विपुल रेगे। देश की चर्चित घटनाओं में अब ‘जवान’ शुमार हो गई है। ‘जवान’ रिलीज होने के बाद इसकी कमान पर तीर चढ़ाकर सरकार पर छोड़े जा रहे हैं। विचित्र किन्तु सत्य है कि फिल्म के स्क्रीनप्ले के कुछ अंशों में सत्यता के पुट हैं। विशेष रुप से केंद्र सरकार द्वारा नामचीन लोगों के क़र्ज़ माफ़ कर देना देश के आम लोगों के गले नहीं उतरा। ‘जवान’ में ये मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया है। और यदि इसे सत्य माना जाए तो इस फिल्म में लोगों की उमड़ती भीड़ किस ओर ‘इशारा’ कर रही है, ये सबको समझ आ जाना चाहिए।
सन 2014 के मध्य में जब देश की सरकार बदली तो देश का मिज़ाज भी बदलने लगा था। विशेष रुप से फिल्मों को लेकर एक विशेष वर्ग द्वारा अलग वातावरण पैदा किया जा रहा था। इस वर्ग की माने तो फिल्म उद्योग को देशभक्ति, धर्म और अमेरिका से आयातित राष्ट्रवाद पर ही फ़िल्में बनानी चाहिए। इसी समय किसी लेखक ने अपने लेख में शाहरुख़, सलमान और आमिर को लेकर बड़ी प्रासंगिक टिप्पणी की थी। संयोगवश उनकी टिप्पणी सत्य हो गई। उस टिप्पणी का आशय ये था कि भारत में एक ऐसी सत्ता का उदय हुआ है, जिसके बाद इन तीनों खानों की लोकप्रियता पर ग्रहण लग सकता है। उनका तात्पर्य ये था कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि उसकी विराट छाया में बॉलीवुड के सितारों की लोकप्रियता को ग्रहण लग जाएगा। बाद के वर्षों में हमने देखा कि ऐसा ही हुआ।
अब नौ वर्ष बाद शाहरुख़ खान दुगनी ताकत से वापस लौट आए हैं और बॉक्स ऑफिस की खिड़कियां उनके तूफान से टूट चुकी है। उनकी ऐसी धमकदार वापसी से हमें आखिर क्या संकेत मिल रहा है ? ये तो स्पष्ट है कि भारत की आम जनता ने शाहरुख़ की गलतियों पर उन्हें क्षमा कर दिया है। ये निर्विवाद तथ्य है कि भाजपा सरकार ने सत्ता मिलने के बाद बहुत से प्रभावशाली लोगों का लोन माफ़ कर दिया। ‘जवान’ रिलीज होने से ठीक एक माह पहले 7 अगस्त 2023 को सरकार ने संसद को बताया कि 2014-15 से शुरू होकर पिछले नौ वित्तीय वर्षों में बैंकों ने 14.56 लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज माफ कर दिए। कुल 14,56,226 करोड़ रुपये में से बड़े उद्योगों और सेवाओं के बट्टे खाते में डाले गए ऋण 7,40,968 करोड़ रुपये थे। इस पैसे में से सात लाख करोड़ ‘बड़े प्रभावशाली लोगों’ के थे।
‘जवान’ में एक आर्म्स डीलर के चालीस हज़ार करोड़ रुपये सरकार द्वारा माफ़ कर दिए जाते हैं लेकिन एक किसान अपना क़र्ज़ नहीं चुका पाता तो बैंक के वसूलीकर्ता उसका ट्रेक्टर उठा ले जाते हैं। क्या ये सच्चाई नहीं है ? कुछ अलग करने का दावा करके सत्ता में आई इस सरकार ने भी वहीं किया, जो पूर्ववती सरकारें करती आई थी। ‘जवान’ में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया गया और जनता को ये बहुत पसंद आया है। बहुत से दर्शकों को ये अपनी कहानी लगेगी, क्योंकि उनमे से बहुतों के साथ बैंक ने ऐसा ही क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया है। 14.56 लाख करोड़ रुपये माफ़ कर देने को किसी घोटाले की श्रेणी में क्यों न रखा जाए ? हालाँकि ये सवाल पूछने के लिए भारत में कोई मीडिया नहीं है। हैं तो बस वंदना करने वाले दरबारी। और दरबारी को प्रश्न करने का अधिकार नहीं होता।
