इंडिया स्पीक्स डेली में प्रस्तुत है अतिथि लेखक कुक्षी निवासी गजेंद्र कुमार पाटीदार का विचारोत्तेजक लेख
गजेंद्र कुमार पाटीदार। कल रात #TheKashmirFiles फिल्म देखी, पड़ोस गांव के मल्टीप्लेक्स में पहली बार प्रवेश किया। फिल्म देखने के पश्चात कहना होगा कि कश्मीरी पंडितों के पक्ष को यह मात्र ५ प्रतिशत प्रस्तुत कर पायी है। यदि फिल्म के इन दृश्यों को देखकर आप हिल गए हैं तो सच मानिये यथार्थ के धरातल पर इससे कही अधिक घटित हुआ है।
यह मैं उस घटना के 199वें दिन से 201 दिनों पश्चात उन शिविरों में अंग भंग किए हुए जीवित बचे पंडितों को देखकर कह रहा हूँ। जिसमें ऐसी अबलाएँ थी जिनके स्तन कटे हुए थे। मेरे पास उस दिन झेनिथ कैमरा भी था, किन्तु ऐसे दृश्य खींच लेने का दुस्साहस नहीं कर पाया था। (पीड़ितों के ऐसे दृश्य खींचने के लिए पूछने का नैतिक बल ही मर चुका था। अपने ही देश में देशवासी यह झेल गए, इसलिए परोक्ष लज्जा भी रही। )
चूँकि मैंने यह सब देखा था और उन दिनों घाटी से सतत पलायन चल रहा था। यह क्रम मात्र 19 जनवरी 1990 को होकर समाप्त नहीं हुआ था। इसलिए मेरी दृष्टि में कश्मीर का यथार्थ निरंतर अपडेट होता रहा। बहुत छोटे गाँव में रहकर तब ही प्रकाशित श्री जगमोहन जी की पुस्तक ‘काश्मीर : समस्या और विश्लेषण’ पढ़ी थी। अशोक कुमार पांडे को कश्मीर का बड़ा ज्ञानी कहा जा रहा है।
अबे जब कश्मीरी पंडित अपने वक्ष पर गोलियां और आरी झेल रहे थे तब तू आठवीं कक्षा का छात्र था रे। आज कश्मीर की पुस्तकों की अपनी अलमारी दिखा ज्ञानी बन रहा है। इस बात पर तो कहूँगा कि लाइब्रेरियन के पास पुस्तकों का अम्बार होता है तो क्या लाइब्रेरियन सभी पुस्तकें पढ़ ही चुके होते हैं? जिन्हें काश्मीर त्रासदी का प्रारंभिक अध्ययन करना हो उनके लिए श्री जगमोहन जी की पुस्तक ऑनलाइन निःशुल्क उपलब्ध है पढ़िये भई।