श्वेता पुरोहित। कर दर्शन के बाद पहले दायें पैर को भूमि पर रख कर, हाथ से पृथ्वी का स्पर्श कर फिर मस्तक पर लगाइए और पांव रखने के लिए इस श्लोक से धरती माता से क्षमा माँगिए:
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्श क्षमश्वमेव॥
अर्थात् :
समुद्ररूपी वस्त्रों को धारण करने वाली, पर्वतरूपी स्तनों से शोभित विष्णुपत्नी, मेरे द्वारा होने वाले पादस्पर्श के लिए आप मुझे क्षमा करें।
भाव:
‘हे धरती माता, मुझे आपके ऊपर पैर रखने में बहुत संकोच होता है, आप भगवान की शक्ति और मेरी माता हो, परंतु रख ही रहे है तो हमे बुद्धि और शक्ति देना की हम आपके ऊपर धर्म के काम करें और अधर्म का बोझ हटाएँ।’
तदुपरांत अपने इष्टदेव तथा विभिन्न देवताओं का विभिन्न उद्देश्यों के लिए नाम-स्मरण कर सकते हैं।
रोग नाश : सोमनाथ, वैद्यनाथ, धन्वन्तरि, अश्विनीकुमार
सौभाग्य वृद्धि : उमा, उषा, सीता, लक्ष्मी तथा गंगा
संकटनाश : भगवान शिव, भगवान विष्णु, हरिश्चन्द्र, हनुमान तथा बलराम
दीर्घायु हेतु : आठ चिरंजीवी वेदव्यास, हनुमान, अश्वत्थामा, बलि, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम तथा मार्कण्डेयजी
घोरबाधा से मुक्ति : राम, लक्ष्मण, सीता, सुग्रीव तथा हनुमानजी
घोर पापों के नाश :
बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम –
श्रीसोमनाथ, श्रीमल्लिकार्जुन, श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, श्रीभीमशंकर, श्रीरामेश्वर, श्रीनागेश्वर, श्रीविश्वनाथ, श्रीत्र्यम्बकेश्वर, श्रीकेदारनाथ, और श्रीघुश्मेश्वर..
विषों से रक्षा : कपिला गौ, कालिय, अनन्त, वासुकि तथा तक्षक नाग
संयमपूर्ण जीवन : सनत्कुमार, नारदजी, शुकदेव, भीष्म तथा हनुमानजी उपरोक्त में से कोई नहीं: भगवान नारायण
उपरोक्त सभी : भगवान नारायण