हाँग कांग एक छोटा सा राष्टृ है जो कि एक बेहतरीन वर्ल्ड क्लास लाइफ्स्टाइल के लिये दुनिया भर में मशहूर है. ये एक ऐसा देश भी है जहां दुनिया भर के युवा मल्टीनेशनल कम्पनियों मैं काम करने के लिये आते हैं. भारत के भी कई युवा इंजीनयरिंग सरीखे तकनीकी क्षेत्रों में नौकरी पा अपनी किस्मत आज़माने आते हैं. और ये देश बहुत खूबसूरत भी है. या फिर यूं कहिये कि भौतिकवादी संस्कृति की पराकाष्ठा यहां देखने को मिलती है. स्वर्ग को छूती सी प्रतीत होती बहुमंज़िली इमारतें, आलीशान शांपिंग मांल , रेस्तरां, दुनिया के एशोआराम के सारे नायाब खज़ाने हैं यहां.
लेकिन आजकल ये छोटा सा मुल्क किसी और ही वजह से सुर्खियों में है. हाँग कांग में एक ज़बर्दस्त आंदोलन छिड़ा हुआ है. और इस आंदोलन का लक्ष्य है प्रजातंत्र की मांग और चीन के आधिपत्य से आज़ादी. अब अगर इतिहास की ओर दृष्टपात करें तो हाँग कांग 1997 से चीन के अधीन है. 1997 में जब हाँग कांग ब्रिटिश शासन से मुक्त हुआ था तो उसे 50 साल की लीज़ पर चीन को सौप दिया गया था. 50 साल के बाद यानि 2047 में हाँग कांग के भविष्य का फैसला होगा. अभी हाँग कांग चीन के ‘ एक देश, दो सिस्टम्स ‘ के सिद्धांत पर चलता है जिसके अंतर्गत हाँग कांग का अपना अलग संविधान है, उस देश में मीडिया और प्रेस सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है और चीन के विपरीत हाँग कांग एक पूंजीवादी और ‘फ्री मार्केट’ अर्थव्यवस्था है. लेकिन वास्तविकता में चीन ने हाँग कांग पर अपना पूरा शिकंजा कसा हुआ है. यहां के नागरिक वोट तो करते हैं लेकिन चुनाव के सारे उम्मीदवार चीनी सरकार द्वारा ही नामांकित होते हैं. दूसरा, हाँग कांग की विदेश नीति और रक्षा नीति चीन ही निर्धारित करता है.
हाँग कांग के जन आदोलन की नींव डाली वहां के युवा वर्ग ने
अब वापस रूख करते हैं हाँग कांग में छिड़ रहे जन आंदोलन की ओर. ये आंदोलन जून से चल रहा है और इस की नींव मुख्यतया देश के युवा वर्ग ने डाली. आंदोलन शुरू होने की प्रमुख वजह हाँग कांग के सांसद में पेश किया गया एक विधेयक है जिसके अंतर्गत जो भी व्यक्ति चीन में हुई किसी भी अपराधिक घटना को लेकर आरोपी है तो उसे चीन को सौंपा जा सकता है. हाँग कांग वासियों को लगा कि यदि ऐसा कानून बन गया तो चीन इसका इस्तेमाल हाँग कांग में मानवाधिकारों को दबाने के लिये और जो भी चीन के खिलाफ बोले, उसे सबक सिखाने के लिये कर सकता है. इसी तरह से जन आंदोलन की शुरूआत हुई. लेकिन धीरे धीरे इस आंदोलन के सरोकार बढ़ते गये और आंदोलनकारी अब प्रजातंत्र की मांग कर रहे हैं अर यहां तक कि चीन से आज़ादी की भी.
हाँग कांग का जन आंदोलन दिन ब दिन विकराल रूप धारण करता हुआ
हाँग कांग जन आंदोलन दिन ब दिन और भी विकराल रूप धारण कर रहा है. यहां का युवावर्ग पूरी तरह से सड़्कों पर उतर आया है. एक गौरतलब बात यह भी है आंदोलनकारी अपनी पहचान गुप्त रखने के लिये कई तरह के मुखौटों और मास्कस का उपयोग कर रहे हैं. लेकिन अभी कुछ दिन पहले ही हाँग कांग सरकार ने 1940 के दशक के एक कठोर एमरजेंसी या आपतकालीन कानून को लागू कर आंदोलनकारियों के मास्क पहनने पर प्रतिबंध लग दिया है. हालांकि हाँग कांग वासी इन प्रतिबंधों को अभी भी मान नहीं रहे हैं और आंदोलन जारी है.
