देश मे कोरोना वायरस के बढ्ते संक्रमण के इस कठिन समय में सोशल मीडिया के माध्यम से तरह तरह की फेक न्यूज़, अफवाहें फैलाने का दौर जारी है.
एक फेक न्यूज़ जिसका हाल ही में भंडाफोड़ हुआ है, वह हैंड सैनिटाइज़र के उपयोग को लेकर है. किसी स्थानीय हिंदी पत्रिका या अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक सैनिटाइज़र के लगातार इस्तेमाल से, इसके 50-60 दिन तक के लगातार प्रयोग से कैंसर, त्वचा के रोग खतरा बन जाता है. पी आई बी फैक्ट चेक ने इस फेक न्यूज़ का भंडाफोड़ किया है . पी आई बी फैक्ट चेक ने अपने ट्विटर हैंडल में लिखा है कि रिपोर्ट में दी गयी जानकारी सरासर गलत है. कोविड 19 से बचाव के लिये बल्कि यह आवश्यक है कि इसे सैनिटाइज़र्स का उपयोग किया जाये जिनका एल्कंहाल कंटेंट 70 प्रतिशत हो.
कोरोना वायरस संक्रमण के दौरान बार बार हैंडसैनिटाइज़र इस्तेमाल करने के दिशा निर्देश सिर्फ भारत मे ही नही बल्कि विश्व के सभी देशों मे दिये जा रहे हैं, खासकर कि जब लोग बाहर हों. घरों में तो बार बार साबुन से हाथ धो कर लोग अपने आप को सुरक्षित रख सकते हैं. लेकिन बाहर, सार्वजनिक स्थानों पर जब बार बार इतनी सारी चीज़ों को, इतनी सारी सतहों को लोग छुते हैं, तो हैंड सैनिटाइज़र का प्रयोग करना आवश्यक बन जाता है. किसी प्रकार के इंफेक्शन को रोकने के लिये और पर्सनल हाइजीन रखने के लिये सैनिटाइज़र का उपयोग दुनिया भर के अस्पतालों मे होता है, यह आम बात है. आज कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के लिये भारत के ही करोडो लोग , खासकर कि जब वे बाहर होते हैं, अपनी सुरक्षा के लिये हैंड सैनिटाइज़र का प्रयोग कर रहे हैं. ऐसे मे इस प्रकार की खबरें फैलाना कि हैंड सैनिटाइज़र का प्रयोग करने से कैंसर हो जायेगा, इसमे क्या औचित्य है?
बहुत सी फेक न्यूज़ का सीधा निशाना भारत सरकार और उससे जुड़े संगठ्नों पर होता है. कोरोना वायरस संक्रमण के समय तेज़ी से फैलायी जा रही इन मनगढंत खबरों का सीधा सीधा उद्देश्य होता है समाज की नज़रों में सरकार की छवि धूमिल करना, उसके सामने यह साबित करना कि सरकार तो ऐसे समय में अपना काम ठीक ढंग से कर ही नही रही, बल्कि वह तो मुनाफाखोरी में लीन है और लोगों को प्रताड़ित कर गरीबी और भुखमरी फैला रही है. और ऐसी फेक न्यूज़ को पहचानना अक्सर बहुत मुश्किल होता है. क्योंकि ये सरकार से जुड़े संगठनों से ही आंकड़े लेकर उन्हे तोड़ मरोड़ कर, गलत परिवेश के साथ इस प्रकार से पेश करती है कि लोग फेक न्यूज़ पहचानना तो दूर, वह उल्टे उसे अच्छी पत्रकारिता मान बैठते हैं. और चूंकि अच्छी पत्रकारिता का लक्ष्य उन सचों को उजागर करना होता है, जिंन्हे आमतौर पर छुपाया जाता है तो बस फेक न्यूज़ वाले अच्छी पत्रिका के इसी लक्षण को भुनाकर अपने झूठ का कारोबार चलाते हैं.
