Sonali Misra. उत्तराखंड से वामपंथी पत्रकार दिनेश मानसेरा की मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार पद से विदाई हो गयी। यद्यपि नाखून कटाकर शहीद दिखाने का प्रयास किया गया, कि एक भावुक अपील की कि जो निर्णय था वह मुख्यमंत्री जी का था और उनका उसमें कोई हाथ नहीं था, और चूंकि उनका विरोध हो रहा है तो वह ऐसे कैसे लोगों के बीच कैसे काम कर पाएंगे, इसलिए वह पद अस्वीकार कर रहे हैं। हालांकि नियुक्ति निरस्त होने का शासनादेश भी जारी हो गया था, इसलिए यह पोस्ट केवल और केवल अपना चेहरा छिपाने की कोशिश भर थी, पर अफ़सोस वह भी नहीं हो सका!
उनकी यह पोस्ट मात्र मित्रों के लिए है तो अब दिखाई नहीं दे रही है। परन्तु इस पत्र की भाषा ऐसी है जैसे उन्होंने त्याग किया हो और भाजपा के लिए वह एक अनमोल रत्न हैं। जबकि मजे की बात यह है कि इस पत्र में उन्होंने शोर मचाने वाले भाजपा समर्थकों को ही निशाने पर लिया है, जो उन्हें जानते नहीं हैं। सही बात है, काम करने वाला आपको नहीं जान पाएगा, हाँ, नेटवर्क बनाने वाला आपको अवश्य जानेगा क्योंकि अपुष्ट सूत्रों के अनुसार आप हर विचारधारा के पत्रकारों के लिए पूरे उत्तराखंड में होटल, गेस्ट हाउस आदि की सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था करते हैं। तो भाजपा का आम समर्थक कैसे आपको जान पाएगा? क्योंकि वह तो वही मिडल क्लास है, जिसे आप भक्त कहते हैं!
आप बाबा रामदेव के विरोध की आड़ में भगवा और योग दोनों पर प्रश्न उठाते हैं और भाजपा का आम समर्थक भगवा से प्रेम करता है, ऐसे में वह आपको कैसे जान सकता है? सही में आपको जानने वाले तो बड़े बड़े पत्रकार लोग हैं, जो भाजपा की बुराई करते हैं, जम जम कर और आम आदमी पार्टी के सांसदों की प्रशंसा में अपने पन्ने रंगते हैं। सही में आपको वह व्यक्ति कैसे जान पाएगा, जिसने अपनी पॉकेट मनी से नेट पैक रीचार्ज कराया है! और आपको वह समर्थक कैसे जानेगा जिसने भाजपा और मोदी जी के लिए अपने घरवालों तक से नाते तोड़ लिए हैं। पर हाँ आपको वह लोग पक्का ही जानेंगे जो भाजपा से नफरत करते हैं। जैसे एक पत्रकार हैं अपूर्व जोशी जी, हिंदी में पाखी नामक साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन करते हैं एवं सन्डेपोस्ट के साथ जुड़े हुए हैं।
उन्होंने बहुत मार्मिक अपील की थी कि दिनेश जी को एक बार सोचना चाहिए। अब मैं यह सोचने में विफल हूँ कि भाजपा से हद तक नफरत करने वाले पत्रकार, योगी जी को कोसने वाले पत्रकार, यहाँ तक कि अपनी कॉल पर उन्हें उत्तर न देने वाले नॉएडा के सांसद डॉ. महेश शर्मा को अपनी वाल पर गाली दिलवाने वाले पत्रकार अपूर्व जोशी, क्यों दिनेश मानसेरा से यह अपील कर रहे हैं कि वह पद न छोड़ें?
क्या इसलिए क्योंकि उनकी पाखी पत्रिका के लिए राजस्व के स्रोत सूख गए हैं? न न, यह हम नहीं कह रहे, यह वह स्वयं कह रहे हैं, हाँ, बाद में वह यह कहने लगे हैं कि पाखी वाले आय के स्रोत उन्होंने कोरोना के लिए लड़ने में लगा दिए हैं। क्या सच है वही जानें? पर मन में यह प्रश्न तो उठता ही है कि एक ओर आपको भारतीय जनता पार्टी से इतनी दिल से नफरत है और दूसरी ओर आप दिनेश मानसेरा को प्रेरित कर रहे हैं कि वह पद न छोड़ें? भाजपा से नफरत परन्तु भाजपा सरकार में प्रभावशाली पद से प्रेम? यह समझ नहीं आया!
यद्यपि बाद में उन्होंने कहा कि सूखे गए स्रोतों को वह कोविड 19 के लिए प्रबंधन में प्रयोग कर रहे हैं।
नॉएडा के सांसद के प्रति विचार देखिये:
लेकिन उसी वाल पर उन्हीं के प्रगतिशील मित्र उनकी ही इस आदत पर कि अपूर्व ही फोन नहीं उठाते, लिखते हैं:
खैर, वह प्रगतिशीलों की बात है! जैसे भाजपा का समर्थक दिनेश मानसेरा को नहीं जानता, वैसे ही वह इनसभी को नहीं जानता! भाजपा का समर्थक इन सभी प्रगतिशीलों की दृष्टि में निकृष्ट कीट है, जिसे वह जब चाहें मसल सकते हैं।
खैर! तो वह अपूर्व जोशी, जो भाजपा के वर्तमान केन्द्रीय नेतृत्व के प्रति घृणा से भरे हुए हैं, और उसे असफल साबित कर चुके हैं:
वह उसके जाने की कामना तो कर ही रहे हैं, और साथ ही वह उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के विषय में झूठी खबर भी शेयर कर रहे हैं, जिसमें न केवल झूठ बल्कि हिन्दू आस्था के एक बड़े स्तम्भ “गौ” के प्रति घृणा परिलक्षित हो रही है:
जबकि सच यह था कि योगी आदित्यनाथ जी की सरकार ने गौ शाला के कर्मचारियों के लिए आदेश दिए थे
भाजपा और भाजपा के नेताओं के प्रति घृणा से भरे अपूर्व जोशी आखिर उत्तराखंड के ऐसे मुख्यमंत्री के लिए प्रेम से भर गए हैं कि उन्हें सही सलाहकार मिले, इस फ़िक्र में डूब गए?
