इतिहास सिर्फ विजेता लिखते है लेकिन अपने काले कारनामे हमारे भरोसे छोड़ जाते है। ३० अप्रैल १९४५ को हिटलर ने आत्महत्या कर ली। सोवियत संघ की सेना ने बर्लिन में प्रवेश किया। मात्र ३ दिन में २० लाख जर्मन महिलाओं का बलात्कार हुआ, आप अंदाज लगाइए कि रूसियो के ये बलात्कार कितने समय तक चले? ५ दिन, १० दिन या १ महीना? दरसल ये बलात्कार १९४८ तक चलते रहे अर्थात ३ वर्षो तक।
जब सोवियत संघ के तानाशाह जोसेफ स्टालिन से ये सब रोकने को कहा गया तो उसके शब्द थे “सैनिक अपने घर से इतनी दूर है उन्हें मजे करने दो।” बलात्कार जारी रहे तब ही अचानक अमेरिका की सेना भी बर्लिन पहुँच गयी और ११ हजार अन्य जर्मन लड़कियों के साथ ज्यादती की। लेकिन इसके बाद फ्रांस की सेना आयी उन्होंने भी वही किया। इंग्लैंड और भारत की सेना थी जिन्होंने मानवता दिखाई, सिर्फ तीन अंग्रेज बलात्कार में लिप्त पाए गए जिनका बाद में कोर्ट मार्शल भी हुआ।
अचरज की बात है जोसेफ स्टालिन ने अपने व्याख्यान में कहा था कि ये सत्य और मानवता की जीत है। नही मूर्खो ये सिर्फ तुम्हारे वहशीपन और लालच की जीत है। आज के जर्मनी को देखकर ऐसा बिल्कुल नही लगता कि उसने क्या कुछ सहा है। सोवियत सेना आने से पहले इनके अपने नाजी सैनिक भी यही सब करते थे।
हिटलर को बैठाना उनकी आर्थिक मजबूरी थी, हिटलर की भी अपनी मजबूरी थी प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी पर बहुत कुछ थोपा गया था। कुल मिलाकर दोष परिस्थितियों का था, लेकिन इन साहित्यकारों ने उसे प्रजेंट ऐसे किया मानो सारा दोष एक हिटलर का था और बाकी सब तो कुरुक्षेत्र में धर्म की रक्षा करने गए थे।
उनमें और हममें बस यही अंतर है हमारे पूर्वज स्त्री के सम्मान के लिये लड़े और उनके पूर्वज स्त्रियों के लिये। चाहे कितनी भी जीडीपी कर लो, कितने ही कॉपी पेस्ट वाले आविष्कार करो लेकिन जब ईश्वर मानवता का मूल्यांकन अपनी तुला में करेगा तब भारत सदैव जग सिर मोर रहेगा।