देश की सर्वोच्च जांच एजेंसियों के बीच आंतरिक कलह जैसे-जैसे सतह पर आने लगी है वैसे-वैसे यह राज भी खुलने लगा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में सबकुछ ठीक नहीं है। जिस प्रकार सीबीआई के अंदर राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा के बीच में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है उसकी आंच अब पीएमओ तक पहुंच गई है। प्रधानमंत्री कार्यालय में निजी सचिव के रूप में कार्यरत वेस्ट बेंगाल कैडर के आईएएस अधिकारी भास्कर खुलबे भी इस लपेटे में आ गए हैं। यह वही भास्कर खुलबे हैं जिनका नाम कोयला घोटाला के दौरान खूब उछला था। अब तो खुलबे को एक बार फिर से आरोपी बनाने की बात चल निकली है। सवाल उठता है कि आखिर कोयला घोटाले के आरोपी भास्कर खुलबे प्रधानमंत्री कार्यालय कैसे पहुंच गए?
सवाल तो यह भी उठता है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह नहीं पता था कि खुलबे का नाम नामी कोयला घोटाले से जुड़ा रहा है? क्या वे अभी भी इस बात से अनजान हैं कि उनके ही कार्यालय में एक ‘माईनो सिंडिकेट’ काम कर रहा है? ये वही समूह है जो पिछली सरकार के भ्रष्टाचार को दबाने में लगे थे और अभी भी उसे उजागर करने वाले अधिकारियों के पीछे पड़े हैं। जिसका खुलासा भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमनियन स्वामी करते रहे हैं।
स्वामी ही क्यों पीगुरु जैसी वेबसाइट भी माईनो सिंडिकेट ग्रुप के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित करती रही है। तभी तो वरिष्ठ पत्रकार जे गोपाल कृष्णन ने अपने एक ट्वीट में आश्चर्य जताया है कि आखिर भास्कर खुलबे की नियुक्ति पीएमओ में कैसे हो गई। जबकि सुप्रीम कोर्ट के निरीक्षण में कोयला घोटाले की चल रही जांच के तहत सीबीआई उनकी भूमिका की जांच कर रही है। गोपाल कृष्णन ने भी सवाल उठाया है कि क्या अब इतने महत्वपूर्ण जगहों पर पोस्टिंग के लिए क्या कोई जांच या फिर आईबी रिपोर्ट की कोई अहमियत नहीं रह गई है?
Wonder how Bhaskar Khulbe appointed in PMO, when CBI was looking his role in SC monitored Coal Scam…. no checking or old IB dossiers now in sensitive postings? https://t.co/w55WcEWW7P
— J Gopikrishnan (@jgopikrishnan70) October 7, 2018
गौरतलब है कि सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ अभियान चला रखा है। जबकि राकेश अस्थाना को अहमद पटेल का आदमी माना जाता है। गुजरात के संदेसरा घोटाले में अस्थाना तथा पटेल के जुड़े होने की आशंका जताई जा रही है। अस्थाना के खिलाफ छह गंभीर मामले में जांच चल रही है। इसी आधार पर वर्मा ने अस्थाना की विशेष निदेशक के रूप में नियुक्ति का विरोध किया था। आज जब भास्कर को आरोपी बनाने की बात चल रही है तो एक बार फिर अस्थाना ने इसका विरोध करते हुए उन्हें गवाह बनाने की बात कर रहे हैं। ताकि कोयला घोटाला मामले में उन्हें आरोपी नहीं बनाया जा सके। इससे स्पष्ट होता है कि भास्कर खुलबे तथा अस्थाना के बीच निकट के संबंध हैं और ये लोग वर्मा के खिलाफ हैं।
पीगुरु वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भास्कर खुलबे ही नहीं बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी के सबसे ताकतवर अतिरिक्त मुख्य सचिव पीके मिश्रा भी अस्थाना का सपोर्ट कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार जब वर्मा ने अस्थाना की नियुक्ति का विरोध किया तब पीके मिश्रा ने ही सीवीसी से कहकर उनकी नियुक्ति सुनिश्चित करवाई थी।
यहां जानना जरूरी है कि आलोक वर्मा ही वह अधिकारी हैं जिन्होंने पी चिदंबरम तथा उनके बेटे कार्ति चिदंबरम के खिलाफ चार्जशीट किया है। जिस प्रकार वर्मा के खिलाफ ये लोग एक गिरोह बनाकर अभियान चलाने में जुटे हैं इस से साफ हो जाता है कि यह गिरोह मोदी सरकार में रहते हुए यूपीए सरकार में हुए पाप को ढकने में लगे हैं। वह चाहे पीके मिश्रा हो, राजीव टोपनो हो या राकेश अस्थाना हो।
वैसे भी इस सरकार से पहले सभी की प्रतिबद्धता पहले की सरकार के खास-खास मंत्रियों की रही है। पीगुरु ने तो यहां तक दावा किया है कि पीके मिश्र अभी भी शरद पवार तथा अहमद पटेल के माध्यम से विरोधी पार्टी के टच में हैं। वहीं राजीव टोपनो के बारे में कहा है कि वह राहुल गांधी के सहयोगियों के साथ मिला है। जबकि भास्कर खुलबे को प्रशांत भूषण से मिलते देखा गया है। वे चाहते हैं कि प्रशांत भूषण कोयला घोटाला मामले में उनके खिलाफ कोई पीआईएल दाखिल न करे। पीगुरू ने तो यहां तक लिखा है कि अहमद पटेल के कहने पर ही उसके गुर्गे पत्रकार अस्थाना और वित्त सचिव हंसमुख अधिया के खिलाफ कोई नकारात्मक खबरें नहीं छप रही हैं।
अभी भी वक्त है, अगर सरकार नहीं चेती तो मोदी के नेतृत्व में चलने वाली एनडीए सरकार का हस्र भी यूपीए सरकार-2 की तरह होगी। ये नौकरशाह किसी के भी पैर पकड़ कर बैतरनी पार कर लेगें लेकिन सरकार का बेड़ा गर्क हो जाएगा।
URL: Is maino-syndicate working from pm modi office?
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