उत्तर प्रदेश के कौशम्बी जिले में करीब तीन हफ्ते पहले, 21 सितम्बर को एक दलित नाबालिग युवती का 3 आदमियों ने सामूहिक बलात्कार किया और इस घिनौने कृत्य के दौरान जबरन उसका वीडियो भी बनाया. यही नहीं, इस घृणात्मक अपराध को अंजाम देने के बाद उन्होने इस वीडियो को पूरे मोहल्ले में फैलाया भी और बहुत जल्द ही यह वीडियो सोशल मीडिया पर वाइरल हो गया.
और ये घटना सुबह ग्यारह बजे हुई जब एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली युवती खेतों में घास इकट्ठ्ठा करने गयी थी. वह घास इकटठा कर ही रही थी कि तीनों युवक , जो कि तीस वर्ष की उम्र के आसपास के रहे होंगे, उस पर झपट पड़े और उसका सामूहिक बलात्कार किया.
तथाकथित प्रोग्रेसिव मीडिया अपने फायदे के अनुसार करता है खबरों की ब्रांडिंग
अब आप कहेंगे कि गैंगरेप या सामूहिक बलात्कार की घटनायें तो देश में आये दिन होती हैं. और इन पर मीडिया बड़ी मुस्तैदी से मज़र भी रखता है. महिलाओं के खिलाफ किये जाने वाले अपराधों की जितनी खबरें भरतीय मीडिया में उजागर होती हैं, उतनी शायद ही किसी और देश के मीडिया में होती होंगी. और इस सब की शुरूआत 2012 के ज्योति सिंह गैंगरेप केस से हुई थी जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. लेकिन क्या आप भी जानते हैं कि मीडिया टी आर पी इकट्टा करने के लिये खबरों की फिल्टरिंग भी करता है.
एक तथाकथित विचारधारा को प्रोजेक्ट करने के लिये ऐसी खबरों को जबरन उछालता है जिन्में हिंदू समुदाय को कटघरे में खड़े कर कम्यूनलिज़्म या कास्टिज़्म की आग भड़्काने की अधिक से अधिक गुंजाइश हो. और यही मीडिया , खासकर कि अंग्रेज़ी भाषा मीडिया जो कि पूरी दुनिया के सामने देश की बखिया उधेड़्ता फिरता है और दलितों के उच्च वर्ग हिंदुओं द्वारा शोषण की बात करता नहीं थकता, क्योंकर वही मीडिया कौशम्बी गैंगरेप के मामले में एकदम चुप्पी साधे हुए है? आखिर क्यों तथाकथित बड़े बड़े पत्रकारों और ‘बुद्धिजीवियों को इस घृणात्मक कृत्य से इतनी भी परेशानी नहीं हो रही कि वो इसके बारे में सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहें?
आरोपी मुस्लिम समुदाय के हैं, इसीलिये मीडिया ने साधी चुप्पी
ऐसा इसीलिये है, मीडिया की ये चुप्पी इसीलिये है क्योंकि अभियुक्त मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखता है. तीनों आरोपी – मोहम्मद आदिल, मोहम्मद अदिक और मोहम्मद निज़ाम अब पुलिस की हिरासत में है. यहां बात हिंदू – मुसलमान की नहीं है. अपराध तो अपराध है, आरोपी के धर्म से उसका क्या लेना देना. और धर्म निरपेक्षता का सैद्धांतिक मूल तो यही है ,हर चीज़ को धर्म की रोशनी में न देखना. लेकिन यहं बिल्कुल यही हो रहा है.
मीडिया का बड़ा वर्ग इस घटना को लेकर सिर्फ इसीलिये चुप्पी साधे हुए है क्योंकि आरोपी मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं! और मीडिया का तथाकथित लेफ्ट लिबरल तबका ये खबर दिखाना नहीं चाहता क्योंकि इससे उनका कम्यूनलिज़्म को लेकर बुना गया ज़बर्दस्ती का ताना बाना ताश के पत्तों की तरह ढेर हो जायेगा .
वह मीडिया जो क्कि चुन चुन के ऐसे अपराधों को लाइमलाइट में लाता है जिनमें आरोपियों का धर्म हिंदू हो और प्रताड़ित या तो दलित हों या मुसलमान, ऐसे अवसरवादी और बाज़ारी मीडिया को इस घृणात्मक कृत्य में कोई सेलिंग प्वाइंट नहीं दिखाई दे रहा , बस इसीलिये वो इस खबर को तवज्जो नहीं दे रहे. सबसे पहले तो महिलाओं के खिलाफ होने वाले घिनौने अपराधों को धर्म से जोड़ना और इनकी रिपोर्टिंग का इस्तेमाल धर्मों और समुदायों में परस्पर नफरत फैलाने के लिये करना अपने आप में ही एक घिनौना कृत्य है, एक ऐसा कृत्य जिसमें ये तथाकथित लेफ्ट लिब्रल मीडिया पूरी तरह से लिप्त है.
