बेटियों के मायके, खासकर मां के हस्तक्षेप के कारण इतने घर टूट रहे हैं, इतनी आत्महत्या की घटनाएं सामने आ रही हैं कि डर लगता है। अखबार में हर सप्ताह ऐसी घटनाएं पढ़ने को मिल रही हैं। स्वयं मेरे कई जानकारों का घर टूट चुका है। घर तबाह हो चुके हैं। अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं। जहां कई पीढ़ियों से कभी बंटवारा नहीं हुआ, वहां बंटवारे की लकीरें खींची जा रही हैं।
रामायण में राम का वनवास (मंथरा) हो या महाभारत का युद्ध (शकुनी) मायके के हस्तक्षेप का दुष्परिणाम हम देख चुके हैं, फिर भी सीखने को तैयार नहीं हैं।
आजकल तो मोबाइल ही मंथरा और शकुनी की भूमिका में हैं। बहुत पहले आया पंजाब का एक सर्वे भी परिवार के टूटन में मोबाइल और लड़की की मां की भूमिका को उद्धृत कर रहा था। पारिवारिक अदालतें ऐसे केसों से भरती जा रही हैं। बेटी के ससुराल में आज खाना क्या बनेगा यह भी मोबाइल पर मां बता रही हैं!
इस सबके कारण बड़ी संख्या में युवा लड़के अब विवाह से डरने लगे हैं। विवाह के उपरांत दंपत्ति को स्वतंत्र जीवन जीने दें अभिभावक, न कि उनका दम घोंटें। आप अपने बच्चों की खुशियां चाहते हैं तो उनके जीवन में हस्तक्षेप नहीं, बल्कि उन्हें खुलकर जीने दें। स्वतंत्रता से अनमोल और कुछ नहीं है, इसे समझें।
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