बिना जांच के मीडिया ने फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह और उससे पूर्व उसकी मैनेजर की संदिग्ध मौत को आत्महत्या घोषित कर पुलिस को मदद पहुंचाने का काम किया है। आत्महत्या मानकर फाइल बंद कर दी जाएगी। परिवार रोता-चीखता रह जाएगा।
मैं दिल्ली में लंबे समय तक दैनिक जागरण में अपराध संवाददाता के रूप में काम कर चुका हूं। तीन ऐसे केस मुझे याद हैं जब दिल्ली पुलिस और मीडिया ने मिलकर आत्महत्या घोषित किया था, और अकेले दैनिक जागरण के अपराध संवाददाता के रूप में मैं इनके विरुद्ध खड़ा था। सबूत सामने थे। तीनों फाइल री-ओपन हुई और आत्महत्या को हत्या में तब्दील करनी पड़ी।
मेरी रिपोर्ट के कारण एक केस में तो दिल्ली पुलिस का एक हवलदार ही अपनी पत्नी का हत्यारा साबित हुआ। एक में शवगृह के अंदर लाश के साथ मैं रहा और चोरी छिपे उसकी तस्वीर ली, जिस पर कोहराम मच गया और SHO को लाइन हाजिर होना पड़ा और एक में एक बिजनेसमैन का दोस्त ही उसका हत्यारा निकला।
मैंने बिना खोजबीन के आज तक कोई रिपोर्ट फाइल नहीं की कभी। तभी अपराधियों ने कई- कई केस मुझ पर लादे, लेकिन अदालत में वो केस कभी टिक नहीं पाए।
पत्रकारों का काम खोजबीन करना है, न कि पुलिस के बयान को ग्राफिक्स और नयी-नयी कहानी बनाकर पेश करना। दुख होता है जब आज के रिपोर्टर, एंकर को देखता हूं। ये सब बस नौकरी कर रहे हैं, पत्रकारिकता करना इनके बूते की बात नहीं है। दुख होता है कि भारत में इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म (खोजी पत्रकारिता) दम तोड़ चुका है। दुख होता है, एक गहरा दुख!
#SandeepDeo
पत्रकारिता के नाम पर आजकल सेटींग हो रहा है।पेड न्यूज या लाभ मिल सके ऐसे समाचार बनते।खोजी पत्रकारिता का मतलब अब ब्लैकमेलिंग होता है।बहुत निराशा होती है।चौथा स्तम्भ कहा जाने वाले मिडीया कहाँ खड़ा हैं? आपके जैसे लोग आशा की किरण हैं। आप जो जानकारी देते है ऐसी न्यूज कहीं दिखता नहीं,कहीं मिलता है तो आधा अधूरा या बहुत देरसे!! आप सही में कडी तपस्या करते है और लोगों को जागृत कर रहे हैं।आपको वंदन??????