प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज. मेरे बहुत से प्रोफ़ेसर मित्र ,बहुत ही उच्च कोटि की विदुषी और विद्वान मित्र, मुझसे इस बात में कई बार खींझते रहे हैं कि मैं राज्य के द्वारा किए जाने योग्य अनिवार्य कार्यों के भी न किए जाने का प्रश्न अधिकतर विषयों में बार-बार उठा देता हूं ।।
राजनीति शास्त्र और धर्म शास्त्र के विषयों से अनभिज्ञ होने के कारण अन्य विषयों के बहुत बड़े ज्ञाता हो कर भी मेरी इस बात को वे सचमुच समझ नहीं पाते थे परंतु जैसे-जैसे तथ्य सामने आ रहे हैं, बिना कुछ भी अधिक पढ़े बातें स्पष्ट होती जा रही हैं और अब उनमें से अधिकांश कह रहे हैं कि हां आपकी बात तो बहुत स्पष्ट है।
इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात अयोध्या जी श्री राम जन्मभूमि और ज्ञानवापी शिव मंदिर के संबंधित न्यायालयमें चले मुकदमों से उजागर हुई है। हर जगह मुसलमानों का पक्ष था कि औरंगजेब भारत के शासक रहे और शासक को अपने शासित क्षेत्र में सर्वाधिकार प्राप्त होता है। इसलिए उन्होंने अगर मंदिर तोड़कर मस्जिद बना दिया या किसी इलाके को मुसलमानों की संपत्ति घोषित कर दिया तो उस दिन से वह उनकी हो गई ।मंदिर मस्जिद हो गया ।किसानों की संपत्ति औऱ ग्रामीणों की संपत्ति वक्त बोर्ड की संपत्ति होगई। इस तरह के तर्क वे देते रहे है।
इससे मेरी वह दूसरी बात भी पुष्ट होती है कि हिंदू समाज की कथित उच्च जातियां राजनीतिक विषयों में और आधुनिक कानूनों के विषय में भी निजी संकीर्ण स्वार्थ के मामले में तो अत्यंत सजग है परंतु अपनी जाति या समूह या समुदाय या समाज और राष्ट्र के विषय में अत्यधिक नासमझ हैं और मुसलमान तथा ईसाई और कथित अनुसूचित जाति एवं जनजाति के भी नेता लोग द्विज जातियों के नेताओं से कई गुना अधिक बुद्धिमान हैं और इनको लल्लू मानते थे।
इसीलिए वे ऐसे विचित्र तर्क इतनी ढिठाई से ,निर्लज्जता से ,धृष्टता से और कमीनेपन से देने की हिम्मत करते रहें और खुद को बड़ा बुद्धिसंपन्न मानने वाली उच्च जातीय हिंदुओं को( एक दो अपवाद के सिवा ) यह तर्क तक नहीं सूझा कि अगर ससुरा औरंगजेब जैसा गया गुजरा मामूली जागीरदार और लफंगा दुष्ट राजा कहने के बाद इतना अधिकारी हो सकता है इन विषयों में तो औरंगजेब से पहले के हमारे राजा अधिकारी क्यों नहीं थे ?
औरंगजेब के बाद जो मराठे और राजपूत अपने अपने क्षेत्र में शासन में रहे ,चोल चालुक्य और पांड्यों, यदुवंशी क्षत्रियों के वंशज जो शासन में रहे वह अपने अपने इलाके के सर्वाधिकारी क्यों नहीं हैं? और फिर भारत शासन के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री इस विषय में सर्वाधिकारी क्यों नहीं ? शासक के नाते जब वे कह देंगे कि यह मंदिर है और मंदिर रहेगा तो उस दिन से वह मंदिर हो जाएगा। शासक के नाते जब वे कहेंगे कि अब हिंदुओं पर अन्याय नहीं हो सकता ,वे हिन्दू भी भारत के उतने ही सम्मानित नागरिक हैं जितने कि मुसलमान या ईसाई आदि तो मुसलमानों और ईसाइयों को हिंदुओं को इतना सम्मान देना पड़ेगा , जो सम्मान अभी नहीं मिल रहा है।
उसका मुख्य कारण है समाजवादी झुकाओ वाले कांग्रेसी तथा अन्य शासकों की हिंदू विरोधी नीतियां योजना पूर्वक लागू की गई । और उसके बाद भाजपा भी नहीं कर रही है तो उसका कारण है कि संघ और भाजपा के लोग इन विषयों में निपट अज्ञानी है ।आश्चर्यजनक अज्ञानी । और दोष कभी इसको कभी उसको देते रहते हैं । अपने निजी मामलों या दलीय मामलों में तो उन्होंने सत्ता का महत्व जान लिया है। परंतु राष्ट्र के लिए सत्ता का क्या महत्व है
इस विषय पर उन्होंने ठीक से विचार तक नहीं किया है। अन्यथा किसी की क्या मजाल है जो भारत में 1 दिन भी अयोध्या या काशी या मथुरा मैं मंदिरों को तोड़कर खड़ी हुई मस्जिदों को खड़े रहने दे या उनको एक पल भी मस्जिद कह सकें या उनको मस्जिद कहने की हिम्मत कर सकें और किसी न्यायालय में उन पर वाद चलने की कोई गुंजाइश ही नहीं अगर भारत के शासक सत्ता की भूमिका को जान लें और उस पर काम करें। इतना ही नहीं औरंगजेब तथा अन्य कमीनों को अबुल कलाम आजाद जाकिर हुसैन सहित हिंदू द्वेषी मुसलमानों ने जिस प्रकार भारत का यानीहिंदुस्तान का शासक बताया है ,उस झूठ को बच्चों को पढ़ा कर कितना बड़ा पाप किया गया है,
उस पापके लिए दंडित नहीं भी कर पाए तो निंदा तो हमारे शासकों को करनी चाहिए । अगर उनमें सत्य के प्रति धर्म के प्रति एक रत्ती भी अनुराग है। के कोई भी मुस्लिम जागीरदार किसी भी कसौटी पर भारत का शासक नहीं कहा जा सकता । वह तो दस्यु ही कहा जाएगा । स्पष्ट है कि हिंदुओं का वोट लेकर और हिंदुत्व की बात कर सत्ता मैं आने वाले लोगों में श शासक होने का आत्म गौरव नहीं है और राष्ट्र के प्रति तथा सत्य एवं धर्म के प्रति अपने कर्तव्य की कोई भावना ही नहीं है। इसीलिए वे हिंदुओं की ऊर्जा उन मामूली कामों में खर्च कराते रहते हैं ,जिन कामों को मुसलमानों और ईसाइयों के नेता मुसलमानों और ईसाइयों के पक्ष में इन्हीं शासकों से चुटकी बजाते हुए करा लेते हैं और हिंदू समाज के भी विभिन्न वर्गों के पक्ष में जातिवादी नेता यह सब करा रहे हैं ।
स्पष्ट है कि राजनीतिक रूप से अनुसूचित जाति और जनजाति के नेता तथा मुसलमानों और ईसाइयों के नेता हिंदू ब्राह्मण और क्षत्रिय और वैश्य के नेताओं से बहुत अधिक होशियार हैं और आत्म गौरव तथा आत्मविश्वास से संपन्न हैं। इस तथ्य को शांत चित्त से आत्मसात कर लेना चाहिए । इसमें ना तो झेंपना चाहिए, ना ही अकड़ना चाहिए ।। यह सत्य है । सत्य को जानने से शक्ति मिलेगी । आत्मविश्वास और आत्मगौरव आएगा। भविष्य का मार्ग दिखेगा ।