विपुल रेगे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का नया बयान पुनः हिंदूवादियों को पीड़ा दे गया है। इसी माह सितंबर में भागवत जी ने मांस-भक्षण को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया है। अब तो ये आम बात हो चली है कि संघ प्रमुख मांस भक्षण पर, आरक्षण पर, जातिवाद पर, मुस्लिम समुदाय से मित्रता को लेकर वक्तव्य देते हैं। नागपुर में उन्होंने एक कथा सुनाई और उस कथा का सार सीधा-सीधा मांसाहार को प्रेरित करने का रहा। इस बार तो भागवत जी अप्रत्यक्ष रुप से बीफ की वकालत करते हुए दिखाई दिए हैं।
नागपुर के एक कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने वक्तव्य के समय एक अनुभव सभी के साथ शेयर किया। लोग खाने के लिए बैठे थे। तब लोगों से कहा गया कि आपके खाने में गौ मांस मिला दिया गया है। गौ मांस खाने से बयालीस पीढ़ियों पर पाप लगता है। इस पर पंगत में बैठे लोगों ने कहा कि ‘सदियों से आप और हम अलग रहे, अब आपसे जुड़ने के लिए हमारी बयालीस पीढ़ियां यदि नर्क में जाती है, तो हमको मंज़ूर है। बाद में पता चलता है कि भाईचारे की परीक्षा लेने के लिए ऐसा झूठ ही कहा गया था। थी तो ये कथा लेकिन संघ प्रमुख की मानसिकता का सहज दर्शन करा गई। यदि ऐसा सच में हो जाए तो भागवत जी सच में कुछ हिन्दुओं की 42 पीढ़ियों को नर्क में पहुंचाने का प्रबंध कर सकते हैं।
भारत का हिंदूवादी वर्ग अब संघ के इस नवीनतम चेहरे को देखने का आदी हो चुका है। वैसे तो हिन्दू समाज का लगभग आधा हिस्सा मांसाहार के पक्ष में नहीं है। मांसाहार की आदत बढ़ी है लेकिन अब भी शाकाहार हिंदुत्व की जड़ों से जुड़ा हुआ है। इन लोगों के लिए गौ मांस भक्षण की बात करना भी बड़ा पीड़ादायी है, फिर मांस भक्षण को समर्थन देने की बात तो छोड़ ही दीजिये। हमें याद है जब भागवत जी ने ‘सभी भारतीयों का डीएनए एक’ वाला बयान दिया था। उस समय भाजपा नेता साध्वी प्राची ही भागवत के इस बयान के विरुद्ध खड़ी हो गईं थीं। साध्वी ने स्पष्ट कहा था कि सबका डीएनए एक है, लेकिन गाय का मांस खाने वालों का एक नहीं हो सकता है। गौ मांस को लेकर भाजपा की पार्टी लाइन बड़ी स्पष्ट रही है लेकिन संघ के नेताओं के बयान भाजपा के लिए अड़चन पैदा करते रहते हैं।
कुछ वर्ष पूर्व मांस भक्षण को लेकर दिलीप देवधर ने एक इंटरव्यू में संघ प्रचारकों पर मांस भक्षण का गंभीर आरोप लगाया था। दिलीप देवधर वे व्यक्ति हैं, जिसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लंबी रिसर्च की है। उन्होंने कहा मोहन भागवत खुद मांसाहार का लुत्फ लिया करते थे। देवधर के अनुसार ‘मैंने संघ के बालासाहब देवरस को भी आरएसएस चीफ बनने तक चिकन और मटन पब्लिक प्लेस पर खाते देखा है। संघ के कई प्रचारक नॉन-वेज फूड खाते हैं।’ उल्लेखनीय है कि संघ को नज़दीक से पहचानने वाले देवधर संघ पर 42 किताबें लिख चुके हैं। इस धृष्टता का दंड देवधर को मिला। मांस विरोधी अभियान के खिलाफ बोलने के बाद पिछले 16 वर्षों में आरएसएस समर्थक अखबार, तरुण भारत में छपने वाला उनका कॉलम बंद कर दिया गया।
गौ हत्या को लेकर भागवत के ढीले-ढाले शौर्यहीन बयान भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बनते रहे और साथ ही संघ के समर्थक भी कम होते चले गए। क्या कोई इस बात से इंकार कर सकता है कि 2014 के बाद से संघ ने जिस ढंग से अपना चेहरा बदलने का प्रयास किया, उसके चलते उसकी लोकप्रियता का दायरा कम होता चला गया। एक बार भागवत ने कहा कि ‘यदि कोई हिंदू कहता है कि मुसलमान यहां नहीं रह सकता है, तो वह हिंदू नहीं है। गाय एक पवित्र जानवर है, लेकिन जो इसके नाम पर दूसरों को मार रहे हैं, वो हिंदुत्व के खिलाफ हैं। ऐसे मामलों में कानून को अपना काम करना चाहिए।’
संघ प्रमुख के अलावा और भी लोग हैं जो इस तरह के बयान देते हैं। फरवरी 2023 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि ‘अगर कुछ लोगों ने मजबूरी में गोमांस खा लिया है तो धर्म वापसी कर सकते हैं।’ मोहन भागवत जी के ताज़ा वक्तव्य ने पुनः भाजपा को मुश्किल में डाल दिया है। सोशल मीडिया पर हर ओर उनका नया वीडियो वायरल हो रहा है। कुछ लोग इसलिए नाराज़ है कि इस गौ मांस भक्षण वाली कथा में शूद्र समाज का ज़िक्र किया गया है। वे हर विषय पर ऐसे बयान दे रहे हैं, जिससे न केवल हिन्दू प्रताड़ित हो रहे हैं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के लिए भी खाई खोदने वाला काम कर रहे हैं।
अभी उन्होंने आरक्षण पर बयान दिया। वे कहते हैं कि ‘हमने अपने ही बंधुओं को सामाजिक व्यवस्था के तहत पीछे रखा है। जब तक समानता आ नहीं जाती, आरक्षण का समर्थन करते हैं।’ 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू किया गया। इसके बाद आरक्षण बढ़ता रहा। मोहन भागवत जी ये बताए कि विगत दस वर्ष में भाजपा सरकार इतनी समानता भी न ला सकी कि आरक्षण का भयंकर बढ़ा हुआ प्रतिशत कुछ कम कर सामान्य वर्ग को राहत दी जा सके।
मौजूदा दौर संघ-भाजपा के पतन का दौर दिखाई देता है। केंद्र सरकार के कार्यकलाप और संघ का सेक्युलर होते चले जाने के बाद भाजपा का मूल वोटर आहत हुआ है। उसने अपनी पीड़ा राज्य सरकारों के चुनावों में स्पष्ट रुप से दिखा दी है। इसके बावजूद मोहन भागवत जी के ऐसे वक्तव्य जारी रहे तो भाजपा को चुनाव में बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। मौजूदा दौर में केंद्र के प्रति ‘एंटी इंकम्बेंसी’ झलकने लगी है। ये अभी कम मात्रा में है लेकिन आगे और बढ़ेगी। ऐसी फटी दरारों को सिलने के बजाय और उधेड़ने से बात बिगड़ सकती है।