“उसने तुम्हारी देखभाल की है, तुम्हें शासन करना सिखाया है, उसे ही रास्ते से हटाओगे?” अकबर के भीतर से किसी ने जैसे सवाल किए।
“और वह तुम्हारी बहन होने के साथ उसकी बेगम भी है जिसके कारण तुम आज इस हिंदुस्तान के सुलतान हो?”
“हुंह” जैसे अकबर ने अपने जमीर के सभी सवालों को झाड़ते हुए कहा
“फूफी जात बहन कोई बहन नहीं होती है। उससे मैं निकाह कर सकता हूँ। और बैरम ने जो भी मेरे लिए किया है, उसके एवज में उसे काफी कुछ मिला है। मैं उसका अहसान मंद नहीं हूँ। उसे मेरा अहसान मंद होना चाहिए कि इतने सबूतों के बाद भी मैंने उसकी खाल नहीं उतारी!”
“वाह, खाल उतारोगे उसकी जो तुम्हारे लिए हेमू का सिर काटकर लाया और उसकी बेगम पर बुरी नजर जिसने तुम्हें जैसे गोदी में खिलाया हो!”
जमीर अकबर को चैन नहीं लेने दे रहा था। वैसे तो इन मुगलों की आदत खुद से बात करने की थी नहीं, मगर फिर भी कभी कभी उनका जमीर जाग उठता था। यह जमीर जागने वाली बात क्या की जाए, न जाने कौन सी कुघड़ी में जागता होगा और फिर केवल एक पल के लिए ही बेचैन कर देता होगा।
खैर तो उस कुबेला में हुमायूं के बेटे और बाबर के पोते अकबर का जमीर जागने लगा था। नहीं पता था कि बाबर का जमीर जागा होगा जब उसने काफिरों माने हिन्दुओं के सिरों की मीनारे बना दी थीं। और फख्र से गाजी का खिताब खुद को दिया था। अपने रिश्तेदारों द्वारा भगाया हुआ बाबर, भारत में क्रूरता की सारी हदें पार कर चुका था। हिन्दुस्तान में आने से पहले वह खून की नदी में नहाकर आया था और बाबर नाम में लिखा है कि जब वह हिन्दुस्तान की जमीन पर पहली बार आया और उसके सामने कुछ पठान अपने मुंह में घास लेकर आए थे। (घास मुंह में लेकर आने का मतलब यह हुआ कि हम तुम्हारी गायें हैं, और हम अब तुम्हारी शरण में हैं)। मगर उस क्रूर पादशाह को तो केवल अपना ही शासन चाहिए था। इसलिए उसने हर जोड़ तोड़ के साथ पठानों के साथ युद्ध किया और जब वह जीतने लगा और पठानों ने आत्मसमर्पण किया तो उसने उन्हीं पठानों की गर्दन काटकर उसी जमीन पर मीनार बना दी। उसने हिन्दुओं के सिरों की मीनार बनाई थी। तो मरे जमीर का स्थानान्तरण ही उसके पास हुआ होगा।
बाबर के बाद अफीमची हुमायूं को दिल्ली की गद्दी मिली थी। मगर वह अफीम को सम्हालता या फिर अपनी गद्दी को? इसलिए उसने अपनी अय्याशियों के चलते ठोकरें खाईं। जाते जाते वह बैरम खान को अपने बेटे अकबर का अभिभावक नियुक्त कर गया।
बैरम खान ने अकबर को अपने ही बेटे के समान माना और हिन्दुस्तान का बादशाह बनाने के लिए कमर कस ली।
बैरम खान की पत्नी सलीमा सुलतान बेगम अकबर की फुफेरी बहन थी। बैरम खान की सेवाओं से खुश होकर हुमायूं ने अपनी भांजी सलीमा सुल्तान बेगम का निकाह उससे करा दिया था।
उसी बैरम खान ने अकबर को हिन्दुस्तान की गद्दी पर बैठाया था। हेमू को पराजित करने में उसकी बड़ी भूमिका रही थी।
