अभी-अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर को केवल दलित का मसीहा कहना, उनका अपमान है! वह सबके हैं! वास्तव में इस देश में दलित के नाम पर जो घृणित राजनीति हो रही है, वह केवल और केवल वोटबैंक के लिए हो रहा है, अन्यथा दलितों का इतिहास बहुत समृद्ध और गौरवशाली है!
मध्यकालीन भारत से पहले हमें किसी भारतीय साहित्य में अछूत शब्द नहीं मिलता है। अछूत शब्द मध्यकालीन भारत की देन है, जिसे ब्रिटिश शासनकाल मअंग्रेजों ने अपने फायदों के लिए बहुत भुनाया। हमारे-आपके पूर्वजों ने जिन ‘भंगी’ और ‘मेहतर’ जाति को अस्पृश्य करार दिया, जिनका हाथ का छुआ तक आज भी बहुत सारे हिंदू नहीं खाते, जानते हैं वो हमारे आपसे कहीं बहादुर पूर्वजों की संतान हैं। मुगल काल में ब्राहमणों व क्षत्रियों को दो रास्ते दिए गए, या तो इस्लाम कबूल करो या फिर हम मुगलों-मुसलमानों का मैला ढोओ।
हिंदुओं की उन्नत सिंधू घाटी सभ्यता में रहने वाले कमरे से सटा शौचालय मिलता है, जबकि मुगल बादशाह के किसी भी महल में चले जाओ, आपको शौचालय नहीं मिलेगा! दिल्ली सल्तनत से लेकर मुगल बादशाह तक के समय तक पात्र में शौच करते थे, जिन्हें उन ब्राहमणों और क्षत्रियों और उनके परिजनों से फिकवाया जाता था, जिन्होंने मरना तो स्वीकार कर लिया था, लेकिन इस्लाम को अपनाना नहीं।
डॉ सुब्रहमनियन स्वामी लिखते हैं, “अनुसूचित जाति उन्हीं बहादुर ब्राहण व क्षत्रियों के वंशज है, जिन्होंने जाति से बाहर होना स्वीकार किया, लेकिन मुगलों के जबरन धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया। आज के हिंदू समाज को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए, उन्हें कोटिश: प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उन लोगों ने हिंदू के भगवा ध्वज को कभी झुकने नहीं दिया, भले ही स्वयं अपमान व दमन झेला।” आइए दलित चिंतक श्री शांत प्रकाश जाटव जी से जानते हैं दलितों के गौरवशाली इतिहास के बारे में…
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Web Title: History of Dalits Explained by Sh. Shant Prakash Jatav
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