और इसके साथ ही दिन ब दिन हाँग कांग वासियों पर पुलिस का कहर भी बढ़्ता जा रहा है. अक्टूबर की शुरुआत में ही हाँग कांग पुलिस ने गोलीबारी के करीब 6 राउंड मारे . गोलीबारी के चलते एक युवा आंदोलनकारी घायल भी हो गया. इससे पहले भी आंसू गैस, वांटर कैनन इत्यादि पुलिस नियमित रूप से छोड़्ती आई है. यदि आप हाँग कांग जन आंदोलन के लाएव वीडियो देखेंगे तो आपको पता चल जायेगा कि वहां किस तरह का दहशतगर्दी का माहौल बन गया है. सड़्कें युद्द के मैदानों से प्रतीत हो रही हैं. सारे व्यवसाय, जन जीवन ठप्प सा हो गया है. हालांकि हिंसा का प्रयोग पुलिस और आदोलनकारियों दोनों तरफ से है. लेकिन लाइव वीडियोज़ की फ्टेज के अनुसार पुलिस जिस तरह की हिंसा का प्रयोग कर रही है, आप वैसी किसी स्थिति की भारत में कल्पना भी नहीं कर सकते.
कश्मीर पर धारा 370 हटने के मसले को लेकर चीन क दोगुलापन भी आया सामने
हाँग कांग जन आंदोलन के मामले में चीन का दोगुलापन भी साफ देखने को मिलता है. जम्मू और कश्मीर में धारा 370 के हटने को लेकर , जो कि भारत का आंतरिक मसला है, चीन ने भारत को अंतराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष कटघरे में लाने की भरसक कोशिश की. ये बात हास्यास्पद ही है कि जिस देश में मानवाधिकारों की कोई रूपरेखा ही नहीं है, वह देश के सबसे बड़े पजातंत्र को मानवधिकार और अंतराष्ट्रीय कानून का पाठ पढा रहा है. ठीक इसके उलट चीन हाँग कांग में न सिर्फ जन आंदोलन को दबाने की कोशिश कर रहा है बल्कि वहां की पुलिस द्वारा जन आंदोलंकारियों पर क्रूर और निर्मम प्रहार भी किये जा रहे हैं. और इस खून खराबे और बल प्रयोग को ये कहकर तर्क्संगत ठहराने की कोशिश की जा रही है कि आंदोलनकारी भी खून खराबे पर उतर आये हैं. और अंतरष्ट्रीय समुदाय के सामने चीन अपनी छवि एक शोषित के रूप में पस्तुत करने का प्रयास कर रहा है. इसके विपरीत अगर भारत के समकालीन इतिहास पर नज़र डालें तो कितने ही धरने, जन आंदोलन देश भर में छिड़े लेकिन शासन ने कभी भी लोगों पर बल प्रयोग नहीं किया. क्योंकि भारत एक प्रजातंत्र है और यहां के संविधान के मुताबिक किसी भी मसले को लोगों से बातचीत करके ही सुलझाया जाना चाहिये.
हाँग कांग का जन आंदोलन भी बिन खून खराबे के शांतिपूर्ण तरीके से शुरू हुआ था. लेकिन जब वहां की सरकार ने रूखाई दिखाते हुए जन आंदोलनकारियों की बात तक नहीं सुनी और उलटा पुलिस ने उन पर अत्याचार करने शुरू कर दिये तो लोग सख्ते में आ अये. और अब आंदोलनकारियो की एक मांग यह भी है कि पुलिस द्वारा लोगों पर किये जा रहे अत्याचार की भी सुनवाई हो.
