विपुल रेगे। जावेद अख्तर की ‘मुखरता’ जग प्रसिद्ध है। अब उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को लेकर आलोचना राग छेड़ा है। उनके अनुसार मोदी की सुरक्षा में चूक मनगढंत थी। शायर का कहना है कि देश के बीस करोड़ मुस्लिमों पर प्राणों का संकट बना हुआ है। जावेद ने ये कृत्रिम संकट एक बयान के कारण खड़ा किया है। छत्तीसगढ़ की धर्म संसद में दिया गया बयान न सरकार का था और न किसी पार्टी का, किन्तु उस बयान का रुख़ अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और जावेद अख़्तर ने चालाकी से सरकार की ओर मोड़ दिया है। टुकड़े-टुकड़े गिरोह के ‘भोंपू’ बन चुके जावेद अख़्तर ने धर्म संसद में दिए बयान की तुलना केंद्र सरकार की आधिकारिक सूचना से कर प्रधानमंत्री के हत्या के प्रयास को मनगढ़ंत ठहराने का प्रयास किया है।
एक बहुत सफल शायर और गीतकार जावेद अख़्तर की छवि भारत में बड़ी भली दिखाई जाती है। भारत का जादूगर मीडिया इतना गुणी है कि वह आपके सम्मुख किसी नायक को खलनायक बनाकर प्रस्तुत कर सकता है और किसी काइयाँ व्यक्ति को समाज सुधारक की छवि के रुप में भी दिखा सकता है। यदि जावेद अख़्तर के अतीत में झांककर देखा जाए तो पता चलेगा कि मीडिया ने उनकी जो छवि बना रखी है, वे उसके अनुरुप बिलकुल भी नहीं है।
यहाँ तक भी कहा जा सकता है कि बहुत शुरुआती दौर में लव जेहाद को सुसंस्कृत रुप में प्रकट करने में दिलीप कुमार, जावेद अख्तर और नसीरुद्दीन शाह प्रतिनिधि रहे हैं। उनके बाद शाहरुख़ ख़ान और आमिर खान ने इस प्रतिनिधित्व को संभाले रखा। जावेद को लव जेहाद से जोड़ने का सीधा सा कारण है, उनका प्रथम विवाह। जावेद अख्तर का प्रथम विवाह ताश के खेल की बैठक में तय हुआ था।
हनी ईरानी के साथ ताश खेलते हुए जावेद ने कहा कि हनी के बाँटे पत्ते अच्छे निकले तो वे उनसे विवाह कर लेंगे। पत्ते अच्छे निकले और दोनों का विवाह घरवालों की आज्ञा से हो गया। विवाह उपरांत उनके दो बच्चे फरहान और ज़ोया हुए। उल्लेखनीय है कि हनी ईरानी उस समय सत्रह वर्ष की टीनएजर थी और जावेद उनसे दस वर्ष बड़े थे। विवाह के कुछ वर्ष बाद ही जावेद को शराब के व्यसन ने घेर लिया।
जावेद एक दिन कैफ़ी आज़मी के घर अपने शे’र सुनाने गए और उनकी भेंट कैफ़ी की युवा अभिनेत्री पुत्री शबाना आज़मी से हो गई। प्रेम के फूल खिलने लगे। जब बात आगे बढ़ी तो दोनों के परिवारों से विरोध हुआ। अपितु शबाना के पिता का कहना था कि वे विवाहित पुरुष के साथ बेटी का विवाह नहीं करेंगे। इसके बाद जावेद ने हनी से फौरन तलाक लेकर शबाना से विवाह कर लिया था। जावेद से हुए दोनों बच्चों को हनी ने पाला।
