श्वेता पुरोहित।श्रीमद्भगवद्गीता में कुल २४९ सम्बोधनात्मक पद हैं, जिनमें भगवान् श्रीकृष्णके लिये ७६, अर्जुनके लिये १६२, सञ्जयके लिये १, धृतराष्ट्रके लिये ८ और द्रोणाचार्य के लिये २ हैं।
१ अच्युत – अपने स्वरूपसे कभी च्युत न होनेवाले अर्थात अपनी महिमामें नित्य स्थित। ( १ | २१; ११ | ४२; १८ | ७३)
२ अनन्त – सीमारहित । ( ११| ३७)
३ अनन्तरूप – अनन्त रूपवाले। (११ | ३८) ४ अनन्तवीर्य – अनन्त सामर्थ्यवाले। (११ | ४०)
५ अप्रतिमप्रभाव – अतुलनीय प्रभाववाले । (११ | ४३)
६ अरिसूदन – शत्रुओंका संहार करनेवाले । (२ | ४)
७ कमलपत्राक्ष – कमलपत्रके सदृश नेत्रोंवाले। (११ | २)
८ कृष्ण – श्रीकृष्ण (श्यामसुन्दर) अर्थात् सम्पूर्ण प्राणियों को अपनी तरफ खींचनेवाले। (१ | २८,३२,४१, ५ | १, ६ | ३४, ३७, ३९; ११ | ४१; १७ | १)
९ केशव – क = ब्रह्मा, अ = विष्णु,
ईश = शंकर;ये तीनों जिनके व = वपु अर्थात् स्वरूप हैं, वे केशव हैं। (१ | ३१; २ | ५४; ३ | १; १० | १४)
१० केशिनिषूदन – केशि नामक दैत्यको मारनेवाले अर्थात् भक्तोंके सम्पूर्ण विघ्नोंको दूर करनेवाले । (१८ | १)
११ गोविन्द – वेदवाणीके द्वारा जिनके स्वरूपकी प्राप्ति हो, वे ‘गोविन्द’ हैं। (२ | ३२)
१२ जगत्पते – समस्त संसार के स्वामी अर्थात्
सम्पूर्ण चराचर जगत्का पालन-पोषण करनेवाले । (१० | १५)
१३ जगन्निवास – सम्पूर्ण जगत् आश्रय । (११ |२५, ३७, ४५)
१४ जनार्दन सबकी याचना पूरी करनेवाले। (१ | ३६, ३९, ४४; ३ | १; १० | १८; ११ |५१)
१५ देव – प्रकाशमान विभु । (११ | १५, ४४)
१६ देवदेव – देवताओंके भी स्वामी। (१० | १५)
१७ देववर – देवताओंमें सर्वश्रेष्ठ । (११ | ३१)
१८ देवेश – देवताओंके प्रभु । (११ | २५, ३७, ४५)
१९ परमेश्वर – सवो परि सर्वैश्वर्यवान् स्वामी। (११ | ३)
२० पुरुषोत्तम – समस्त पुरुषोंमें श्रेष्ठ | (८ | १; १० | १५; ११ | ३)
२१ प्रभो – सर्वसमर्थ । ( ११ | ४; १४ | २१)
२२ भगवन् – सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान, वैराग्यरूप छ: दिव्य लक्षणोंसे सर्वदा सम्पन्न । (१० | १४, १७)
२३ भूतभावन – सम्पूर्ण प्राणियोंको उत्पन्न करनेवाले । (१० | १५)
२४ भूतेश – समस्त प्राणियोंके स्वामी। ( १० |१५)
२५ मधुसूदन – मधु नामक दैत्यको मारनेवाले। (१ | ३५; २ | ४; ६ | ३३; ८ | २)
२६ महात्मन् – महान् स्वरूपवाले। (११ | २०, ३७)
२७ महाबाहो – विशाल भुजाओंवाले अर्थात्
सर्वसमर्थ। (६ | ३८; ११ |२३; १८ | १)
२८ माधव – मा=लक्ष्मी, धव=पति अर्थात् लक्ष्मीपति। (१ | ३७)
२९ यादव – यदुवंशमें अवतार लेनेवाले। (११ | ४१)
३० योगिन् – स्वाभाविक ही सम्पूर्ण योगोंसे सदा सम्पन्न। (१० | १७)
३१ योगेश्वर – सब प्रकारके योगोंके स्वामी। (११ | ४)
३२ वार्ष्णेय – वृष्णिवंश में अवतार लेनेवाले। (१ | ४१;
३३ विश्वमूर्ते – विश्व जिनकी मूर्ति है, ऐसे विराट् – स्वरूप । (११ | ४६)
३४ विश्वरूप – सम्पूर्ण संसार जिनका रूप है, ऐसे विराट्- स्वरूप । (११ | १६)
३५ विश्वेश्वर – समस्त संसारके स्वामी। (११ | १६)
३६ विष्णो – सर्वव्यापक ।( ११ | २४; ३० )
३७ सखे – मित्र। (११ | ४१)
३८ सर्व – सर्वरूप | ( ११ | ४०)
३९ सहस्त्रबाहो – हजारों भुजाओंवाले। (११ | ४६)
४० हृषीकेश – हृषीक = इन्द्रियाँ, ईश = स्वामी अर्थात् इन्द्रियोंके स्वामी अन्तर्यामी प्रभु । (११ | ३६; १८ | १)