भारत-वर्ष टूट सकता है
हार-जीत होती रहती है , पर ये क्यों इतना डरता है ?
अब्बासी-हिंदू भारत का नेता, क्यों अपनी जान दिये देता है ?
हार से क्यों इतना डरता है ? इसके पीछे क्या भेद है ?
क्या बहुत बड़े अपराध किये हैं ? आखिर कितने छेद हैं ?
पहले क्यों नहीं सोचा था ये ? पाप क्या कभी छिपता है ?
फूट-फूट कर बदन से निकले , निश्चय ही कोढ़ी होता है ।
सजा पाप की अत्यावश्यक , वरना पुण्य नहीं होगा ;
राक्षस ही राक्षस सब होंगे , कोई देव नहीं होगा ।
भारत का अब्बासी – हिंदू , बहुत बड़ा ये पापी है ;
जल्दी अगर सजा न पाया , मचेगी आपा – धापी है ।
भारतवर्ष टूट सकता है , लोकतंत्र मिट जायेगा ;
खून की नदियाॅऺ बह सकती हैं , सबका सब लुट जायेगा ।
कुछ भी हाथ नहीं आयेगा , हर वोटर पछतायेगा ;
अभी समय है होश में आओ , बाद में न बच पायेगा ।
लूटने वाले – लुटने वाले , सब के सब मिट जायेंगे ;
सिविल-वार में सब कुछ स्वाहा , सच्चे ही बच पायेंगे ।
धर्म मानने वाले हिंदू ! सच्चाई पर चलने वाले ;
“विष्णु-कृपा” से वही बचेंगे , बाकी सब मिटने वाले ।
जिसकी जैसी मति रहेगी , वैसी ही गति पायेगा ;
अब्बासी-हिंदू को मानने वाला , कभी न सद्गति पायेगा ।
महाकष्ट ये सब पायेंगे , दंड भयंकर पायेंगे ;
कोई भी न बच पायेगा , सब जेलों में जायेंगे ।
बस थोड़े दिन शेष बचे हैं , काट ले धरती जितनी चाहे ;
अंत में तुझको ही कटना है , मरते समय भरेगा आहें ।
बहुत-बुरी ये मृत्यु पायेगा , रूह भी इसकी कांपेगी ;
ऊपर वाले की लाठी ऐसी , पूरी चमड़ी नुंच जायेगी ।
सदा से इसकी राह गलत थी , अब क्या सही राह आयेगा ?
कब्र में जिसके पांव हैं लटके, बूढ़ा-तोता क्या सीख पायेगा ?
पर जितने भी युवा – लोग हैं , सही – राह पर आ जायें ;
पूरा – जीवन सामने उनके , धर्म – मार्ग पर आ जायें ।
धर्म-सनातन की शिक्षा से , पूरा-जीवन खुशहाल बनायें ;
“एकम् सनातन भारत” चुनकर , सर्वश्रेष्ठ सरकार बनायें ।
केवल धर्म-सनातन से ही , जान-माल-सम्मान बचेगा ;
“एकम् सनातन भारत” दल ही , “राम-राज्य” लेकर आयेगा ।