प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ की जेनेरल असेम्बली या सामान्य सभा में सारगर्भित और व्यापक दृष्टिकोण से निहित वक्तव्य देकर पुन: साबित कर दिया कि भारत की सहिष्णुता और मानव मूल्यों की जड़ें बहुत गहरी जाती हैं और ये देश कभी भी आक्रामक, नृंशक और विध्वंसकारी रूप इख्तियार करने में विश्वास नहीं रखता.
प्रधानमंत्री मोदी ने वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को रेखांकित करते हुए बहुपक्षीयता पर ज़ोर दिया
प्रधानमंत्री ने जहां गौतम बुद्द का ज़िक्र किया कि भारत की धरती ने विश्व को युद्द नहीं, बुद्ध दिया है, वहीं वैश्विक मंच पर भारत के बढ़्ते योगदान और सभी देशों को उसके साथ में लेकर चलने के गुण पर भी बल दिया. उन्होने इस पर भी दो शब्द कहे कि किस तरह भारत अपने ऐसे साथी देशों से भी सीख लेता है और उनकी समस्यायें ध्यानपूर्वक सुनता है जो कि उसी के तरह गरीबी पर विजय पाने के कठिन श्रम में लगे हुए हैं. भारतीय संस्कृति में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना निहित है यानि कि संपूर्ण धरती एक परिवार है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने वक्तव्य में इसी भावना को चरितार्थ करते हुए उन्होने विश्व में बहुपक्षीयता को सशक्त करने पर ज़ोर दिया और साथ ही एक्पक्षीयता की संकीर्ण विचारधारा से विश्व की बेहतरी के लिये काम कर रहे अंतराष्ट्रीय संगठ्नों को बचाये रखने की भी बात कही. और यह बात आज के समय में बहुत ही अहमियत रखती है जबकि धीरे धीरे अनेकों वैश्विक संगठन अपनी प्रासंगिकता खो रहे हैं. इन पर अधिकतर अमरीका और विकसित यूरोपीय मुल्कों का आधिपत्य हो गया है और विकासशील देशों की इतनी सुनवाई नहीं होती जितनी कि होनी चाहिये. भारत पहले भी अंतराष्ट्रीय संस्थानों के रिफार्म को लेकर एक सक्रिय भूमिका निभाता आ रह है और प्रधानमंत्री मोदी ने अपने वक्तव्य में इसी बात को रेखांकित किया.
दूसरा प्रधानमंत्री ने देश के विकास के लिये सरकार द्वारा उठाये गये कदमों को न सिर्फ एक अन्तराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया बल्कि इन्हे पूरे विश्व की विकास प्रक्रिया से जोड़ा. स्वच्छ भारत अभियान से लेकर अब प्लास्टिक के रोज़मर्रा इस्तेमाल के खिलाफ एक देश व्यापक अभियान के बारे में जानकारी देते हुए प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि कैसे एक विकासशील देश अपने दम पर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में पूरे विश्व की अगुआई कर रहा है. प्रधानमंत्री ने यहां भी इसी बात पर ज़ोर दिया कि किस प्रकार भारत अपने विकास की कड़ी को संपूर्ण विश्व के विकास की कड़ी से जोड़ रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी ने बिना कोई नाम लिये किया आतंकवाद का खंडन. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने लगायी भारत के लिये अपशब्दों की झड़ी
तीसरा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी ही शालेनता से बिन किसी राष्ट्र विशेष का नाम लिये आतंकवाद की घोर भर्त्सना की और भारत आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रूख इख्तोयार करेगा, इस बात को बड़ी सहजता से रेखांकित किया. इसके उलट पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने लगभग पूरे वक्तव्य में न सिर्फ भारत के खिलाह ज़हर उगला बल्कि धर्म की रेटांरिक का इस्तेमाल बड़े ही अशोभनीय तरीके से पूरे विश्व के मुसलमानों को भारत के खिलाफ भड़्काने के लिये किया. इमरान खान ने अपने वक्तव्य की शुरुआत तो पर्यावरण संरक्षण और गरीब देशों और अमीर देशों और गरीबों और अमीरों के बीच की गहराती खाई से की लेकिन बहुत जल्द ही वो यहां से इस विषय पर उतर आये कि विश्व में कैसे इस्लाम की और उसे मानने वालों की छवि धूमिल की जा रही है. और अब वो एक वैश्विक मंच पर द्क्षिण एशिया के एक देश के प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं बल्कि पूरे विश्व में इसलाम को मानने वालों के धार्मिक नेता के रूप में खुद को प्रस्तुत कर रहे थे. उन्होने इस बात की दुहाई दी कि कैसे विश्व के सभी लोगों को ये भली भांति समझना चाहिये कि इस्लाम को मानने वाले लोग अपने पैगम्बर को सर्वोच्च मानते हैं और उनके नाम पर किया गया कोई भी मज़ाक बर्दाश्त नहीं कर सकते , जो कि उचित भी है. लेकिन उसके कुछ देर बाद हे इमरान खान ने राष्ट्रीय स्वयम्सेवी संघ पर जमकर फब्तियां कसनी शुरू कर दीं और उन्हे लेकर अनेक तरह के अपशब्द कहे और ये कि कैसे वो इस्लाम के सारे अनुयायियों का कत्लेआम करना चाह्ते हैं, वगैरह वगैरह.
