कर्नाटक में जो हुआ उसे राजनीति की भाषा में अवसरवाद कहते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा के बेटे और जेडीएस के सर्वेसर्वा कुमार स्वामी एक दगाबाज राजनेता हैं। फिलहाल वह कर्नाटक के मुख्यमंत्री भले बन जाएं, लेकिन राजनीति में उनकी स्थिति ‘डगरे के बैगन’ से अधिक नहीं है। कुमार स्वामी ने इस बार भाजपा को धोखा दिया है, लेकिन पहले वह कांग्रेस को भी धोखा दे चुके हैं। इस बार जेडीएस ने बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाया है। इसी बीजेपी के साथ साल 2006 में जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई थी और खुद कुमारस्वामी सीएम बने थे। गठबंधन की उस सरकार में जब येदियुरप्पा का सीएम बनने का नंबर आया तो कुमारस्वामी ने समर्थन वापस ले लिया था।
इस कर्नाटक चुनाव से पूर्व पर्दे के पीछे भाजपा और JDS के बीच गठबंधन का आकलन सभी विश्लेषकों ने किया था। यही कारण है कि चुनाव प्रचार में न तो कुमार स्वामी भाजपा पर हमला कर रहे थे, और न ही भाजपा ने ही कभी देवेगौड़ा और कुमारस्वामी पर हमला किया। उल्टा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देवेगौड़ा की बार-बार तारीफ ही की, लेकिन चुनाव परिणाम आते ही ज्यों ही 37 सीटों वाली जेडीएस को 78 सीटों वाली कांग्रेस ने समर्थन देने का लालच दिया, मुख्यमंत्री बनने की लालसा पाले कुमारस्वामी ने भाजपा को धोखा दे दिया!
चुनाव प्रचार के दौरार कुमारस्वामी और कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया एक-दूसरे पर ओछी टिप्पणी कर रहे थे। सिद्धारमैया पूर्व में जेडीएस में ही थे, लेकिन उसे छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गये थे। वह खुलेआम कुमारस्वामी के पिता व पूर्व मुख्यमंत्री देवेगौड़ा के लिए अपशब्द बोला करते थे। और कुमारस्वामी सिद्धारमैया के लिए अपशब्द बोला करते थे, लेकिन ज्योंही एक को अपना भ्रष्टाचार बनाने का अवसर मिला और दूसरे को मुख्यमंत्री बनने का तो दोनों ने हाथ मिला लिया।
ऐसा नहीं है कि कुमारस्वामी ने अपनी बार धोखेबाजी की है। साल 2006 में कांग्रेस की सरकार गिराकर कुमारस्वामी ने भाजपा से हाथ मिलाया था। मायावती के स्वभाव वाले कुमारस्वामी केवल और केवल सत्ता के लालची हैं। इनकी अपनी कोई विचारधारा नहीं है। कभी भाजपा के साथ तो कभी कांग्रेस के साथ मिलकर उन्होंने केवल सत्ता की मलाई चाटी है।
1996 से शुरू अपने राजनीतिक सफर में एचडी कुमारस्वामी न तो कांग्रेस को अपना बना पाए न ही भाजपा को। अपने पिता के खिलाफ जाकर कुमार स्वामी ने 2006 में पहले कांग्रेस से हाथ मिलाया, फिर भाजपा की आरे चले गये। इसलिए आज तक उनकी राजनीतिक हैसियत नहीं बढ़ी। अब जब उनके पिता देवेगौड़ा से सिद्धारमैया अपनी दुश्मनी निभा रहे हैं, ऐसे में फिर कुमारस्वामी ने उन्हीं की शरण में जाने का फैसला किया है।
मालूम हो कि 2018 में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के पहले ही कुमारस्वामी ने कहा कि वह साल 2006 में अपने पिता के विरोध में जाकर भाजपा के साथ जाने का फैसला कर जो गलती की थी उसे सुधारने का ही भगवान ने मौका दिया है। इसलिए उस गलती को सुधारने के लिए ही कुमारस्वामी ने कांग्रेस की ओर जाने का फैसला किया।
दरअसल कुमारस्वामी की महत्वाकांक्षा ने ही उन्हें कांग्रेस के साथ कभी सहज नहीं रहने दिया। 2004 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने जेडीएस के साथ सरकार बनाई। जैसे ही साल 2006 में मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव मिला पिता एचडी देवेगौड़ा की भी बात नहीं मानी और भाजपा का हाथ थाम लिया। साल 2007 में कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री पद पर अपनी तय सीमा पूरी होने के बाद भाजपा को वादा के अनुरूप मुख्यमंत्री पद देने से इनकार कर दिया और सरकार से भी समर्थन वापस ले लिया।
मालूम हो कि कुमारस्वामी साल 2006 से 2007 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वे JDS का गढ़मानी जाने वाली रामानगरम से तीन बार विधायक रह चुके हैं। कुमारस्वामी दो बार लोकसभा सांसद भी रह चुके है। राजनेता होने के अलावा कुमारस्वामी कन्नड़ फिल्मों में बतौर निर्माता और वितरक भी काम करते हैं। कुमारस्वामी को चाहने वाले उन्हें कुमारान्ना के नाम से भी पुकारते हैं।
कुमारस्वामी आस्तीन के सांप हैं! इनकी फितरत में ही धोखा है। उस पर विश्वास करना ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भारी पड़ गया और भाजपा नेता येदुरप्पा केवल कुछ घंटे के मुख्यमंत्री बनकर रह गये।
URL: Kumar Swamy Between BJP and Congress
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