मगर जो भरोसा कर ले वह मुसलमान शासक ही क्या? अपने भाइयों पर यकीन रखकर हुमायूं ने जो भुगता था, अकबर उसे शायद भूला नहीं था, या कहें उसके माँ हमीदा बानू ने उसे भूलने नहीं दिया था।
वह सभी हवस के शिकारी थे। बाबर से लेकर हुमायूं और अब अकबर तक। बाबर नामा में लिखा है कि जो भी सुन्दर लड़कियां होती थीं उन्हें बादशाह की सेवा में लगा दिया जाता था। यह तो लौंडियों की बात है, लौंडों का इतिहास तो अभी छुआ ही नहीं है। अकबर भी अलग नहीं था। सलीमा सुल्तान, जो बैरम खान की बीवी थी, और उसकी बहन थी, कहते हैं वह उस पर फ़िदा हो गया था।
भारत एक ऐसा देश था, जिसमें गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता था और गुरु माँ को देवी के समान। उसी में जैसे ही कबीलाई तहजीब आई, गुरु के प्रति शंका तो आई ही, बल्कि साथ ही गुरु की पत्नी पर भी गन्दी नज़र जाने लगी।
गद्दी पर बैठते ही अकबर अपने गुरु से पीछा छुड़ाने की योजना बनाने लगा। इसमें उसे भड़काने वाले कई थे, जैसे उसकी माँ हमीदा बानू, उसकी दाई माँ माहम आगा आदि। जल्द ही बैरम खान ने हज की योजना बना ली और वह हज की तरफ चल निकला। जनवरी 1561 में पाटन, गुजरात में कुछ पठानों ने उसकी हत्या कर दी।
कुछ इतिहासकार दबी ज़ुबान में कहते हैं कि यह खून और किसी ने नहीं बल्कि अकबर ने ही कराया था और बैरम खान को अपने रास्ते से हटाने के आबाद उसने उसकी बीवी माने अपनी फुफेरी बहन सलीमा सुल्तान से निकाह किया। जिस पवित्र भूमि पर गुरु माँ का स्थान देवी के समान होता था, उसी धरती पर पतन की एक नई परिभाषा रची गयी और इतिहास में दर्ज एक महान शासक ने अपना ही पालन करने वाले का कत्ल ही नहीं कराया था बल्कि उसकी बीवी के साथ निकाह भी किया था।
यह मूल्यों का पतन था, मगर उससे भी बड़ा पतन इस बात को लेकर है कि आज भी ऐसे व्यक्ति को महान बताया जाता है जिसने अपनी पालन करने वाली माता समान महिला को विधवा किया और उसके साथ जबरन निकाह किया। एक ही स्त्री से माँ और बीवी का प्यार पाने वाला इंसान महान ही हो सकता है।
सलीमा सुल्तान बेगम अपने बेटे को लेकर अकबर के हरम में आ गईं। मगर एक सवाल यह भी है कि बैरम की विधवा तो हरम का हिस्सा बन सकती थी मगर रहीम को बादशाह का उत्तराधिकारी क्यों नहीं माना गया? क्या अकबर ने उन्हें नहीं अपनाया था?
हकीकत यही है कि मुगल वंश हवस के आशिकों का वंश था, जिसमें हर इंसान की अय्याशियों की हज़ारों कहानियाँ हैं। और हमारी विडंबना यह है कि हमें उन्हीं मुगलों को महान पढ़ना पड़ता है
संदीप जी मुगल काल के इनके हरमखोरी के खिस्से इसी प्रकार सुनते रहिए । धन्यवाद जी
धन्यवाद
बेहतरीन विश्लेषण।मुगलो के इस कुत्सित आचरणों से समाज कल अवगत कराने के लिए आपका साधुवाद।कम्युनिस्टों ने इतिहास के साथ भयंकर छेड़ छाड़ करके भारतीयों को मानसिक गुलाम बना दिया है।
धन्यवाद
Right sir