विपुल रेगे। ट्वीटर पर मोसाद कमेंटरी नामक एक अकाउंट पर बताया गया कि 7 अक्टूबर को हमास आतंकी एक घर में घुसे। उन्होंने पहले पिता को मारा और छोटे से बच्चे को ओवन में फेंक दिया। फिर उन्होंने तीन बार माँ के साथ बलात्कार किया और उसकी आंखों के सामने उसकी संतान ओवन में भूनती रही। इज़राइल के नागरिकों ने उस आतंकी हमले में मध्ययुगीन बर्बरता देखी थी। भारत सरकार ने इस संवेदनशील मसले पर इज़राइल को अकेला छोड़ दिया और स्वतंत्र फिलिस्तीन का समर्थन किया। जो कृत्य इज़राइल में हमास ने किये, उनकी कल्पना करना भी हमारे लिए बहुत कठिन है। कल हम पर आतंकवादी हमला होगा तो कोई देश यूएन में हमारे पक्ष में क्यों उतरेगा, जब आज भारत खुलकर आतंकवाद के विरुद्ध नहीं उतर पा रहा है।
कार्टून आर्टिस्ट शानी लाउक इज़राइल के म्यूज़िक फेस्टिवल में नाच रही थीं, जब हमास का हमला हुआ। शानी लाउक को नग्न कर सड़कों पर घुमाया गया था। पता चला है कि कल शानी का शव गाज़ा में पाया गया है। इज़राइली सेना ने पाया कि शव बेहद खराब हालात में था और चेहरा भी पहचाना नहीं जा रहा था। ऐसे न जाने कितने किस्से इज़राइल से निकलकर आए हैं, जिन्हे सुनकर ही मन थर्रा उठता है। संयुक्त राष्ट्र में हाल में लाए गए इजरायल-हमास संघर्ष संबंधी एक प्रस्ताव पर वोटिंग से भारत ने दूरी बनाई।
भारत उन 44 देशों में शामिल रहा, जो वोटिंग से दूर रहे। इज़राइल ने भारत के हटने पर अफ़सोस ज़ाहिर किया है। इस मामले में इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की टिप्पणी भारत के हर नागरिक को सुननी चाहिए। उन्होंने कहा ‘कोई भी सभ्य देश जिसमें भारत भी शामिल है, इस तरह की बर्बरता को बर्दाश्त नहीं करेगा।’ नेतन्याहू की टिप्पणी से जाहिर है कि इज़राइल भारत के रुख से नाराज़ हो गया है। अपने मित्र भारत से तो उसे समर्थन की आशा थी। देश में भारत के इस रुख को अलग-अलग ढंग से देखा जा रहा है।
विपक्ष ने भारत के वोटिंग से अलग होने के निर्णय की आलोचना की है। हमारा मीडिया भी भारत के रुख से प्रभावित दिखाई देता है। कई चैनल हमास आतंकियों को ‘लड़ाके’ लिख रहे हैं। विगत 7 अक्टूबर को हमास आतंकियों ने इज़राइल में घुसकर 1400 निर्दोष नागरिकों को मार डाला था और कई महिलाओं और बच्चों का अपहरण कर लिया था। जिस वीभत्स ढंग से इज़राइली नागरिकों और बच्चों की ह्त्या की गई, उसकी सर्वत्र निंदा की गई। हालाँकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इज़राइल को अपने मित्र राष्ट्रों से जिस समर्थन की आशा थी, वह उसे नहीं मिला।
ये खेदजनक है कि भारत सरकार ने खुले मन और साहस से इज़राइल में हुआ नरसंहार का प्रतिकार नहीं किया। भारत सदा से शांति का पक्षधर रहा है किन्तु कभी-कभी भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी दहाड़ भी विश्व को सुनानी चाहिए। इस मामले में भारत की चुप्पी बहुत निराशाजनक है। आखिरकार हम भी तो दशकों से ऐसे ही आतकंवाद का शिकार होते रहे हैं। क्या हमसे बेहतर और कोई जान सकता है कि आतंकवाद से परिवार कैसे बिखर जाते हैं। निर्दोष लोग अकारण मार दिए जाते हैं। हम तो अब भी कश्मीर में ‘टारगेट किलिंग’ का सामना कर रहे हैं, जो आतंकवाद का एक सुधरा हुआ रुप है। फिर हम अपने मित्र राष्ट्र की पीड़ा पर चुप कैसे रह जाते हैं ?