श्वेता पुरोहित। ‘पचास के दशक में सामान्य मानव करीब अठारह मिनट तक प्रतिदिन हँसा करता था, नब्बे के दशक में वही हँसी सिमटकर मात्र एक तिहाई रह गयी’- यह आकलन स्विस में आयोजित अन्तर्देशीय हँसी-समारोह में प्रस्तुत हुआ था। आज हमारे जीवन-स्तर में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, किंतु इस भाग-दौड़ एवं होड़की जीवन शैली में हमारी हँसी लुप्त प्राय हो गयी है, उसकी जगह पर परेशानी, हताशा, चिन्ता एवं तनावों ने हमारे जीवन को इतना घेर लिया है कि हम हँसना ही भूल गये और अनावश्यक तनावों से हर समय जकड़े रहने लगे हैं।
आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, तो यही उत्तर प्राप्त होता है कि हँसने एवं खुशी मनाने का कोई अवसर ही प्राप्त नहीं होता। तनावों एवं हताशाओं से जकड़ा मानव अपना सहज आनन्द, अपनी हँसी, अपना स्वास्थ्य सभी कुछ तो खो चुका है। कई लोगों के लिये हँसना तो अतीत की कोई कल्पना-सी बन गयी है। ‘ब्रिटिश लोग सर्वाधिक प्रसन्न एवं स्वस्थ रहते हैं’ ऐसा बीस देशोंमें हुए एक सर्वेक्षण से सिद्ध हुआ है, वे हर समय हँसने-हँसाने के अवसरकी प्रतीक्षामें रहते हैं।
डॉ० विलियम जो स्टेनफोर्ड चिकित्सा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध रहे, उनका निश्चित मत है कि हँसने-हँसाने से परहेज करनेवाले व्यक्ति तथा गमगीन रहनेवालोंको शीघ्र गम्भीर बीमारियाँ होती हैं। हँसनेसे मनकी चिन्ताएँ दूर होकर एपीनेफ्रेन, डोपामाइन आदि हारमोन्स उत्पन्न होते हैं, जो दर्दनाशक, एलर्जी-उपचारक एवं रोगों से मुक्ति दिलानेवाले होते हैं। हँसना एक ऐसा अनुपम व्यायाम है, जो शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि करके मानसिक तनावको दूर करता है एवं वातरोग, पेट के विकारों को उपचारित करता है। स्टेराइड नामक तत्त्व शरीर में नहीं बन पाता है, जिससे जीवनी शक्ति की वृद्धि होती है एवं शरीर रोगों से बचा रहता है।
ठहाके लगाने एवं जोरसे हँसने से शरीर में एडोर्फिन नामक रसायन की वृद्धि होती है, जो दर्दनाशक का काम करने लगता है। ठहाके लगाने एवं खुलकर हँसने से शरीर-तन्त्रमें अन्तःस्रावी क्रिया सक्रिय होकर रोगों का समूल नाश कर देती है। तनाव से दूर रहेंगे तो सर्दी, जुकाम, दमा, हृदय-रोग, उच्च रक्तचाप, बेचैनी, सिर- दर्द, पेट की तकलीफें, कमजोरी, खूनकी कमी, काममें मन नहीं लगना, स्मरणशक्ति की कमी, शरीर के भिन्न भिन्न भागों में दर्द तथा चक्कर आना आदि से छुटकारा मिलेगा। मुसकुराने, मन-ही-मन हँसने एवं हँसी दबाने से काम नहीं चलेगा।
जोरदार ठहाके लगायें, खुलकर हँसें, फिर देखें आपके कोलेस्ट्राल में कितनी कमी आती है और रोग प्रतिरोधक शक्ति कितनी बढ़ती है। इससे हृदय- रोगों से निजात मिलती है। इन्सुलिन का स्राव उचित मात्रा में होने से मधुमेह में कमी आती है। रक्तचाप ठीक- ठीक रहनेसे रक्त-संचरण सामान्य रहता है। श्वासके रोग, दमा, दम घुटना आदि रोगोंसे मुक्ति मिलती है। स्नायुओंका समुचित व्यायाम हो जानेसे शरीरकी कार्यशक्ति बढ़ती है, स्मरणशक्ति की वृद्धि होकर शरीर की जकड़न एवं दर्द तथा मानसिक तनावों सै मुक्ति मिलती है।
मानसिक तनाव शरीर में स्टेराइड तत्त्व पैदा करने लगता है, जिससे जीवनी शक्तिमें असाधारण कमी आती है। हँसने से सफेद रक्त-कण सक्रिय हो जाते हैं और बीमारी पर चारों ओर से आक्रमण करके उसका समूल नाश कर देते हैं। ठहाका लगाना स्नायुओंकी उत्कृष्ट कसरत है, जिससे शारीरिक थकान एवं मानसिक तनावका तुरंत उपचार हो जाता है। डा० कर्नल चोपड़ाका विचार है कि हास्य चाहे कृत्रिम हो या स्वाभाविक, वह हमारे शरीर पर अपना पूरा असर करता है और हमारी जीवनी शक्ति, दर्द सहनेकी क्षमता, रोग प्रतिरोधक शक्ति की अभिवृद्धि करनेमें निर्णायक भूमिका प्रस्तुत करता है।
मनुष्य को दिन में दो से चार बार अट्टहास कर लेना चाहिये। ऐसा करनेसे शरीर ठीक रहता है और रोगों का आक्रमण नहीं होता। हँसने का तात्पर्य है – प्रसन्न रहना। मानव प्रसन्न तभी रह सकता है, जब उसे किसी बातकी चिन्ता न हो, यदि वह चिन्ता की चिता में जलता रहता है तो कमजोर होकर मृत्यु की ओर अग्रसर होता जायगा। चिन्ता से बचने के लिये चिन्तामुक्त होना आवश्यक है, उसके लिये प्रसन्न रहना अत्यावश्यक है। प्रत्येक परिस्थिति को मङ्गलमय विधान समझकर प्रसन्न रहना चाहिये। प्रसन्न रहेंगे तो आप हँसेंगे और हँसेंगे तो चिन्तामुक्त तो होंगे ही। इसलिये हँसना एक ऐसी सरल औषधि है जो शरीरको स्वस्थ बना देती है।
हँसनेके लिये मस्ती आवश्यक है। विनोदी जीव सदैव मस्त रहता है और दूसरों को भी हँसाता है। अतः आप सदैव हँसमुख रहें चाहे दुःख हो या सुख। मात्र मुसकुराने से काम नहीं चलेगा, खूब जोरों से हँसें, ठहाके-पर-ठहाके लगायें, स्वयं हँसें और दूसरों को हँसायें। हँसी मुफ्त की दवा है।
डॉ० रेमण्ड मूडी का कथन सार्थक है कि हँसने से सेहत अच्छी रहती है। अमेरिकन डॉ० विलियम फ्राई का कहना है कि ठहाके लगाने से दर्द, विशेष रूप से शिरः शूल में कमी आती है। ठहाके लगाने से पाचन- संस्थान एवं फेफड़ों की बहुत कारगर कसरत हो जाती है और ये अङ्ग स्वस्थ बने रहते हैं। मनोरोगों के लिये तो ठहाके रामबाण के समान काम करते हैं।
आइये हँसिये-हँसाइये, अपने गम भुलाइये और रोगों को भगाइये।
डॉ० श्री एच्० एस्० गुगालिया