सुप्रीम कोर्ट में दो अलग-अलग मामलों में हुई सुनवाई के दौरान उस समय असहज स्थिति पैदा हो गई जब सुनवाई करने वाली बेंचों के न्यायाधीशों को कठोर टिप्पणी करनी पड़ी। प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश अरुण मिश्रा ने कहा कि बार असल में देश की न्यायपालिका की हत्या करना चाहता है और कुछ वकील तो साथ में छुरा लेकर चलते हैं। वहीं सबरीमाला मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने तो परेशान होकर गुस्से में फाइल ही फेंक दी। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल की याचिका पर प्रशांत भूषण को अवमानना का नोटिस जारी किया है। वहीं सबरीमाला मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
A bench headed by Justice Arun Mishra, while taking up contempt petitions made strong remarks against attack on judges and judiciary by lawyers even as their cases remain sub-judice. | @utkarsh_aanandhttps://t.co/IYQqLEnODI
— News18.com (@news18dotcom) February 6, 2019
प्रशांत भूषण ने देश के अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल के खिलाफ ट्वीट करते हुए उन पर झूठ बोलने तथा गलत सूचना देने का आरोप लगया था। प्रशांत भूषण के खिलाफ याचिक दायर कर भारत सरकार और केके वेणुगोपाल ने कोर्ट से उनके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी।
गौरतलब है कि वकील प्रशांत भूषण ने सीबीआई अधिकारी नागेश्वर राव के मामले के तहत अपने कुछ ट्वीट में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल के खिलाफ अनर्गल बातें लिखी थी। उन्होंने अपने ट्वीट में वेणुगोपाल पर अदालत में लंबित मामलों में जानबूझ कर गलत जानकारी देने का आरोप लगाया था। इससे आहत वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना के तहत कार्रवाई करने की मांग की थी। इस मामले में सुनवाई करते हुए न्यायाधीश अरुण मिश्रा के नेतृत्व वाली बेंच ने प्रशांत भूषण को अवमानना का नोटिस जारी कर दिया है। अब इस मामले में अगली सुनवाई 7 मार्च को की जाएगी।
वहीं सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली बेंच में हो रही सबरीमाला मामले की सुनवाई के दौरान हंगामा हो गया। समरीमाला विवाद पर हुए हंगामे से मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई इतने नाराज हो गए कि उन्होंने गुस्से में आकर फाइल फेंक दी और कहा कि अगर याचिकाकर्ता कोर्ट में इस प्रकार से पेश आएंगे तो कोर्ट मामलों पर बहस करना ही बंद कर देगा। इस दौरान उन्होंने वकील मैथ्यूज नेदुमपारा से अपनी सीट पर बैठने को कहा।
हंगामा से पहले सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील एम सिंघवी ने कहा कि इस पृथ्वी पर हिंदुत्व ही सबसे विविधताओं वाला धर्म है। यहां जरूरी धार्मिक परंपराओं को ही मान्यता दी गई है जो सभी हिंदुओं के लिए नैतिक हैं? क्या यह संभव है? उन्होंने कहा कि विविधताओं वाले धर्म में किसी एक परंपरा को मान्यता देना सही नहीं है। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता आर.वेंकटरमणी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को संप्रदाय नहीं तय करना चाहिए।
गौर हो कि सुप्रीम कोर्ट ने चार महीने पहले केरल के प्राचीन अयप्पा मंदिर में हर आयु की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने का फैसला सुनाया था। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई की, जिसके तहत 2018 में दिए फैसले को चुनौती दी गई थी। सीजेआई के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ को इन 60 याचिकाओं पर सुनवाई करनी है।
मालूम हो कि इस मामले की सुनवाई तो 22 जनवरी को ही होनी थी लेकिन जस्टिस इंदू मल्होत्रा की छुट्टी पर होने की वजह से आज सुनवाई हुई। वह चूंकि पांच सदस्यों वाले पैनल में हैं, लिहाजा उनके कारण सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाई गई। सितंबर में कोर्ट के आए फैसले के दौरान बेंच में वह अकेली न्यायाधीश थीं, जिन्होंने निर्णय से अलग मत रखते हुए कहा था कि कोर्ट को धार्मिक भावनाओं के मामले में दखल नहीं देनी चाहिए।
Devoswom Board changes its stand in the #SupremeCourt on #Sabrimala. Rakesh Dwivedi, for the Board, says the Board has decided to respect the #SupremeCourt judgment, allowing women of all ages in the temple. Earlier, the Board had argued in favour of exclusion |@News18Courtroom https://t.co/cpHXO5QpTL
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) February 6, 2019
आज जब सबरीमाला मामले की सुनवाई हुई देवोसोम बोर्ड ने अपने रुख में बदलाव किया है बोर्ड के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा है कि बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान करने का फैसला किया है। द्विवेदी ने कहा कि हालांकि बोर्ड ने बहिष्कार का पक्ष लिया था लेकिन अब कोर्ट ने अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का पक्षधर है। वहीं केरल सरकार ने तर्क दिया है सामाजिक शांति में व्यवधान संविधान के गलत दृष्टिकोण को जारी रखने का आधार नहीं हो सकता है। आवश्यक धार्मिक प्रथाओं और एक मंदिर के बीच बहुत बड़ा फासला होता है । किसी को इन दोनों में घालमेल कर भ्रमित करने नहीं दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
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