मधुरेंद्र कुमार। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर सीबीआई के शिकंजे ने राजनीतिक हलको में तूफान खड़ा कर दिया है। केजरीवाल सहित सिसोदिया और आप नेताओ ने मोदी पर हमले तेज कर दिए है तो वही सीबीआई ने प्रिलिमनरी इन्क्वायरी और जांच की कार्रवाई तेज कर दी है।
लेकिन हम यहाँ राजनीति से अलग हटकर पहले केस के मेरिट की बात कर लेते हैं। दरअसल ये मामला ‘टॉक टू एके’ नामक प्रोग्राम से जुड़ा है। इस प्रोग्राम का जिम्मा या यूं कहें कि काम पीआर एजेंसी परफेक्ट रिलेशन को दिया गया था। ये मामला जांच के दायरे में इसलिए है क्योंकि आरोपो के मुताबिक सरकार की तरफ से परफेक्ट रिलेशन को वर्क अवार्ड बिना टेंडर प्रक्रिया के शर्तो को पूरा किये हुआ।
दरअसल सीएम केजरीवाल को पीएम के ‘मन की बात’ के तर्ज पर ‘टॉक टू एके’ करने को सुझा और फिर आनन-फानन में काम शुरू हो गया है। इस काम की अनुमानित लागत 1.5 करोड़ थी। फाइल डीआईपी से बनी और 1.5 करोड़ के बजट की ये फाइल फाइनांस सेक्रेटरी के टेबल जा पहुची।सूत्रों के मुताबिक उस वक़्त के फाइनेंस सेक्रेटरी धर्मेन्द्र शर्मा ने न सिर्फ फाइल को रिजेक्ट किया बल्कि उस पर नोटिंग भी की। नोटिंग में रूल बुक को धत्ता बताने और बिना निविदा की प्रक्रिया के परफेक्ट रिलेशन को 1.5 करोड़ के काम पर आपत्ति जाहिर करते हुवे इसे विजिलेंस जांच का मामला भी लिख डाला। इस रिजेक्ट फाइल पर मोर्चा संभाला डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने और अपने मंत्री होने के अधिकार का इस्तेमाल करते हुवे उन्होंने वर्क अवार्ड किया साथ ही बजट भी सैंक्शन कर दिया। बाद में इसकी स्वीकृति कैबिनेट से भी ली गयी।
अपार बहुमत की सरकार से गुस्ताखी का खामियाजा फाइनेंस सेक्रेटरी को भुगतना पड़ा, उन्हें लो प्रोफाइल पोस्ट पर ट्रांसफर कर दिया गया। इस घटना के ठीक बाद हाई कोर्ट से एक फैसला आया जिसके मुताबिक एलजी के पावर को फिर से परिभाषित किया गया। एलजी फॉर्म में आये और उन्होंने सभी विभागों को आदेश दिया की अपने फाइल एलजी हाउस भेजें। एलजी ने शुंगलू कमेटी की गठन की जिसे सरकार के फाइल वर्क को स्कैन करने का काम मिला। और इस स्कैनिंग में 7 मामले प्रकाश में आये जिसमे ये भी शामिल था।
एलजी के बॉस होते ही धर्मेन्द्र शर्मा विजिलेंस सेक्रेटरी बना दिए गए और साथ में जिम्मा जीएडी का भी मिल गया। इधर शुंगलू कमेटी ने जिन फाइल पर सवाल उठाये उसे एलजी हाउस ने विजिलेंस को भेज दिया। निविदा की प्रक्रिया में खामी से धर्मेन्द्र शर्मा स्वयं अवगत थे और आख़िरकार ये फाइल विजिलेंस से सीबीआई को बढ़ा दी गयी। अब सीबीआई इस पर प्रिलिमनरी इन्क्वारी कर रही है।
मेरिट ऑफ केस साफ़ है कि सरकार की तरफ़ से टेंडर प्रोसेस को ताख पर रखकर 1.5 करोड़ का काम पीआर एजेंसी परफेक्ट रिलेशन को दिया गया जो गैरकानूनी है और सवालो में है! हम ये भी बता दे की सरकार में 1 लाख से ऊपर बजट के किसी भी काम के लिए टेंडर जारी करना आवश्यक होता है। और काम उसी कंपनी या एजेंसी को मिलता है जो न्यूनतम राशि पर काम की गारंटी दे, इसे प्रायर अप्रूवल कहते है। दूसरा तरीका है एक्स पोस्ट फैक्टो अप्रूवल जिसका इस्तेमाल आपात स्थिति में होता है और सरकार कैबिनेट अप्रूवल के जरिये बिना टेंडर बजट अलॉट कर सकती है,किसी खास एजेंसी को काम दे सकती है।
मौजूदा स्थिति में विजिलेंस और सीबीआई की तरफ से सवाल, टेन्डर को लेकर लाजमी है। 1.5 करोड़ के काम पर भरस्टाचार की तलवार खड़ी है। जवाब सरकार के पास भी है जो एक्स पोस्ट फैक्टो अप्रूवल का हवाला दे सकती है लेकिन इसकी जरुरत को साबित करना एक बड़ी चुनौती होगी।
बहस इस बात पर भी होगी की फाइनेंस सेक्रेटरी के फाइल रिजेक्ट करने के बाद फाइल सीधे कैबिनेट गयी थी या फिर उससे पहले डिप्टी सीएम ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर अप्रूवल दे दी। कई सवाल और पेंच ऐसे है जो क़ानूनी है, रूल ऑफ़ लॉ से जुड़े है और शायद इसकी राजनीतिक व्याख्या चाहे जो पर क़ानूनी व्याख्या से जरूर भिन्न लगती है।
साभार: मधुरेन्द्र के फेसबुक वाल से
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