भारत में यूं तो धर्म परिवर्तन की बहुत सी कहानियां सुनने को मिलती हैं कि अमुक हिंदू व्यक्ति या परिवार ने क्रिश्चियन मिशनरियों से प्रभावित हो हिंदू धर्म त्याग कर ईसाई धर्म अपना लिया. इसमे भी आमतौर पर यह सोच है कि क्रिश्चियन मिशनरियों के ब्रेनवांश का शिकार अक्सर गरीब परिवार ही बनते हैं जो कि आर्थिक तंगी से गुज़रने की वजह से पैसे आदि की मदद मिलने के कारण ईसाई धर्म अपना लेते हैं.
लेकिन सच्चाई यह है कि मिशनरियां सिर्फ भारत के गरीब परिवारों को ही टार्गेट नहीं करतीं. बल्कि कई अच्छे खासे पैसे वाले उच्च मध्यम्वर्गीय परिवार भी इनके वशीभूत होकर धर्म परिवर्तन की राह पकड़ लेते हैं.
आज हम एक ऐसे इंसान की कहानी बतायेंगे जिन्होने परिवार सहित हिन्दू धर्म को छोड़्कर ईसाई धर्म अपना लिया था. और वे सिर से लेकर पांव तक ईसा मसी की आराधना में और ईसाई धर्म की सारी मान्यताओं में डूब चुकी थीं. लेकिन तभी उनके मन में यह विचार आया कि किसी भी नये धर्म को ऐसे जाने, परखे बिना अपनाना क्या उचित है? और फिर उन्होने ईसाई धर्म पर गहन अध्ययन किया, जिसके कुछ समय पश्चात ही उन्होने यह धर्म त्याग दिया.
एस्तेर धनराज की कहानी एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिनके पूरे परिवार ने हिंदू धर्म को त्याग कर ईसाई धर्म अपना लिया. फिर उसके कुछ समय बाद एस्तेर ने भी ईसाई धर्म अपना लिया. लेकिन एस्तेर का तेज़ दिमाग और उनकी अद्धितीय बौद्धिक क्षमतायें बार बार ईसाई धर्म के प्रति उनकी अंधभक्ति में बाधा बनते रहे.
राजीव मलहोत्रा आंफिशियल यू ट्यूब चैनल पर आप एस्तेर धनराज की पूरी कहानी सुन सकते हैं. राजीव मलहोत्रा इंडोलांजी के क्षेत्र में यानि हिंदू धर्म, सभ्यता, दर्शन, विज्ञान, आदि के अध्ययन के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा नाम हैं. वे एक विश्व प्रसिद्ध लेखक भी हैं. तो जो कुछ भी एस्तेर ने इंटरव्यू के दौरान राजीव जी को बताया था, उसी का कुछ अंश हम यहां आपके समक्ष प्रस्तुत करने जा रहे हैं.
एस्तेर धनराज का जन्म एक तेलुगू ब्राहमण परिवार में हुआ था. उनके इंटरव्यू के अनुसार उनका परिवार अत्यधिक धार्मिक था. अब ये अपने आप में ही एक अचम्भे की बात है. कोई ऐसा परिवार जिसकी धर्म में कोई खासा दिलचस्पी न हो, पैसे के मोह में या आर्थिक तंगी के चलते मजबूरी में वह अगर धर्म परिवर्तन की राह अपना ले तो बात समझ में आती है. लेकिन एक बेहद धार्मिक उच्च मध्यम्वर्गीय ब्राहमण परिवार अचानक अपना धर्म छोड़्कर क्रिश्चियन बन जाता है, यह बात कुछ अजीब से ही लगती है.
