शंकर शरण । संघ परिवार के नेतृत्व में बढ़ती इस्लाम-परस्ती आरामपसंदगी है, या कि बाहरी प्रभाव? यह प्रश्न अब कई सचेत हिन्दू पूछ रहे हैं। संघ के नेताओं में इस्लामपरस्ती की झक का क्या कारण है?.. भाजपा की बुनियादी टेक, ‘किसी का तुष्टीकरण नहीं’ पर ठीक उल्टे करने वालों पर श्मशानी मौन का क्या अर्थ? उत्तर यही हो सकते हैं कि – 1. सभी संघ-भाजपा सांसद जड़ विचारहीन हैं। नीति-अनीति-कुनीति की समझ से कोरे। अथवा, 2. इतने भीरू हैं कि दुश्मन क्या, अपने नेताओं से भी कुछ बोलने में डरते हैं। या, 3. उन के दल-संगठन पर बाहरी प्रभाव बन चुका है।
संघ परिवार-2: एक ओर दुनिया भर का मीडिया भारत में ‘हिन्दू फासीवादी’ राज कह कर गैर-हिन्दुओं को पीड़ित बताता है। भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम संगठन यहाँ ‘कांटों पर रमजान’ मनाने जैसी दुर्दशा रोता है। जबकि असलियत केरल, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, कश्मीर, बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, तक नियमित रूप से हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसा-उत्पीड़न की है। कानूनन भी, शिक्षा और मंदिर संचालन में, हिन्दू दूसरे दर्जे के नागरिक वाली हीनता झेल रहे हैं।
तब यदि संघ परिवार का नेतृत्व देशी-विदेशी मुसलमानों को खुश करने के लिए हिन्दू जनता की कमाई लुटा रहा है। बदले में कृतज्ञता पाना तो दूर, उल्टे हिन्दू समाज और भारत सरकार पर झूठी तोहमतें बढ़ती जा रही हैं। इस के बावजूद उलटी नीति अस्वभाविक है! सामान्यतः अति-उदारता बरतने पर भी उत्तर में गाली-पत्थर मिले, तो उदारता फौरन बंद की जाती है। तो, देशनीति प्रसंग में उल्टा व्यवहार, वह भी बढ़ती मात्रा में, निस्संदेह मामला संदिग्ध बना देता है।
इसीलिए कुछ अनुभवी अवलोकनकर्ता अंदरूनी और वैदेशिक नीतियों में बढ़ती इस्लामपरस्ती पर आशंकित हैं। संघ के नेताओं में इस्लामपरस्ती की झक का क्या कारण है? उस पर संघ के निचले-बिचले नेताओं में छटपटाहट के बावजूद वे दिनो-दिन बढ़ रहे हैं। अन्य किसी दल में ऐसा नहीं हुआ कि अपने किसी नेता द्वारा दल की मूल छवि के प्रतिकूल काम करने पर प्रतिवाद न हो। कांग्रेस में, प्रणव मुखर्जी, मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर, आदि बड़े नेताओं को समय-समय पर अपनी पार्टी से झिड़कियाँ सुननी पड़ी, जब भी पार्टी की वैचारिक छवि का अतिक्रमण हुआ हो।
तब संघ-भाजपा में एकदम उलटी चाल अपना लेने वालों पर भी चुप्पी का कारण ‘अनुशासन’ नहीं है। क्योंकि केवल कुर्सी से हटाने, या टिकट न मिलने पर भी अनेक संघ-भाजपाई नेता बयानबाजी से लेकर अलग पार्टी तक बनाने के काम करते रहे हैं। कोई अनुशासन आड़े नहीं आता।
तब भाजपा की बुनियादी टेक, ‘किसी का तुष्टीकरण नहीं’ पर ठीक उल्टे करने वालों पर श्मशानी मौन का क्या अर्थ? उत्तर यही हो सकते हैं कि – 1. सभी संघ-भाजपा सांसद जड़ विचारहीन हैं। नीति-अनीति-कुनीति की समझ से कोरे। अथवा, 2. इतने भीरू हैं कि दुश्मन क्या, अपने नेताओं से भी कुछ बोलने में डरते हैं। या, 3. उन के दल-संगठन पर बाहरी प्रभाव हो चुका।
यह तीसरी बात कांग्रेस के बारे में संघ-भाजपाई ही पहले (शायद आज भी) कहते रहे कि कांग्रेस पर ‘इटालियन माफिया’ और पोप का ‘नियंत्रण’ है। उसी तर्ज पर, कई वर्षों की गतिविधियों से कुछ लोग संदेह कर रहे हैं कि संघ परिवार पर क्या कोई बाहरी प्रभाव हो चुका? जैसे, चर्चित टिप्पणीकार रविनार ने हाल के कश्मीर घटनाक्रम पर यह लिखा है। कुछ पुराने संघ कार्यकर्ता तक ऐसी शंका कर रहे हैं।
यह कोई दूर की कौड़ी नहीं। अपराधियों में पुलिस और पुलिस में अपराधियों के एजेंट होने की कहानियाँ रही हैं। इस पर हॉलीवुड और यहाँ भी फिल्में बनी हैं। जैसे, मार्टिन सॉरसेज की रोमांचक फिल्म ‘द डिपार्टेड’। फिर, भारत में कई राजनीतिक दलों में सोवियत एजेंट होने की बात दशकों से जाहिर है। अंतराष्ट्रीय चर्चित, दो खंडी दस्तावेजी पुस्तक ‘मित्रोखिन आर्काइव्स’ के विवरण इस के अकाट्य प्रमाण हैं। फिर, हमारे नेता ही दूसरे नेताओं पर सीआईए, केजीबी, राबिता के एजेंट होने के आरोप लगाते रहे है।
