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India Speak Daily > Blog > Blog > SDeo blog > जो फूल अंजुली में गिरता है, समेट लो; अन्यथा अभागे के अभागे ही रहोगे!
SDeo blogसनातन हिंदू धर्म

जो फूल अंजुली में गिरता है, समेट लो; अन्यथा अभागे के अभागे ही रहोगे!

Sandeep Deo
Last updated: 2022/01/20 at 6:10 PM
By Sandeep Deo 52 Views 3 Min Read
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3 Min Read
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विचार और सत्य एक-दूसरे के शत्रु हैं! हां, लेकिन यह भी सच है कि विचार से ही सत्य की यात्रा शुरू होती है। जैसे यात्रा के पहले पड़ाव को छोड़े बिना अंतिम लक्ष्य तक नहीं पहुंचा जा सकता, उसी तरह विचार को छोड़े बिना सत्य को नहीं पाया जा सकता।

योग वशिष्ठ कहता है, जब विचार उत्पन्न होते हैं, तब व्यक्ति सत्य नहीं देख पाता। तब उसमें ‘मैं हूं’ का बोध रहता है। वह कहता है कि यह विचार ‘मेरा’ है। योग वशिष्ठ ने चार चरण बताए हैं, जिसे बाद में पश्चिमी मनोवैज्ञानिक फ्रायड ने- इड, ईगो और सुपर ईगो के रूप में समझाया है। योग वशिष्ठ के अनुसार-

१) जागृत चेतना- इसमें संसार की प्रतीति रहती है।

२) स्वप्न चेतना- अहं का भाव।

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३) मन: चेतना- सुषुप्ति अवस्था

४) शुद्ध चेतना- अखंड सत्य

योग वशिष्ठ के अनुसार, चौथी अवस्था के बाद चेतना की परम शुद्धता रहती है। उसमें अवस्थित होने पर व्यक्ति दुखों से परे हो जाता है।

कल ओशो के महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर किसी ओशो-प्रेमी के एक सुंदर पोस्ट को मैंने शेयर किया था। ओशो मेरे आध्यात्मिक गुरू हैं। इसलिए नहीं कि मैंने केवल उनके कम्यून में दीक्षा ली है, बल्कि इसलिए कि उनके ध्यान विधियों से गुजर कर मैं स्वयं में स्थित हो सका हूं। ओशो के कारण मैं शुद्ध चेतना के स्तर को छू सका हूं।

अब कल बहुत सारे ओशो-विरोधी पोस्ट पर आ गये, वही अनाप-शनाप जो १९६२ से उनके साथ चल रहा है, पेस्ट करने लगे। मेरा कहना है कि आप मत मानो ओशो को, क्या फर्क पड़ता है। बिना चेतना के ओशो को नहीं समझा जा सकता है। खाली दर्पण को कैसे समझ पाओगे? ज्यों ही समझने जाओगे, अपना अक्श उसमें उभरा पाओगे। और वही ‘अहं’ है, जो नहीं समझने देगा।

सागर को नहीं समेट सकते। इसलिए अंजुली में जितना समाता है, ले लो, बांकी को छोड़ दो। संपूर्ण सागर को समझने के चक्कर में मस्तिष्क फट जाएगा, और फिर कुछ हाथ न आएगा।

इसे कुछ दूसरी तरह से समझो! भगवान पर फूल चढ़ाने के लिए क्या पूरी बगिया उजाड़ते हो? जो फूल तुम्हें पसंद आता है, वही चुनते हो न? फिर वही चुनो! व्यर्थ उलझन से एक फूल भी तुम्हारी झोली में नहीं आ सकेगा, और फिर अभागे के अभागे ही रह जाओगे! धन्यवाद!

संदीपदेव

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Sandeep Deo January 20, 2022
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Sandeep Deo
Posted by Sandeep Deo
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Bestseller Author by Nielsen Jagran | Awarded by Sahitya Akademi | Journalist over two decades | Founder editor of https://indiaspeakdaily.in
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