श्वेता पुरोहित। प्रातःकाल अपनी आँखें खोलने से पहले ही अपनी हथेलियों को आपस में रगड़ कर अपनी आँखों पर रखें और फिर। धीरे से आखें खोलकर अपनी हथेलियों को आपस में मिलाकर पुस्तक की तरह खोल के दर्शन करते हुए यह श्लोक बोलें :
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ॥
-आचारप्रदीप
अर्थात् :
‘मेरे हाथ के अग्रभाग में माता लक्ष्मी, मध्यभाग में माता सरस्वती तथा मूल भाग में गोविन्द निवास करते हैं। हर प्रभात को में सर्वप्रथम हथेलियों में इनका दर्शन करूँ।
भाव :
कर दर्शन के समय हृदय में यह भाव रखें की ‘आज के दिन में इन हाथों से अपना कर्तव्य कर जो लक्ष्मी (धन) और सरस्वती (विद्या) का अर्जन करूँ उनका उपयोग धर्म और गोविंद की सेवा में करूँ।’
‘ऐसी दिनभर मुझमें सुबुद्धि बनी रहे, जिससे इन हाथों से में धर्म का पालन करूँ, अधर्म का नाश करूँ और साधुजनों की सेवा करूँ और मेरे द्वारा कोई बुरा कार्य न हो।’