यूरोप में भी राजनीतिक उद्देश्य से पेट्रो-डॉलर के उपयोग की बातें होती रही हैं। तब भारत जहाँ इस्लाम की दूसरी सब से बड़ी आबादी और गत सौ सालों में वैश्विक इस्लामी बढ़त में एक बड़ी भूमिका रही, वहीं पेट्रो-डॉलर की निष्क्रियता का कोई कारण नहीं। बात केवल इतनी बचती है कि वह आज कहाँ, किन पर सक्रिय होगी? इस का उत्तर रंगरूट पत्रकार भी दे सकता है। अतः रविनार की आशंका बेसिर-पैर नहीं।
वरना, एक सत्ताधारी संगठन में ऐसे नेता की बढ़त की क्या कैफियत जो स्वेच्छा से ईद की बधाई देने में, कैमरे पर, अपना लिखित बयान पढ़ने में भी, तीन-चार पंक्तियां तक ढंग की न बोल सकता हो! किसी के लिखे/ बोले शब्द कभी-कभी बड़े रहस्य खोल देते हैं। अनचाहे। अकारथ वक्तव्यों के शब्द भी सचाई झलका देते हैं कि वक्ता बातें बना रहा है। ध्यान से सुनने वाले वह भी समझ लेते हैं जो वक्ता छिपाना चाहे।
सो, गत वर्ष उस ईद-मुबारक वीडियो में बोदे बयान ने साफ चुगली की कि हेवीवेट नेता जो कह रहा है – उस के बारे में सिफर है! सही क्या, दो-चार बनावटी बात भी कहने जोड़ने की उसे अकल नहीं। तब संगठन में उस की सतत बढ़त का क्या मतलब, जबकि वह वोट-खींचक भी नहीं?
यही मतलब निकलता है कि उस की पीठ पर कोई वरदहस्त है। वह हाथ किस का है? किसी मुलायम, सोनिया, केजरीवाल, आदि का होना तो असंभावित है। तब संघ-भाजपा में किस का? उसी का, जो खुद वैसे काम करता दिखना नहीं चाहता – मगर ऐसे भोलेनाथ से करवा रहा है! उसे हेवीवेट बना कर साधन, सुविधा, ताकत भी दे रहा है।
अर्थात, नए-नए इस्लामी संस्थानों का निर्माण, इस्लामी तत्वों को विशेष संसाधन, एवं बढ़ावा देने वाले काम। घातक हिन्दू-विरोधी काम! यह अब इक्के-दुक्के दिखावटी नहीं, अपितु नियमित नीति सा रूप लिए लगते हैं। पिछले वर्षों के ठोस तथ्य, और आँकड़े इस की कहानी खुद कहते हैं। भाजपा के जिम्मेदार नेता ही सगर्व, लिखित घोषणाएं करते हैं, कि ‘हम ने मुसलमानों के लिए ये-ये किया, जो कांग्रेस ने नहीं किया था।’
इस प्रकार, संघ-भाजपा नेतृत्व में इस्लाम-परस्ती सुविचारित बात हो जाती है। अपने संगठन में भी ऐसे लोगों को बढ़ावा, तथा विवेकशील कार्यकर्ताओं को उपेक्षित रखना भी उसी आशंका को बल देता है।
यह भी उल्लेखनीय है कि अन्य राजनीतिक धाराओं की तुलना में संघ के ही नेता अधिक सरलता से शीशे में उतारे जा सकते हैं। वे इतने भोले या आतुर होते हैं। यह दुर्बलता संघ के अनुभवी लोग भी मानते हैं। मामूली व्यापारी, चतुर छात्र द्वारा भी वे प्रभावित कर लिए जाते हैं। तब अंतरराष्ट्रीय वकत रखने वाले किसी बाहरी घाघ के इस में विफल होने का कोई कारण नहीं!
दूसरी ओर, आलोचनाओं पर चुप्पी, तथा आलोचकों को कभी ‘अमेरिकी एजेंट’, कभी ‘आइसिस एजेंट’ बताना भी विचित्र संकेत है। अंततः उन भाजपा सांसदों को चुप कराना भी, जो हिन्दुओं को मुसलमानों क्रिश्चियनों के बराबर शैक्षिक, धार्मिक अधिकार देने के लिए विधेयक लाए थे। जिस विधेयक को पास करने में किसी समुदाय की हानि न होती। बस हिन्दुओं को भी वह अधिकार देने की माँग थी जो दूसरों को मिले हुए हैं। इस से निरापद विधेयक नहीं हो सकता, जिसे संघ-भाजपा नेतृत्व ने बलपूर्वक रोक दिया। पर उन के तमाम सांसद चुप रहे! निस्संदेह, देश के लिए नीति-विमर्श का जो सर्वोच्च स्थान है, वहीं सन्नाटा हो जाना अशुभ लक्षण है। जहाँ जानकारों, विचारशीलों को होना चाहिए, वहाँ भेड़-बकरियों सा दृश्य अनिष्टकर है।
यह सभी घटनाक्रम एक ही पैटर्न रेखांकित करते हैं। सेक्यूलर, हिन्दू-विरोधी, देश-हानिकर पैटर्न। अतः यह आशंका कि संघ परिवार का नेतृत्व नैतिक रूप से लकवाग्रस्त या अदृश्य बेड़ीबद्ध हो चुका है, साधार है। संघ भाजपा के विचारवान लोगों को समय रहते यह आशंका दूर करने पर गंभीरता से सोचना चाहिए।