जब भारत आजाद हुआ, उस वक्त सिक्किम एक रियासत हुआ करता था। शुरुआत में सिक्किम को भारत में मिलाने की बात सरदार पटेल ने की थी लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चीन से संबंधों को ध्यान में रखकर ऐसा नही किया। हालांकि, आगे चलकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रॉ की मदद से सिक्किम विलय के काम को अंजाम दिया।
सिक्किम के राजा पालडेन नामग्याल और उनकी पत्नी के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी। (Photo Credit – Express Archive)
जब मुल्क आजाद हुआ तो सैकड़ों रियासतों की तरह सिक्किम भी एक आजाद रियासत थी। सरदार पटेल (Sardar Patel) का बस चलता तो जूनागढ़ और हैदराबाद की तरह सिक्किम का भी भारत में विलय हो चुका होता, मगर चीन से रिश्तों की दुहाई देते हुए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Pandit Jawahar Lal Nehru) ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। पिता के इस अधूरे रोके काम को अंजाम तक पहुंचाया उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने और इस काम में देश की खुफिया एजेंसी रॉ ने अहम भूमिका निभाई थी।
सिक्किम का स्टेटस: आजादी के वक्त सिक्किम में चोग्याल वंश का राज था। इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के सहयोगी रहे पी.एन.धर के मुताबिक नेहरू को लगता था कि अगर सिक्किम को भारत में नहीं मिलाया गया तो चीन (China) तिब्बत पर आक्रमण नहीं करेगा। मगर वो गलत साबित हुए। जिसके बाद 1950 में भारत और सिक्किम के बीच एक ट्रीटी साइन हुई। जिसके अनुसार सिक्किम भारत का प्रोटेक्टोरेट राज्य बन गया। “यानी सिक्किम में राज्य राजा का होगा लेकिन डिफेंस और विदेश मामलों से जुड़े मुद्दे भारत सरकार देखेगी।” साल 1964 तक ऐसा ही चला, फिर नेहरू (Nehru) की मृत्यु के बाद सिक्किम के राजा पालडेन नामग्याल (Raja Palden Namgyal) स्टेटस क्वो में बदलाव की मांग करने लगे। उनका कहना था कि 1950 की ट्रीटी में बदलाव करते हुए सिक्किम को भूटान जैसा स्टेटस मिले, यानी एक अलग स्वतंत्र देश।
सिक्किम को ‘परमानेंट एशोसिएशन’: 1970 में अंदरूनी कलह से जूझ रही इंदिरा गांधी सरकार ने राजा चोग्याल (King Chogyal) को सिक्किम के लिए ‘परमानेंट एशोसिएशन’ का स्टेटस ऑफर किया। तब के आर्मी चीफ जनरल मानेकशा सिक्किम में आर्मी की तैनाती चाहते थे और इंदिरा सिक्किम का विलय (Accession of Sikkim) भारत में चाहती थी। ऐसे में पीएम गांधी ने रॉ चीफ आर.एन.काव (R&AW Chief R N Kao) से पूछा कि क्या तुम ये काम कर सकते हो ?
रॉ की एंट्री: नितिन गोखले अपनी किताब ‘आर.एन.काओ: जेंटलमेन स्पाय मास्टर’ (RN Kao: Gentlemen’s Spy Master) में लिखते हैं कि “सिक्किम को लेकर तब एक योजना तैयार की गई। पीएन बनर्जी (R&AW Joint Director PN Banerjee) तब रॉ में जॉइंट डायरेक्टर के पद पर तैनात थे। सिर्फ चार दिनों में उन्होंने एक प्लान बनाया और आर.एन. काओ ने इसे इंदिरा के सामने पेश किया। इंदिरा ने प्लान पर मुहर लगा दी। प्लान ये था कि चोग्याल राजशाही (Chogyal Monarchy) को धीरे-धीरे कमजोर किया जाए और इसके लिए सिक्किम की लोकल राजनीतिक पार्टियों की मदद ली जाए।”
रॉ का मिशन सिक्किम: 1973 की शुरुआत में दो ऑपरेशन एक साथ शुरू किए गए। जिनके नाम थे- जनमत और ट्वायलाइट। असल में ये नाम सिक्किम नेशनल कांग्रेस (Sikkim National Congress) के दो नेताओं को काजी और केसी प्रधान (K C Pradhan) को दिए गए थे, जिनके सहयोग से ही ये सारी योजना चलनी थी। इसी दौरान रॉ को एक सीआईए (CIA) ऑपरेटिव का पता चला। जिसके बाद तय हुआ कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनने से पहले सिक्किम को भारत में मिलाना है।
जनमत राजा के खिलाफ और भारत के पक्ष में था। 1974 में सिक्किम में चुनाव हुए, जिसमें 70 फीसदी से ज्यादा भारत समर्थक सदस्य जीतकर आए। इस बीच सिक्किम (Sikkim) के शाही गार्डस ने आम जनता पर शक्ति प्रदर्शन किया तो वहां के चुने हुए प्रतिनिधियों ने भारत से सैन्य हस्तक्षेप की मांग की, जिसे तुरंत मान लिया गया।
फिर सिक्किम बना भारत का हिस्सा: 8 अप्रैल 1975 इंडियन आर्मी (Indian Army) की तीन बटालियन सिक्किम के राज भवन पहुंची और 20 मिनट ने उसे कब्जे में ले लिया गया। इसके बाद पूरे सिक्किम में विधान सभा की देख-रेख में एक रेफ्रेंडम कराया गया। 97 प्रतिशत जनता ने भारत में विलय के पक्ष में मत दिया और 16 मई 1975 को सिक्किम (Sikkim) आधिकारिक रूप से भारत का बाईसवां राज्य बन गया।