कौशम्बी क्षेत्र के उस इलाके में मुस्लिम समुदाय के लोग बहुसंख्यक और युवती ताल्लुक रखती है अनुसूचित जाति के अंतर्गत आने वाले पासी समुदाय से
स्वराज्य मैगज़ीन की टीम ने कौशम्बी जाकर इस पूरे मामले पर खोजी पत्रकारिता की और जिस युवती के साथ यह घिनौना कृत्य हुआ था, उससे बातचीत भी की.
युवती ने बताया कि उसकी आरोपियों से किसी तरह की कोई जान पहचान नहीं थी. वह उसके लिये अजनबी थे. वह अधिकतर खेतों में अकेले जाने से बचती थी लेकिन उस दिन देर होने के कारण वह बाकी लड़कियों के साथ न जा पाई और उसे अकेले ही जाना पड़ा. जैसे ही उसने घास काटना शुरू किया, कुछ ही देर मेंमे पीछे से आदमी आये और उसके मुंह को अपने हाथों से दबा दिया ताकि वो चीख न सके.
फिर उन्होने उसके साथ ज़बरदस्ती करनी शुरू की और उसे जान से मारने की भी धमकी दी. जब उसने उनसे’ भगवान के लिये मुझे छोड़ दो’ कहकर विनती की तो उन्होने उसे कहा कि भगवान का नहीं, अल्लाह का नाम ले. फिर, लड़की के स्वराज्य मैगज़ीन को दिये बयान के अनुसार उसने अल्लाह का नाम ले उनसे रहमत की भीख मांगी लेकिन वो फिर भी टस से मस न हुए.
युवती पासी समुदाय से है जो कि एक प्रकार की अनुसूचित जाति है. किसी ज़माने में इस जाति के लोगों को अछूत भी माना जाता था.युवती का घर उन अनेकों मिट्टी के घरों में से एक है जहां इस समुदाय के लोग रहते हैं.
पासी समुदाय जाटवों के बाद उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ी तादाद का दलित समुदाय है.ये समुदाय अभी भी भीषण गरीबी से जूझ रहा है और विकास की मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाया है.
स्वराज्य मैगज़ीन ने युवती के अड़ोस पड़ोस के लोगों से जो बातचीत की, उसके मुताबिक उस इलाके में मुस्लिम समुदाय के लोग बहुसंख्यक हैं. इलाके के 65 प्रतिशत घर मुस्लिम समुदाय के लोगों के हैं. और बाकी धोबी, कुमार, हरिजन व अन्य अनुसूचित जातियों के लोगों के. स्थानीय पासी लोगों के अनुसार यहां रह रहे मुस्लिम समुदाय के लोग उंची जाति के और पैसे वाले माने जाते हैं और ये लोग पासी आदि अन्य अनुसूचित जातियों के लोगों से संपर्क पसंद नहीं करते.
स्वराज्य मैगज़ीन ने जब आरोपियों के पड़ोसी नबीउल्लाह से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि गलती तो हुई है लेकिन ये तो उन लड़्कों की नादानी है ऐसका श्रेय पासी लोगों की बदतमीज़ी और उस लड़की को भी जाता है, कि उसी ने उन लड़्कों को वहां बुलाया होगा.
आखिर क्यों नहीं करता मीडिया महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों की निष्पक्ष रिपोर्टिंगअब जब सारे तथ्य आपके सामने हैं, यही नही इस पूरे घिनौने कृत्य का वीडियो प्रूफ भी है, वह वीडियो जो कि आरोपियों ने खुद बनाया है, क्या आपको अचरज नहीं होता कि आखिर क्यों किसी भी बड़े न्यूज़ चैनल ने इस मामले की तह तक जाना तो दूर, इसे ठीक से कवरेज तक नहीं दी. जबकि कठुआ गैंगरेप केस का प्रकरण दिनों तक टी वी की सुर्खियों में छाया रहा. यही नहीं, शोहरत और पैसे की होड़ में मदांध टीवी चैनलों ने हिंदू मुस्लिम एंगल को जमकर भुनाने के लिये बच्ची की फोटो वाइरल करने तक से गुरेज नहीं किया.
आखिर क्यों हमारे देश का मीडिया महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों की निष्पक्ष रिपोर्टिंग नहीं करता ? किसी भी केस को उठाकर उसके हिंदू विरोधी एंगल को भरसक भुनाकर फिर मीडिया उस केस के बारे में भूल जाता है. और जहां आरोपी मुस्लिम समुदाय का है, जैसे की इस वारदात में, वहां मीडिया घटना को छूने तक को तैयार नहीं है. इसे लेफ्ट लिब्रल मीडिया का हर न्यूज़ का अवसरवादी विचारधारा अप्रोप्रिएशन ही कह सकते हैं. और यह निहायती शर्मनाक है.