आदरणीय स्वामी जी
सादर चरण वन्दन
मैं,श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा-महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी जी, आपके श्रीचरणों में कुछ निवेदन करना चाहता हूँ। यदि आपको मेरी किसी बात से ठेस पहुंचे तो मुझे क्षमा करने की कृपा करियेगा। मैं यह पत्र किसी व्यक्तिगत आकांक्षा या पीड़ा से प्रेरित होकर नहीं लिख रहा हूँ, अपितु सनातन धर्म तथा हम सबके अस्तित्व पर आए आज तक के सबसे बड़े संकट ने मुझे आपको यह पत्र लिखने के लिए बाध्य कर दिया है। पत्रवाहक स्वामी अमृतानंद जी तथा बालयोगी ज्ञाननाथ जी सनातन धर्म के बहुत प्रखर योद्धा एवं मेरे बहुत ही आदरणीय मित्र हैं। ये आपसे व्यक्तिगत वार्ता में सारे विषय पर गूढ़ चर्चा करके आपका मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे तथा मुझे आपके अमूल्य विचारों से परिचित करवाएंगे।
मैं इस पत्र के माध्यम से आपके श्रीचरणों में यह अनुरोध करना चाहता हूँ कि मूर्ख तथा अज्ञानी जन केवल वर्तमान तक ही सीमित रहते हैं, परंतु विद्वान वे होते हैं, जो भूत तथा वर्तमान को आधार मानकर भविष्य की गणना कर लेते हैं। विद्वानों में भी किसी जाति का धर्मगुरु कहलाने का अधिकार केवल उनका होता है जो भूत तथा वर्तमान के आधार पर भविष्य को समझ कर अपने समाज के गौरव को आकाश की ऊंचाइयों तक ले जाने के लिये निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर महर्षि दधीचि की भांति अपनी अस्थियों का दान करके धर्म तथा समाज के शत्रुओं के समूल विनाश की आधारशिला रखते हैं।
भारतवर्ष में जनसंख्या की गणितीय गणनाओ से यह लगभग सुनिश्चित हो चुका है कि शीघ्र ही भारतवर्ष का प्रधानमंत्री मुस्लिम होगा जिसके बाद सनातन धर्मावलंबियों के पास नाम मात्र के लिये भी कोई देश नहीं रह जायेगा। इस्लाम के क्रूरतापूर्ण इतिहास को देखते हुए यह भी तय है कि भविष्य में भारतवर्ष पर यदि इस्लाम का कब्जा हुआ तो इस्लाम के जिहादी कम से कम लगभग 40% हिन्दुओ का कत्ल करके लगभ 50% हिन्दुओ को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर कर देंगे। उसके बाद 10% हिन्दू जो बचेगे वो या तो विदेशो में रहेंगे या कहीं शरणार्थी शिविर में रहेंगे। हिन्दू समाज तथा सनातन धर्म के विनाश की यह सम्पूर्ण प्रक्रिया भारतवर्ष का मुस्लिम प्रधानमंत्री बनने के केवल लगभग 20 वर्षो में ही पूर्ण हो जाएगी।
यह स्थिति सम्पूर्ण मानवता के इतिहास का सबसे भयावह तथा घृणित भाग होगी क्योंकि भारतवर्ष पर कब्जा करने के बाद इस्लाम विश्व की सबसे बड़ी शक्ति होगा तथा सम्पूर्ण विश्व के महाविनाश के अपने घोषित लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम होगा। उसके बाद इस्लाम के जिहादी विश्व के हर गैर मुस्लिम जिसे इस्लाम की भाषा मे काफ़िर कहा जाता है, के घर तक पहुँच जायेगे तथा सम्पूर्ण विश्व एक नरक में परिवर्तित हो जाएगा। इस सम्पूर्ण महाविनाश के उत्तरदायी हम अर्थात सनातन के धर्मगुरु होंगे क्योंकि सर्वाधिक प्राचीन धर्म व संस्कृति के वाहक ही होने के कारण यह हमारा ही दायित्व था कि हम विश्व को इस भयानक खतरे के विश्व मे बताते तथा इससे निबटने की भी तैयारी करते पर हमने ये नहीं किया तथा इसका परिणाम यह हुआ है कि आज सम्पूर्ण विश्व इस महाविनाश के कगार तक पहुँच गया है।