पाक्सितानी प्रधानमंत्री भारत के बहुसांस्कृतिक परिवेश से सर्वथा अनभिज्ञ
इमरान खान जी के ज्ञान के लिये हम उन्हें बता दें कि भारत में 200 मिलियन से भी ज़्यादा मुसलमान रहते हैं. न ही सिर्फ बिना किसी खौफ के वे अपने पर्व त्यौहार मनाते हैं बल्कि दूसरे धर्मों के लोग भी उन त्यौहारों में शरीक होते हैं, ठीक उसी तरह से जैसे वे होली, दिवाली आदि त्यौहारों में भी सम्मिलित हो खुशी मनाते हैं. दूसरा, गंगा जमुनी तहज़ीब आज भी भारत की संस्कृति में रची बसी हुई है. उर्दू, अरबी फारसी आदि भाषाओं के अदब को लेकर भारत में जितने कार्यक्रम होते हैं, उतने शायद कहीं और नहीं होते हैं. तीसरे भारत के आम लोग हिंदू –मुसलमान की डिस्कोर्स के तहत बिल्कुल सोचते ही नहीं हैं. यहां कांलेज के छात्र छात्रायें अपने धर्म मे बारे में कुछ भी सोचे बगैर उर्दू मुशायरों में और संस्कृत श्लोकों के कांम्पेटीशंस में बालिवुड गानों के प्रोग्राम्स में जमकर हिस्सा लेते हैं. यहां आम लोग हिंदुस्तानी बोलते हैं जो कि हिंदी उर्दू की मिली जुली भाषा है और हिंदी अखबारों में भी अधिकतर हिंदुस्तानी का हे प्रयोग होता है. तो इमरान खान जी, ये धर्म की नाम पर बेवजह की नफरत आप फैला रहे हैं, न कि भारत.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का वक्तव्य विश्व के इतिहास में डार्क एजेस के रूप में होगा दर्ज
आखिर में पाकिस्तान की प्रधानमंत्री इमरान खान ने कश्मीर मसले पर आते हुए भारत को परमाणु युद्द की चेतावनी दी. यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र संघ को भी केतावनी दी कि यदि वह जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के मामले में कोई कदम अहीं उठायेगा तो फिर जेहाद की आग फैलेगी और उसके परिणाम पूरे विश्व को भुगतने पड़ सकते हैं. इस नफरत से भरे वक्तव्य के जवाब में भारत ने बड़ी ही शालेनता से बिना पाकिस्तान को कोई अपशब्द कहे सिर्फ तथ्यों के आधार पर पाकिस्तान का जवाब किया और उससे आतंकवाद से जुड़े चंद सवाल पूछे. लेकिन यहां अहम बात यह है कि एक देश के प्रमुख ने एक इतने बड़े अंतराष्ट्रीय मंच का इस्तेमाल धर्म के नाम पर नफरत फैलाने के लिये किया. और ये वक्तव्य निश्चित तौर पर ही न सिर्फ सेक्युलरिज़्म का घोर अपमान है बल्कि विश्व के इतिहास में एक डार्क एजेस के पड़ाव के रूप में आने वाले समय में याद रखा जायेगा.
Very well written.