राम मंदिर मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान मुसलिम पक्षकार रहे एम सिद्दीकी के वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने आरोप लगाया कि अयोध्या में विवादित रामजन्म भूमि को लेकर हिंदू पक्ष लोगों को भड़का रहे हैं। राजीव धवन एम सिद्दीकी के कानूनी वारिश के वकील की हैसियत से इस मामले की पैरवी कर रहे हैं।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में तीन जजों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं। राजीव धवन ने बेंच से कहा कि जब यह मसला कोर्ट में लंबित है ऐसे में इससे जुड़े हर पक्ष को संयम बरतना चाहिए। लेकिन हिंदू पक्ष बिल्कुल संयम नहीं बरत रहा। वे इस संवेदनशील मुद्दों पर लोगों को भड़काने से बाज नहीं आ रहे हैं। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई के दौरान धवन का पूरा जोर रामजन्म भूमि विवाद को धार्मिक रंग देने देने पर था। ज्ञात हो कि राजीव धवन कांग्रेससी विचारधारा के वकील हैं। अपने साथी कपिल सिब्बल की तरह इनका भी जोर रामजन्मभूमि मामले को 2019 तक टालने का है ताकि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मुसलिम तुष्टिकरण का कार्ड खेल सके। धनव ने इस मामले को सुनवाई के लिए 5 से 7 जजों वाली बड़ी बेंच को सुपूर्द करने की मांग की है, ताकि इस मामले को लंबे समय तक लटकाया जा सके।
वहीं इस मामले में भगवान राम लला विराजमान की ओर से पेश हुए पूर्व एटॉर्नी जनरल तथा वरिष्ठ वकील के.परासरन ने धवन की दलील पर आपत्ति जताते हुए कहा कि धवन के क्लाइंट एम सिद्दीकी एक पक्षकार थे, उन्होंने ही निचली अदलात में इस मामले में केस दाखिल किया था। अब जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है तो ऐसे में इस मामले को कैसे बड़ी बेंच को देने की मांग की जा सकती है? मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में पहले ही कह चुका है कि सुनवाई सिर्फ लैंड डिस्प्यूट के आधार पर होगी।
मुख्य बिंदु
* बाबरी मस्जिद के पक्षकार की पैरवी करते हुए राजीव धवन ने हिंदू पक्ष पर लगाया लोगों को भड़काने का आरोप
* धवन ने इस मसले को जमीन विवाद से इतर धार्मिक विवाद साबित करने पर लगाया अपना जोर
* धनव ने इस मामले को सुनवाई के लिए 5 से 7 जजों वाली बड़ी बेंच को सुपूर्द करने की मांग की है
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के साथ जज अशोक भूषण तथा एस ए नजीर की मौजूदगी में धवन ने कहा कि हिंदू पक्ष के कुछ नेता कहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण सुनिश्चित करने के लिए वे संसद तक जाएंगे। यह साफ-साफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है। हिंदू नेता कोर्ट को दबाव में लाने का प्रयास कर रहे हैं।
इसके साथ ही राजीव धवन ने एम इस्माइल फारूकी के केस के मामले में 1994 को दिए कोर्ट के फैसले के कई तथ्य रखकर यह साबित करने का प्रयास किया कि इस मामले की सुनवाई बड़ी बेंच से कराई जाए। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मुसलमानों को नमाज पढ़ने के लिए मसजिद की कोई आवश्यकता नहीं है, जबकि यह मामला सीधे सीधे धर्म से जुड़ा है।
धवन ने अपनी दलील में हाल ही में गुरुग्राम में घटी घटनाओं को लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाला खट्टर के बयान का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि एक तरफ तो एक प्रदेश के मुख्यमंत्री कहते हैं कि मुसलिमों को मसजिद में ही नमाज अता करनी चाहिए, जबकि दूसरी ओर यह कहा जा रहा है कि नमाज के लिए मसजिद जरूरी नहीं है! ऐसे में यह सवाल उठता है कि नमाज के लिए मसजिद जरूरी है या नहीं? इसलिए पहले यह तय करने के लिए इस मामले को किसी बड़ी बेंच को सौंपा जाना चाहिए।
वहीं परासरन ने कहा कि इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले ही विवादित जमीन को बराबर-बराबर तीन हिस्सों में बांटने का निर्णय दिया है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि यह बिल्कुल ही जमीन का विवाद है। इसलिए इस मामले को किसी बड़ी बेंच को सौंपने की जरूरत नहीं है।
URL: Congress and Muslim parties want to keep the Ram Janmabhoomi issue hanging!
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