लेकिन यह सब अचानक नहीं हुआ. एस्तेर के मुताबिक किसी कारणवश उनके पूरे परिवार को उड़ीसा शिफ्ट होना पड़ा. उड़ीसा में उनके पड़ोस में एक ईसाई परिवार रहता था. और यह लोग फिर हर दूसरे दिन एस्तेर के घर आकर उनके मां बाप को ईसाई धर्म की महानता के बारे में बताने लगे, बाइबिल के उपदेश सुनाने लगे. अब यहां एक बात ज़ेहन में आती है कि हिंदू धर्म के अनुयायी परिवार इस प्रकार जबरन लोगों के पास जाकर हिंदू धर्म का बखान नहीं करते, उन्हे धर्म परिवर्तन के लिये उकसाने की कोशिश नहीं करते जिसकी मूल वजह यह है कि हिंदू धर्म के मूल में ही सर्वधर्म समभाव और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना निहित है. हिंदू धर्म आक्रामक नहीं है जबकि एब्रेहैमिक धर्म सिद्धांत और आचरण दोनों की ही धरातल पर आक्रामक होते हैं.
खैर, एस्तेर की कहानी की ओर लौटते हुए, तो धर्म परिवर्तन का यह सिलसिला उड़ीसा के क्रिश्चियन पड़ोसियों के उपदेशों से शुरू हुआ. उसके बाद एस्तेर का पूरा परिवार हैदराबाद जाकर बस गया जहां फिर उनके पड़ोस में एक ईसाई परिवार था. और एस्तेर के मुताबिक इस परिवार ने उनके ईर्द ईसाई धर्म का ऐसा ताना बाना बुना कि अंतत: उनके परिवार ने हिंदू धर्म छोड़्कर ईसाई धर्म अपना लिया.
हालांकि धर्म बदलने का निर्णय लेने में उन्हे लगभग एक साल का समय लग गया. और इस दौरान लगातार, हर दूसरे दिन,स्थानीय गिरिजाघर के पादरी एस्तेर के परिवार को उनके घर आकर तेलुगू में बाइबिल का उपदेश देते. यानि उन्होने एस्तेर के परिवार को एक ऐसे भावनात्मक जाल में फंसा लिया जिसमे से उनके लिये निकलना लगभग असंभव हो गया.
और एस्तेर के मुताबिक एक अहम बात यह भी थी कि उपदेश के दौरान वे ईसाई धर्म के दर्शन से जुड़ी कोई बहुत गूढ बातें नहीं बताते थे बल्कि सीधी सादी भाषा में इस प्रकार की बातें कहते थे कि ईसा मसी सभी को प्रेम करता है, किसी को दुख या तकलीफ में नहीं देक्ख सकता वगैरह, वगैरह.
अब आप खुद ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जो धर्म एक एक परिवार पर इतना समय और साधन व्यय कर रहा हो कि चूंकि उस परिवार के धर्मांतरण की संभावना दिख रही है तो एक पादरी नियमित रूप से वहां आकर बाइबल के उपदेश देते हैं, वो भी उनकी स्थानीय भाषा में, तो वह धर्म धर्मांतरण को लेकर किस हद तक मह्त्वाकांक्षी होगा.
अब यहां बात यह भी उठती है कि हिंदू धर्म में मंदिर के पुजारी, पंडित इत्यादि अनुयायियों के घरों में जाकर उन्हे जीवन की कठिनाइयों से उबरने का ढाढस नहीं बंधाते. यदि वे भी घरों में जाकर इस प्रकार अपने धर्म के लोगों का मार्गदर्शन करते शायद एस्तेर धनराज जैसे लोगों का पूरा परिवार इस प्रकार ब्रेनवांश होकर ईसाई धर्म न अपना लेता.
खैर, कहानी को आगे बढाते हुए, अपने परिवार के ईसाई धर्म अपनाने के कुछ साल बाद एस्तेर ने भी इस धर्म को विधिवत अपनाया. वे करीब 18 साल की रही होंगी जब उन्होने ईसाई धर्म अपनाया. उनके जीवन का दिलचस्प मोड़ तब जब वह अपने विवाह के कुछ साल उपरांत अपने पति के साथ अमरीका रहने गईं.