कश्मीर और हाँग कांग की स्थिति में ज़मीन आसमान का अंतर
आलोचकों का एक तबका ये कहते भी नहीं थक रहा कि जिस तरह चीन हाँग कांग वासियों पर ज़ुल्म ढा रहा है, ठीक वैसी हे स्थिति भारत में जम्मू और कश्मीरवासियों की है. या फिर सीधे शब्दो में कहें तो जम्मू और कश्मीर का मामला भी कुछ कुछ हाँग कांग जैसा है, ऐसा आलोचक कह रहे हैं. अगर सिर्फ कुछ तथ्यों भर पर नज़र डालें, तो हमें देखने को मिलेगा कि जम्मू-कश्मीर और हाँग कांग की स्थिति में ज़मीन आसमान का अंतर है. जम्मू कश्मीर के महाराजा ने 1947 में कश्मीर को औपचारिक रूप से भारत का अंग बनाया. उसके बाद से लेकर अब तक कश्मीर को लेकर जो भी विवाद हैं, उन सबके मूल में धर्म है , कि कश्मीर एक मुस्लिम बहुसंख्यक राष्ट्र है इसीलिये वो भारत का हिस्सा कैसे हो सकता है और ये तर्क आज के परिपेक्क्ष में बिल्कुल भी नहीं ठहरता , ये शायद बताने की भी ज़रूरत नहीं है. आज हम जब हम एक मल्टीकल्चरल वर्ल्ड में रह रहे हैं तो धर्म के आधार पर लोगों की किसी दूसरे राष्ट्र का हिस्सा बनने की इच्छा कुछ तर्कसंगत नही जान पड़ती. इसके विपरीत हाँग कांग ब्रिटेन की कांलोनी था जो कि चीन को लीज़ पर दिया गया था. हाँग कांग मसले का धर्म से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है. यहां दुनिया के विभिन्न कोनों से आये लोग रहते हैं, काम करते हैं. उन्हे आपत्ति है चीन के कम्यूनिज़्म के ढांचे से और डर है कि धीरे धीरे कहीं चीन उनके मानवधिकार और स्वतंत्रता न छीन ले. दूसरा, जम्मू कश्मीर में सालो से पाकिस्तान द्वारा भड़काई गयी आतंकवाद और अल्गाववाद की आग की वैसे वहां का विकास रूका सा हुआ है. शिक्षा, रोज़गार, सब ठप्प पड़े हैं. और अब धारा 370 हटने से धीरे धीरे कश्मीर के विकास की मुख्यधारा में आने की उम्मीद है. इसके विपरीत हाँग कांग एक आर्थिक रूप से संपन्न, समृद्ध राष्ट्र है जहां के लोग इस तरीके की समस्याओं से नहीं जूझ रहे. तीसरा, कश्मीर में आज तक ऐसा कोई व्यापक स्तर पर जन आंदोलन नहीं छिड़ा है जब आम लोग सड़्कों पर उतरे हों कि हमारी भारतीय सरकार से ये, ये मांगे हैं. बल्कि वहां के स्थानीय नेताओं और पाकिस्तान सरकार ने ही हमेशा ऐसा माहौल तैयार किया है कि कश्मीरी भारत से नफरत करें. इसके विपरीत हाँग कांग में जन आंदोलन हो रहा है जो कि आम लोगों द्वारा संचालित है. इसमें किसी नेता या किसी दूसरे देश की सरकार का कोई हाथ नहीं है.
हाँग कांग मसले का हल क्या होगा, ये तो निश्चित तौर पर अभी नहीं कहा जा सकता. यदि चीन ने सेना बुलाने का निर्णय ले लिया तो नतीजे भयावह भी हो सकते हैं. लेकिन एक बात तो तय है. ये जन आंदोलन कम्यूनिज़्म की जड़ों पर एक हमला है. युवा हाँग कांग वासी अभी ये आंदोलन कर रहे हैं क्योंकि वो भविष्य में एक ऐसे देश में रहने की कल्पना भी नहीं करना चाहते जहां वो कठपुतलियों बकी तरह हाई कमांड के इशारे पर नाचें और जहां उन्हे स्वतंत्र अभिव्यक्ति और विमर्श की बिल्कुल आज़ादी नो हो. अभी हालात ऐसे नहीं. लेकिन 2047 में चीन हाँग कांग को पूरी तरह अपने साम्राज्य में मिला ले तो? ये सोचने मार से युवा कांग कांग वासियों के रोंगटे खड़े हो रहे हैं. प्रजातंत्र का विकल्प धीरे धीरे उनकी ज़ुबान पर आ रहा है और उन्हे आंदोलन में आगे बढ़ने की हिम्मत दे रहा है.