डा. कायनात काज़ी जितना अच्छा लिखती हैं, उतनी अच्छी फोटोग्राफी भी करती हैं। हिंदी साहित्य में पीएचडी कायनात एक प्रोफेशनल फोटोग्राफर हैं। राहगिरी नाम से उनका हिंदी का प्रथम ट्रेवल फोटोग्राफी ब्लॉग है। कायनात कहती हैं, “फोटोग्राफी के दौरान मैंने महसूस किया कि ट्रेवेल ब्लॉग भी बहुत सारे हैं और फोटोग्राफी के भी खूब ब्लॉग हैं। लेकिन हिंदी में एक भी ब्लॉग ऐसा नहीं है जिसमें कंटेंट भी अच्छा हो और फोटोग्राफ भी उम्दा। मैंने सोचा क्यों न इस कमी को पूरा किया जाए? इसमें मेरा लेखक और फोटोग्राफर होना काम आया और इस तरह से हिंदी के पहले ट्रेवल फोटोग्राफी ब्लॉग ‘राहगिरी’ का उदय हुआ।” फोटोग्राफर, ट्रेवल राइटर और ब्लॉगर डा.कायनात काजी को देश के प्रतिष्ठित न्यूज चैनल एबीपी न्यूज के बेस्ट हिंदी ब्लॉगर अवार्ड से सम्मानित किया गया है।
फोटोग्राफी और लेखन के लिए डा.कायनात काजी को इससे पहले भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वह यायावर और घुमक्कड हैं। फोटोग्राफी कायनात का जुनून है और भ्रमण उनका शौक। कायनात कहती हैं, “यात्रा और फोटोग्राफी के लिए मैं हमेशा अपना एक बैग तैयार रखती हूं। एक सोलो फीमेल ट्रेवलर के रूप में मैं महज तीन वर्षों में ही देश-विदेश में करीब 80 हजार किलोमीटर की दूरी नाप चुकी हूं।”
कायनात के पास विभिन्न विषयों पर करीब 25 हजार फोटो का कलेक्शन भी है। उनकी नई दिल्ली के इंडिया हैबीटेट सेंटर सहित कई अन्य जगहों पर फोटो प्रदर्शनियां लग चुकी हैं। एएमबीए करने के साथ-साथ उन्होंने प्रतिष्ठित जागरण इंस्टीट्यूट आफ मॉस कम्यूनिकेशन से पत्रकारिता की पढ़ाई भी की है। कई मीडिया संस्थानों में काम भी किया। लेकिन मन नहीं रमा तो सब कुछ छोड़ कर फोटोग्राफी और लेखन में जुट गईं।
उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में जन्मी कायनात बचपन में फोटोग्राफर बनकर दुनिया को नापने का सपना देखा करती थीं। लेकिन तब पढ़ाई और करियर के चक्कर में यह सपना धरा ही रह गया। कायनात बताती हैं, “मेरे अब्बू बहुत अच्छे फोटोग्राफर थे। जब मैंने होश संभाला तो सबसे पहले अब्बू के हाथ में ही कैमरा देखा। अब्बू के साथ मैं साल में कई दफा घूमने जाया करती थी। अब्बू घूमते कम और फोटोग्राफी ज्यादा करते। बस यहीं से मुझे भी फोटोग्राफी का चस्का लग गया। पहला कैमरा मुझे अब्बू ने ही खरीद कर दिया था।”
करीब चार साल पहले कायनात ने प्रसिद्ध फोटोग्राफर डा ओपी शर्मा से फोटोग्राफी के गुर सीखे। फिर दुनिया नापने निकल पड़ी। हाल ही में वह यूरोप यात्रा करके भी लौटी हैं।
कायनात कहानीकार भी हैं और साहित्य की शोधार्थी भी। कृष्णा सोबती पर लंबे शोध के बाद उन्होंने ‘कृष्णा सोबती का साहित्य और समाज’ नाम से एक किताब लिखी है। कॉलेज के दिनों में ही उनकी कई कहानियों का आकाशवाणी पर प्रसारण हो चुका है। जल्दी ही उनका कहानी संग्रह ‘बोगनबेलिया’ भी प्रकाशित होने वाला है। फिलहाल, वह शिव नाडर विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
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