एस्तेर का विवाह भी एक ईसाई परीवार में ही हुआ था. तो वे अमरीका रहने गयीं. और अमरीका में उनके मन में ईसाई धर्म को लेकर तरह तरह के सवाल उठने लगे. इसीलिये उन्होने इस धर्म के क्षेत्र में ही शोध करने का विषय बनाया. एस्तेर ने अमरीका में ‘डिविनिटी ‘ में मास्ट्र्ज़ प्रोग्राम में खुद को इनरोल कराया. यानि ईसाई धर्म का संपूर्ण दर्शन, उसका इतिहास, यह सब पढ्ने का एस्तेर को मौका मिला.
एस्तेर के इंटरव्यू के अनुसार जब उन्होने इस कोर्स में अर्जित किये ज्ञान की रोशनी में बाइबल पढी तो उन्हे बाइबल में बहुत से विरोधाभास नज़र आये, जिनहे महसूस कर के उनका मन विचलित हो उठा, परेशान हो उठा. क्योंकि अभी तक तो वे गिरिजाघर मे बाइबल को बस ईश्वर का फरमान समझकर पढ्ती आई थीं. लेकिन जब उसी बाइबल को उन्होने अपनी बौद्धिक क्षमताओं के माध्यम से परखा तो उसमे इतनी त्रुटियां, इतने विरोधाभास नज़र आये कि वे स्तब्ब्ध रह गयीं. और ईसाई धर्म और चर्च पर से उनका विश्वास डगमगाने लगा.
फिर उन्होने कोर्स के अंतर्गत ही ईसाई धर्म का इतिहास पढा. बस इतिहास पढ्ने भर की देर थी कि उनका मन ईसाई धर्म से पूरी तरह विरक्त हो उठा. जो मन में उस धर्म के प्रति शंकायें उठ रही थीं, वे सभी यकीन में परिवर्तीत हो गयीं. जब उन्होने ईसाई धर्म में होने वाली क्रुसेड्ज़ या धार्मिल लड़ाइयों का इतिहास पढा कि किस प्रकार सिर्फ उस धर्म को आगे बढाने के लिये, उसका एकछत्र राज्य स्थापित करने के लिये इतना विध्वंस, इतना रक्तपात किया गया, गांव के गांव तबाह कर दिये गये, तब उनका मन पूरी तरह से उचाट हो गया. उन्हे लगा कि जो धर्म लोगों को दिखावे के लिये प्रेम और भाइचारे का पाठ पढाता है लेकिन उस का खुद का इतिहास रक्तपात से भरा पड़ा है, वह धर्म कितना पाखंडी होगा.
फिर एस्तेर ने कुछ समय बाद चर्च जाना छोड़ दिया. ईसाई धर्म त्याग दिया. तो धर्मांतरण संबंधी यूं तो बहुत सी घटनायें सुनने को मिली होंगी लेकिन एक ऐसी घटना बिरले ही सुनने को मिलती है जब एक व्यक्ति धर्म परिवर्तन के बाद भी बौद्धिकता की कसौटी पर उस नये धर्म को परखने का निर्णय लेता है. और जब वह धर्म उस कसौटी पर खरा नही उतरता, तो उसे त्यागने की भी हिम्मत रखता है.
सिर्फ यहीं नहीं, एस्तेर धनराज ने अपनी पूरी कहानी यू ट्यूब जैसे सार्वजनिक मंच पर आकर दुनिया के सामने बताई, यह खुलकर बताया कि किस प्रकार उनकी पूरे परिवार को ईसाई धर्म अपनाने के लिये ब्रेनवांश किया गया, यह वाकई में बड़ी ही हिम्मत का काम है. वह जानती हैं कि उन्हे किस किस प्रकार से कहं कहां ट्रोल किया जा सकता है, धमकाया जा सकता है लेकिन फिर भी वे आगे आईं और सच्चाई के साथ खड़ी हुईं.
एस्तेर धनराज ने धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने सभी भारतीयों को यह संदेश भी दिया कि इस प्रकार अंधभक्त बन किसी नये धर्म का अनुसरण न करें. उस धर्म को जानें परखें, सवाल करें, सोच-विचार करें, उसके बारे में पढें और यदि यह सब करने के बाद वह धर्म आपकी बौद्धिकता की कसौटी पर खरा न उतरता हो तो उसे जबरन न अपनाये.