एक ऐसी ही फेक न्यूज़ हाल ही में स्क्रोल मीडिया आउटलिट ने भारत में खाद्यान्न यानि अनाज की बरबादी को लेकर बनाई थी. इस फेक न्यूज़ के अनुसार भारत में जनवरी से लेकर मई 2020 के बीच में 65 लाख टन खाद्यान्न की बरबादी हुई. पी आई बी फैक्ट चेक ने इस फेक न्यूज़ का भंडाफोड़ किया. और अपने ट्विटर हैंडल के द्वारा लोगों को सूचित किया कि किस प्रकार से स्क्रोल की पत्रकारिता टीम ने तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर ये झूठी खबर बनाई हैं. कि किस प्रकार से जो खाद्यान्न ट्रांस्पोट होने की प्रर्किया में थे, उन्हे स्क्रोल ने बरबाद हुए खाद्यान्न बता दिया. उआनि उनसे जुड़े आंकड़ो को स्त्र्ल ने गलत परिवेश में प्रस्तुत कर उन्हे जबरन बरबाद हुए खाद्यान्न से जोड़ दिया.
इस फेक न्यूज़ को लेकर भारतीय खाद्य निगम ने स्क्रोल मीडिया की कड़ी आलोचना करते हुए स्क्रोल के संपादक को एक पत्र भी लिखा है जिसमे इस बात को विस्तार से रेखांकित किया गया है, समझाया गया है कि किस प्रकार से स्क्रोल ने भारतीय खाद्य निगम द्वारा दिये गये आंकड़ो का न सिर्फ गलत अर्थ लगाया बल्कि इतनी बड़ी बात कहने और लिखने से पहले तथ्यों की ठीक प्रकार से जांच पड़ताल करना भी उचित नही समझा.
भारतीय खाद्य निगम के एग्ज़्यूकेटिव डांयरेक्टर द्वारा लिखित यह पत्र ओपेड इंडिया की साइट पर प्रकशित एक लेख में दिया हुआ है. हम इस लेख का लिंक साथ में दे रहे हैं. लिंक के जरिये आप यह पूरा पत्र पढ सकते हैं. पत्र के अनुसार , स्क्रोल में जो फेक न्यूज़ प्रकाशित हुई थी, वह कोविड 19 लांकडाउन के अर्थव्यवस्था और कृषि पर पड़े प्रभाव को केंद्र में रखकर लिखे गये एक शोध-पत्र के आधार पर थी. सोसाइटी फार सोशल एंड इकांनमिक रिसर्च नाम के संगठ्न द्वारा प्रकाशित इस शोध पत्र के अवतरण के आधार पर ही स्क्रोल की न्यूज़ बनाई गयी थी. एफ सी आई के पत्र के अनुसार जो खाद्यान्न मंडियों में थे या ट्रांज़िट में थे, यानि अपने गंतव्य स्थल तक पहुंचने की प्रक्रिया में थे, उन्हे स्क्रोल की रिपोर्ट द्वारा बरबाद हुआ अनाज करार दे दिया गया! यानि अनाज का जो स्टाक प्रोक्युरमेंट सेंटर्ज़ में पडा था, उसे बरबाद करार दे दिया गया! जो कि बिल्कुल गलत और बेसिरपैर की बात है क्योंकि जब एक जगह से दूसरी जगह तक्क अनाज पहुंचाया जाता है तो ज़ाहिर सी बात है कि हर समय प्रोक्युरम्मेंट सेंटर में कुछ न कुछ मात्रा में तो ऐसा अनाज होगा ही जो अभी स्टॉरेज सेंटर नहीं पहुंचा है. बस यहीं स्क्रोल ने अपनी कारस्तानी दिखा दी. जो अनाज मात्र अपने गंतव्य स्थल तक पहुंचने की राह में था, उसे वेस्टेड यानि अनुपयोगी अनाज बताकर एक झूठी, सनसनीखेज़ खबर बना डाली.
ओपेड की साइट पर प्रकाशित एफ सी आई द्वारा स्क्रोल को लिखे गये पत्र में अंत में असली आंकड़े भी दिये गये हैं. पत्र के अनुसार 2019-20 में ऐसे खाद्यान्न की मात्रा जो कि बरबाद हो चुका है, अनुपयोगी है, सिर्फ 1930 टन है. जबकि स्क्रोल की रिपोर्ट के शीर्षक के मुताबिक यह आंकड़ा 65 लाख टन है! क्योंकि उसने इस आंकडे में उस सारे अनाज के आंकडे जोड़ दिये जो अपने गंतव्य स्थल तक्क पहुंचने की प्रकिया में था.