जब तक उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में काम नहीं मिला, वे साड़ियों पर फॉल लगाकर थोड़े पैसे कमाती और बच्चों को पालती थी। हनी ईरानी एक पारसी महिला थी और पति के प्रति समर्पित थीं। उन्होंने जावेद की तरह दूसरा विवाह नहीं किया। जब वें सफल स्क्रीनप्ले लेखक बन गईं, तब भी उन्होंने दूसरा विवाह नहीं किया। जो शायर अपने पहले प्रेम को लेकर ही इतना क्रूर हो, वह एक अच्छा मनुष्य होगा, इसमें भी संदेह है।
प्रधानमंत्री को कटाक्ष में ‘मिस्टर मोदी’ कहने वाले जावेद अख्तर स्वयं को साम्प्रदायिक सद्भाव से लबालब भरा व्यक्ति बताते हैं। इनका मित्र मीडिया भी यही बात कहता है। हालाँकि मिस्टर अख़्तर ने जिनसे दूसरा विवाह किया है, उनका परिवार कम साम्प्रदायिक नहीं था। शबाना आज़मी के पिता और जावेद के श्वसुर पर ये आरोप लगता रहा है कि अपनी शायरी के ज़रिये उन्होंने जमकर सांप्रदायिकता फैलाई है।
सरदार पटेल द्वारा सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण पर कैफ़ी आज़मी की लिखी ज़हरीली तहरीर इन दिनों ट्वीटर और फेसबुक पर बहुत नुमाया हो रही है। जावेद साहब को लगता है कि वे और उनके मीडिया मित्र कैफ़ी आज़मी को स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाला बताते रहेंगे और कभी उनके झूठ का घड़ा नहीं फूटेगा। जावेद साहब ये सोशल मीडिया है। यहाँ किसी का सत्य छुप नहीं सकता।
जो व्यक्ति अपने जीवनभर सांप्रदायिकता फैलाता रहा, जिसने अपने प्रथम पत्नी के प्रेम को अपमानित कर दिया, वह प्रधानमंत्री को ज्ञान देता है। वह देश के हिन्दुओं को ज्ञान देता है। जावेद की अभिनेत्री पत्नी शबाना आज़मी के बयान क्या कम विषाक्त है। हाल ही में ये दोनों पति-पत्नी ‘बुल्ली बाई एप्प’ को लेकर बयानबाज़ी कर रहे हैं। एक यूजर ने शबाना को बताया कि केवल जावेद ही नहीं, बल्कि उनके पूर्वज भी कम साम्प्रदायिक नहीं थे।
जावेद के परिवार की सांप्रदायिकता का इतिहास तो अठारहवीं शताब्दी तक जाता है। जावेद के पूर्वज फ़ज़ले हक़ खैराबादी के बारे में कहा जाता है कि उसने ब्रिटिश शासन के साथ अन्य धर्मों के विरुद्ध भी फतवा जारी किया था। हालाँकि इतिहास उसे एक स्वतंत्रता सेनानी बताता है लेकिन सच्चाई इससे बिलकुल परे है। ऐसा भी कहा जाता है कि फज़ले हक़ ने एक हनुमान मंदिर तोड़ने का फतवा भी जारी किया था।
वास्तव में जावेद अख्तर, नसीरुद्दीन शाह, शबाना आज़मी और सैफ अली खान पाकिस्तान की विचारधारा के प्रतिनिधि हैं। सैफ अली खान के पाकिस्तानी चाचा शेर अली खान पटौदी ने सन 1971 में प्रथम बार ‘पाकिस्तानी विचारधारा’ नामक शब्द का प्रयोग किया था। बाद में ये विचारधारा भारत के लाखों मुस्लिमों में भी घर कर गई। जावेद अख्तर ने अपने ताज़ा बयान में मिस्टर मोदी को देश के बीस करोड़ मुस्लिमों के लिए लगभग धमकाया है।
ये देख समझ आता है कि फज़ले हक़ की विषाक्त विचारधारा अनवरत उसके वंशजों के रक्त में भी दौड़ती रही है। ज़ावेद अख्तर अठारहवीं सदी का वह भूत है, जो इक्कीसवीं सदी के भारत को अपनी कट्टरता से भयभीत करता रहता है।