28 अगस्त 2023 ‘जागरण‘ का समाचार है – “कोचिंग इंस्टीट्यूट्स का गढ़ कोटा अब सुसाइड फैक्ट्री के नाम से जाना जाने लगा है। हर सप्ताह एक छात्र की आत्महत्या का मामला सामने आने से हर कोई हैरत में है।”
31 अगस्त 2023 ‘हिन्दुस्तान’ का समाचार है – “कोटा में गरीब परिवारों से जुड़े छात्र दे रहे जान।” यह सब केवल कोटा का ही समाचार नहीं है बल्कि सम्पूर्ण भारत में 20 से 30 वर्ष की आयु-वर्ग के बच्चे तनाव और अवसाद में आकर आत्महत्या कर रहे हैं जो गम्भीर चिन्ता का विषय है।
हम जानते हैं कि आज से पचास या सौ वर्ष पूर्व जीवन में जो सुविधाएँ उपलब्ध थीं, उसकी तुलना में सुविधाएँ आज बहुत बढ़ी हैं। स्कूल जाने के लिए पहले दो-चार किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ता था, आज हमारे बच्चे स्वचालित संसाधनों अथवा सुविधायुक्त निजी वाहनों से स्कूल जाते हैं। देश में IIT, MBA तथा विविध प्रकार के शिक्षण संस्थानों की संख्या बढ़ी है। इंटरनेट के युग में अनेक जानकारियाँ और पुस्तकें भी आज सर्वसुलभ हैं। फिर भी बच्चे आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? इसके कुछ कारण निम्नलिखित हैं।
उच्च शिक्षा की ललक छात्रों से भी अधिक अभिभावकों में इतनी बढ़ी है कि इसके लिए वे अपनी सन्तानों को प्रतियोगिता परीक्षाओं में उत्तीर्ण करवाने के लिए पुश्तैनी के अलावा स्वअर्जित सम्पत्ति भी झोंक देते हैं। जो अभिभावक पुश्तैनी अथवा अर्जित सम्पत्ति खर्च करने की स्थिति में नहीं होते, वे एजुकेशन लोन लेकर अपने बच्चों को पढ़ाते हैं। लेकिन स्थिति यह है कि सरकारी डेटा के अनुसार 87% बच्चे अपना एजुकेशन ऋण चुका नहीं पाते हैं, RBI के डेटा के अनुसार पिछले दस वर्षो में पन्द्रह लाख करोड़ एजुकेशन लोन चुकाये नहीं जा सके हैं। मतलब, एजुकेशन लोन का पैसा शिक्षण संस्थानों को तो मिल गया, लेकिन उसके बाद छात्रों की स्थिति की चिन्ता करनेवाला कोई नहीं है।
93% बच्चों को उनकी डिग्री, उनकी प्रतिष्ठा के अनुरूप नौकरी या व्यापार नहीं मिलते हैं। इससे उत्पन्न आर्थिक दबाव के कारण बच्चों को परिवार और समाज से व्यंग्योक्ति और कटाक्ष सुनने पढ़ते हैं। इन सब कारणों से संवेदनशील बच्चे अवसादग्रस्त हो जाते हैं और अन्ततः आत्महत्या कर लेते हैं। कुछ बच्चे अपराध की दुनिया में भी चले जाते हैं जहाँ से उनके जीवन के एक अलग दुःखद अन्त का प्रारम्भ होता है, या तो जेल में या प्रतिस्पर्धी गिरोह द्वारा उनकी हत्या में।
आपको यह जानकर दुःखद आश्चर्य होगा कि वर्ष 2021 के बाद आत्महत्या करनेवाले बच्चों का डेटा सरकार ने प्रकाशित ही नहीं किया। एक प्राइवेट NGO के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में आत्महत्या करनेवाले बच्चों की संख्या प्रति वर्ष 15% बढ़ रही है। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के आने के बाद यह प्रतिशत 25% तक बढ़ जाने की सम्भावना है। इस भयावह स्थिति का पूर्वनुमान हम लगा सकते हैं।
इस अत्यधिक चिन्ताजनक और गम्भीर स्थिति से निपटने के लिए
‘सनातन ज्ञानपीठ’, लखनऊ के संस्थापक आदरणीय योगेश कुमार मिश्र जी के मार्गदर्शन में एक योजना बनाई गई है।
‘सनातन ज्ञानपीठ’ संस्थान ने कुछ बातों पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया है। बच्चों के साथ संवाद करके उनकी प्रतिभा का आकलन किया जाएगा और उस प्रतिभा को और विकसित किया जाएगा। बच्चों के बौद्धिक स्तर में सुधार की आवश्यकता को पूर्ण किया जाएगा, Motivational tricks बताये जाएँगे। देश में अभी IPC, CrPC तथा कॉमन सिविल कोड आदि में जो विधिगत परिवर्तन किए जा रहे हैं, उनसे भी बच्चों को अपडेट किया जाएगा। इन सबके लिए संस्थान के पास विशेषज्ञजनों की एक पूरी टीम है जिसमें आवश्यकतानुसार भविष्य में और भी वृद्धि की जाएगी। इस संदर्भ में यह बतलाना उचित होगा कि श्री योगेश मिश्र जी को कानून का परिवेश विरासत में तो मिला ही है, साथ ही ये स्वयं भी एक सफल अधिवक्ता हैं।
मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए बच्चों से मात्र 2100 रूपये का प्रतीकात्मक शुल्क लिया जाएगा, प्रशिक्षण प्रदान करने के बाद यह शुल्क बच्चों को वापस कर दिया जाएगा। छः-छः महीने के सत्र रखे जाएँगे। अधिक प्रतिभाशाली एवं उद्यमी बच्चों को आर्थिक सहायता प्रदान करने की भी योजना है।
हमारे देश में लगभग 22 करोड़ लोग नौकरी नहीं करते हैं लेकिन व्यवसाय करके अपने परिवार का भलीभांति भरण-पोषण कर रहे हैं। भारत में व्यवसाय न मिले तो भी पूरे विश्व में किए जा सकते हैं। विश्व के लगभग 16 देशों में संस्थान के लोग हैं जो मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं। संस्थान का ध्यान 20-30 वर्ष की आयु के बच्चों पर है, परन्तु अन्य आयुवर्ग के लोग भी संस्थान से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
लोक कल्याण की इस योजना के प्रति जो व्यक्ति जिज्ञासु हों, वे मेरे माध्यम से अथवा स्वयं संस्थान से सम्पर्क कर सकते हैं।
- राजकिशोर सिन्हा