वस्तुतः स्वयं को जगद्गुरु कहलाने की आकांक्षी संस्कृति का यह प्रथम कर्तव्य था कि इस भयानक खतरे का सामना करने के लिए विश्व का नेतृत्व करती, परन्तु दुर्भाग्य से हमने यह मौका खो दिया तथा अब परिस्थितिया इतनी विकट हो गयी हैं कि हमारे साथ साथ सम्पूर्ण मानवता के विनाश का खतरा हमारे समक्ष आ चुका है। यह निश्चित है कि अब इस खतरे से बचने का कोई भी शांतिपूर्ण समाधान सम्भव नहीं है क्योंकि इस्लाम कभी भी शांतिपूर्ण समाधान पर सहमत नहीं होता। इस्लामिक राज के आने पर इस्लाम से शांति की आशा रखने वाले ना केवल मूर्ख अपितु अपने कुल तथा धर्म के घाती भी समझे जाने चाहिये। क्या एक धर्मगुरु के रूप में आप यह चाहते है कि आने वाला कल आपको इस रूप में देखे। यदि आप यह चाहते हैं तो मुझे आपसे कुछ भी नहीं कहना है परंतु आप यदि यह नही चाहते तो मैं आपसे कुछ निवेदन करना चाहता हूँ।
मेरा निवेदन यह है कि आज हमारे समाज को एक जाति के रूप में ढालने की आवश्यकता है। एक जाति वह होती है जिसका एक सर्वमान्य धर्मानुशासन होता है। सर्वमान्य धर्मानुशासन के लिये सर्वमान्य धर्म पुस्तक चाहिये। यह पुस्तक ऐसी होनी चाहिये जो हमें स्पष्ट रूप से यह धार्मिक आदेश दे कि एक सनातन धर्मी के रूप में हमे यह अवश्य ही करना है तथा यह कभी भी तथा किसी भी कीमत पर नहीं करना है। ऐसे किसी स्पष्ट धर्मानुशासन के अभाव में चालाक तथा स्वार्थी तत्व हममें विभिन्न प्रकार से मतभेद पैदा करके अपनी स्वार्थपूर्ति करके समाज को विनाश की तरफ धकेल देते हैं।
हमारी अब तक कि कमी यही है कि हमारे पास अभी तक कोई सर्वमान्य धर्मपुस्तक नहीं है। यह धर्मपुस्तक हमारे सर्वमान्य महापुरुष श्रीराम,श्रीकृष्ण तथा श्रीपरशुरामजी के जीवन के आधार पर ही तैयार की जा सकती है क्योंकि महापुरुषों का जीवन ही हम सबको हमारे कर्तव्यपथ का बोध करवा सकता है। यदि सनातन धर्मी समाज के दिशानिर्देश के लिये एक ऐसी सर्वमान्य पुस्तक यदि तैयार हो जाती है तो निकट भविष्य में हम सनातन धर्मी भी एक जाति के रूप में धार्मिक रुप से संगठित हो जाएंगे तथा तब हम किसी भी धार्मिक या सामाजिक संकट से हम न केवल लड़ सकेंगे बल्कि संकट को समाप्त करके मानवता की रक्षा करने में भी सक्षम हो जाएंगे। यदि हम यह धर्मानुशासन निर्माण करने में सफल रहे तो एक दिन इस्लाम के जिहाद से मुक्त अखण्ड भारत बन कर रहेगा तथा हम पुनः विश्वगुरु होंगे।
इसके साथ ही हमें अपने अनुयायियों तथा शिष्य गणों को बाध्य करना पड़ेगा की वो अपनी दैनिक प्रार्थना ने अपने इष्ट देव से अपनी अन्य कामनाओं के साथ ही सनातन धर्म,अपने राष्ट्र,अपने परिवार व अपनी स्वयं की रक्षा तथा सनातन धर्म,अपने राष्ट्र, अपने परिवार व अपने स्वयं के शत्रुओ का समूल विनाश भी मांगे।
हमें अपने प्रत्येक मठ,मंदिर व पूजा गृह में लगाए जाने वाले नारो में भी बदलाव करते हुए सनातन धर्म की जय तथा सनातन के शत्रुओ का विनाश का नारा लगाना होगा।
असंख्य मत मतान्तरों,पंथो तथा जातियों ने विभाजित हमारे समाज की दयनीय स्थिति को देखते हुए यह कार्य अति दुष्कर बल्कि सच कहा जाए तो असम्भव ही प्रतीत होता है परन्तु यही सनातन धर्म के अस्तित्व को बचाने का एकमात्र रास्ता है। आपसे अनुरोध है कि इस विषय में शीघ्रातिशीघ्र अपने बहुमूल्य सुझाव पत्र के माध्यम से मुझे प्रदान करने की कृपा करें ताकि हम अगले चरण की ओर बढ़ सकें, योजना बना सकें। आशा करता हूं कि आप मेरी द्वारा इस पत्र में लिखी गयी कुछ कड़वी बातो से लिये मुझे क्षमा करेंगे तथा मेरी भावनाओ को समझते हुए आसन्न संकट से सनातन धर्म तथा धर्मावलंबियों को बचाने के प्रयासों के भागीदार बनेंगे।
धन्यवाद
सारे संतों को भगवत गीता को सर्वमान्य करके आगे की रणनीति बनानी चाहिए।