गायों का बच्चा देना, घोड़े पर सवार होना तथा रोना-ये स्वप्न शुभदायक होते हैं। सुन्दरी स्त्रियों की प्राप्ति तथा उनका आलिङ्गन, जंजीरों द्वारा बन्धन, मलका लेपन, जीवित राजाओं तथा मित्रोंका दर्शन, देवताओं तथा निर्मल जलका दर्शन – ये स्वप्न शुभ कहे गये हैं।
मनुष्य इन शुभदायक स्वप्नों को देखकर बिना प्रयास के ही निश्चितरूप में धन प्राप्त कर लेता है तथा रोगग्रस्त व्यक्ति भी रोग से मुक्त हो जाता है।
श्री मत्स्यभगवान की जय