बहुत से नेता और अपने मंचों से निष्कासित पत्रकार सरकार पर अघोषित आपातकाल का आरोप लगाते हैं। बहुत से लोग इसे महसूस करते हैं। इतिहास को स्वयं को दोहराने की बुरी आदत है। घोषित आपातकाल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा लगाया गया। ये इक्कीस महीने तक चला। इसी आपातकाल के साये में अगस्त 1975 में ‘शोले’ प्रदर्शित हुई। आपातकाल से परेशान हो चुके लोगों को ‘शोले’ ने राहत दी। जनता को सिल्वर स्क्रीन पर अपने गुस्से की अभिव्यक्ति होती हुई दिखी। जनता और फिल्म की भावनाएं जुड़ गई और करिश्मा घटित हुआ। यदि आज के दौर को अघोषित आपातकाल मान लिया जाए तो ये कहना पड़ेगा कि सरकार की नीतियों से त्रस्त हो चुकी जनता के गुस्से की अभिव्यक्ति ‘जवान’ में बखूबी हुई है।

आज लोग महंगाई, उग्र राष्ट्रवाद और राजनीति की सीमाएं तोड़ राजनीति करने की शैली से तंग हो चुके हैं। उनके गुस्से की अभिव्यक्ति कोई नहीं कर रहा। जिस मीडिया से उम्मीद थी, वह दरबारी बना बैठा है। ‘जवान’ ने सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर डाले हैं। लोगों की पीड़ा इस फिल्म में अभिव्यक्त हुई है। यही कारण है कि राष्ट्रवादी गिरोह फिल्म को बदनाम करने की कोशिश करता रहा लेकिन जनता ने उन्हें इस बार नकार दिया। इस लेख के लिखे जाने से एक दिन पूर्व हैदराबाद क्षेत्र के जमालपुर गाँव की घटना का उल्लेख आवश्यक है।
13 सितंबर 2023 को 58 वर्ष के किसान छोटेलाल पर कर्ज वसूली की करवाई करते हुए किसान के घर की नाप -जोख की। साथ ही घर के सभी सदस्यों के अंगूठे लगवाए और छोटेलाल को अपनी कार में बिठाकर गांव से ले जाने लगे तो ग्रामीणों ने उन्हें छोड़ने को कहा। किसान के पास बस 500 रुपये थे। उससे वही 500 छीन लिए गए। धमकी दी गई कि शुक्रवार तक कम से कम एक लाख जमा कराओ नहीं तो 14 दिन के लिए जेल भेज देंगे। इस सदमे में किसान को ह्रदयाघात हुआ और उनके प्राण चले गए। ‘जवान’ में जो दिखाया गया है, वह आज भी इस देश की धरती पर घटित हो रहा है।
क़र्ज़ वसूली के लिए उद्योगपतियों को ये सरकार जेल नहीं भेज सकती लेकिन छोटेलाल जैसे गरीबों के प्राण जाने का कारण बन सकती है। यही कारण है कि ‘जवान’ आज 600 करोड़ कमा चुकी है। शाहरुख़ खान ने इस बार बाहें फैलाकर गीत नहीं गए। उन्होंने इस बार देश के गुस्से को सिल्वर स्क्रीन पर साहस के साथ अभिव्यक्त किया है। इसी कारण देश ने उनका अभिनंदन किया है। भारत की कलेक्टिव सोच राजनीति के चयन में भले ही बेहतर न हो लेकिन सिनेमा में नैतिकता को लेकर उनका चयन और सोच गज़ब की है।