भगवान बुद्ध के संबंध में कथा है कि वे मोक्ष के द्वार पर पहुंचकर, भीतर प्रवेश नहीं किये। वे करुणावश रुके गये, जब तक कि सारे लोग न आ जाएं।
इसी संदर्भ में किसी शिष्य ने पूछा कि क्या आप भी इसी प्रकार हमारी राह देखेंगे?
ओशो ने अत्यंत प्रेम से कहा-
तुम मुझसे पूछ रहे हो, क्या मैं भी तुम्हारा इंतजार करूंगा? मैं तुम्हारा इंतजार कर ही रहा हूं, और आगे भी इंतजार करता रहूंगा; चाहे शरीर में अथवा शरीर के बाहर।
जिन लोगों से मैंने प्यार किया है, जिन्होंने अपना हृदय मेरे लिए खोल दिया है, वे लोग जिन्होंने भक्ति के खतरनाक मार्ग की जोखिम उठाई है, जो तलवार की धार पर चल रहे हैं, निश्चित रूप से उनके लिए मैं अनंत काल तक प्रतीक्षा करूंगा।
जिन्होंने मुझे प्रेम किया है, जिन्होंने मेरा प्रेम गृहण किया है, मैं उनके लिए प्रतिबद्ध हूं। मैं देह में बने रहने के लिए यथासंभव प्रयास करूँगा, और भले ही मुझे शरीर छोड़ना पड़े, तब भी मैं सब कुछ करूँगा, तुम्हारे चारों ओर निरंतर मौजूद रहने के लिए। तुम मुझे देख नहीं पाओगे, लेकिन मैं तुम्हें देख पाऊंगा।
बस याद रखना, मुझे निराश मत करना।
ओशो, ‘दि रेबेल’ के प्रवचन-27 से
ओशो की समाधि पर लिखा है…
Never Born
Never Died
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Dec 11, 1931 – Jan 19, 1990.