विपुल रेगे। 42 दिन पूर्व जब राजू श्रीवास्तव को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तब ये आशंकाएं बलवती हो उठी थी कि अब वे शायद ही वापस आएँगे। उनकी सकुशल वापसी के लिए परिजनों के साथ देश का आम नागरिक भी प्रार्थना करता रहा। बुधवार की सुबह दस बजे राजू सारे रिश्ते-नाते तोड़कर अपनी अगली यात्रा पर निकल गए। कुछ कलाकार जाते हैं तो एक शून्य छोड़ जाते हैं।
राजू श्रीवास्तव देश की जनता में इतने अधिक लोकप्रिय क्यों थे, इसका ठीक-ठीक जवाब उनकी स्वस्थ्य हास्य प्रस्तुतियों में खोजा जा सकता है। मुंबई में राष्ट्रीय पहचान मिलने से पूर्व राजू कानपुर के ‘गजोधर’ हुआ करते थे। जो जहाँ मिल गया, उसे हंसाने का काम गजोधर का हुआ करता था। गली, नुक्कड़, सरकारी कार्यालयों में राजू मिलने वालों को शोले फिल्म के संवाद सुनाया करते।
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गजोधर नामक पात्र भारत में प्रसिद्ध होने से पूर्व कानपुर वासियों का प्रिय पात्र बन गया था। उस बिंदु पर राजू के मन में बड़ा कलाकार बनने की इच्छा ने जन्म ले लिया था। जब वे मुंबई आए तो इस निर्दयी शहर ने उनकी कठिन परीक्षा ली। शुरुआती दौर में वे ऑटो चलाया करते। स्टैंडअप कॉमेडी शो में सौ-पचास रुपये के लिए भी काम कर लेते। धीरे-धीरे उनका भाग्य जागने लगा।
दूरदर्शन से ब्रेक मिला और द ग्रेट इंडियन लॉफ्टर चैलेंज शो के उपविजेता बनने तक वे देशभर के चहेते कॉमेडियन बन चुके थे। राजू हास्य प्रस्तुतियों में अश्लीलता के विरुद्ध थे। उनकी कॉमेडी में कभी दर्शकों ने गंदगी नहीं पाई। इस भयंकर अश्लीलता के दौर में राजू ने साफ़-सुथरी कॉमेडी का स्तर बनाए रखा था। लोग राजू की कॉमेडी में डिटेलिंग के कायल थे।
वे एक शादी के रिसेप्शन भोज को इतनी गहराई से प्रस्तुत करते थे, कि दर्शक हैरान रह जाते थे। राजू की कॉमेडी में थाली में रखा अचार का टुकड़ा भी एक पात्र बन जाता था। मित्र को रेलवे स्टेशन छोड़ने आए गजोधर का ऐसा लाइव चित्रण राजू ने किया था, कि दर्शक स्वयं को रेलवे स्टेशन पर खड़ा महसूस करता था। राजू की सफलता इस बात में भी थी कि उन्होंने खांटी भारतीय संस्कृति को हास्य में घोल कर पेश किया।
गली-मोहल्ले, शादी, बारात, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, पान की दूकान राजू की कॉमेडी में शामिल रहते थे। राजू एक ऐसे कॉमेडियन थे, जिनको परिवार के साथ सहज ही देखा जा सकता था। वह जब टीवी पर आते तो लगता, मानो कोई सगा-सम्बन्धी पास बैठकर किस्सागोई कर रहा हो। राजू की सहज-स्वाभाविक शैली और विनम्रता ने उन्हें भारत के आमजन की आत्मा से जोड़ रखा था।
राजू को देख उनके समकालीन हास्य कलाकारों ने बहुत कुछ सीखा। उन्होंने सीखा कि ओवरएक्टिंग किये बिना, अश्लीलता के बिना सहजता के साथ दर्शकों को हंसाया जा सकता है। राजू ने एक शानदार जीवन जीया। उन्होंने वह सब पाया, जिसकी अभिलाषा वे करते रहे। उनको सम्मान मिला, उनको समृद्धि भी मिली। बुधवार को दिनभर राजू के जाने पर देश अपने ढंग से दुःख प्रकट करता रहा।
गजोधर की ट्रेन तो 42 दिन पूर्व ही छूटने वाली थी लेकिन आप लोगों के प्रेम ने उन्हें प्लेटफॉर्म पर रोके रखा। कल सुबह की ट्रेन से गजोधर भैया अपनी नई यात्रा पर निकल गए हैं। ईश्वर करे राजू का हास्य बोध उनकी अगली जन्म यात्रा में कम न हो। फिर किसी कानपुर में जन्म लेकर राजू लोगों को हंसाना शुरु कर देंगे। अलविदा गजोधर भैया, आपकी ट्रेन सही समय पर पहुंचे, ईश्वर से यही प्रार्थना है।