इसमें भी अपूर्व जोशी जी ने भाजपाइयों को ही मूर्ख कहा है।
अर्थात जो बेचारे सरकार बनवाने के लिए अपना घर बार छोड़ें, विचार के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दें, वह तो इन लोगों के नजर में मूर्ख हैं और भाजपा को गाली देने वाले लोग महान हैं? यह परिभाषा किसने तय की?
क्या अब भाजपा को गाली देने वाले यह निर्धारित करेंगे कि भाजपा की सरकार में किसे पद में रहना चाहिए और किसे नहीं? और भाजपा के समर्थक मूर्ख की पदवी पाएंगे? बहुत बड़ी विडंबना है! तभी यह लोग भाजपा समर्थकों को गाली देते हैं क्योंकि यह जानते हैं कि सिस्टम में यही हैं, सरकार किसी की भी हो!
पर आगे बढ़कर और देखने पर ट्विटर पर कांग्रेस की नेता भी यह मानती हैं कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार को अपना पद नहीं छोड़ना चाहिए:
वह दिनेश मानसेरा की प्रशंसा कर रही हैं।
इसके अतिरिक्त कई अन्य कथित निष्पक्ष लोग भी दिनेश मानसेरा की प्रशंसा कर रहे हैं। पर एक बात समझ नहीं आती है कि जो लोग भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं योगी जी की निंदा करते हैं, उनकी हद से अधिक आलोचना करते हैं, वह अचानक से ही भाजपा सरकार में पद के लिए क्यों लालायित हो जाते हैं?
अब लोग कह रहे हैं कि उन्होंने अपने मन से यह पद छोड़ा है! देखिये, यह फेस सेविंग तकनीक है। यदि उन्हें पद छोड़ना ही होता तो वह लेते ही नहीं! ऐसा नहीं होगा कि उनसे बिना पूछे यह निर्णय लिया होगा, और ऐसा भी नहीं है कि उनके कथित मित्रों को यह नहीं पता होगा कि उनके मित्र मुख्यमंत्री के सलाहकार होने जा रहे हैं!
नैतिकता क्या होती है, वह तो इन पत्रकारों को भूल ही जाना चाहिए क्योंकि यहाँ पर सब कुछ सम्बन्धों के आधार पर ही होता है। जैसा अपुष्ट सूत्र बताते ही हैं कि हर विचार के पत्रकार के लिए पूरे उत्तराखंड में आराम से रहने और टिकने की व्यवस्था दिनेश मानसेरा के इशारे पर हो जाती है। क्या यही कारण है कि हर विचार के पत्रकार उत्तराखंड में घूमने के दौरान उन्हें ही आभार व्यक्त करते हैं? और यही कारण है कि फायदा न उठाने वाले बेचारे मूर्ख रह जाते हैं और नरेंद्र मोदी को गाली देकर आप भाजपा में पद पा सकते हैं?
खैर! यह अध्याय यहाँ पटाक्षेप हुआ है! परन्तु यह मामला इसलिए रोचक हुआ क्योंकि एक संघी (जैसा उनके पुत्र ने घोषित किया) के लिए भाजपा विरोधी पत्रकार एवं उत्तराखंड में नेता प्रतिपक्ष डॉ। इंदिरा हृदयेश भी मैदान में उतर आई हैं! और भाजपा के मुख्यमंत्री का मीडिया सलाहकार कौन हो, इसे वामपंथी और कांग्रेसी तय करेंगे और भाजपा समर्थक बाहर बैठकर तलाई बजाएंगे!
जो लोग कल से दिनेश मानसेरा को संघी साबित कर रहे थे, क्या वह यह बताएंगे कि इन्होनें विनोद दुआ के खिलाफ कुछ बोला कभी? क्या इन्होनें वामपंथी झूठ के विषय में लिखा? मुझे पिछले कुछ वर्षों से ऐसा कुछ दिखा नहीं, इसलिए मैं पूछ रही हूँ? क्या इन्होनें कुम्भ के विषय में मिथ्या जानकारियों का विरोध किया? शायद नहीं! क्या कोई शाखा जाने वाला संघी ऐसा कर सकता है? या फिर बिना शाखा जाए भी कोई संघी हो सकता है? या फिर संघी होने का कोई शॉर्टकट है? यह समझ नहीं आ रहा है!
इसे नेटवर्क और इकोसिस्टम कहते हैं कि आप अपने मंच पर धुर वामपंथियों को स्थान दें और आपको आपका बेटा संघी बताए, यह सभी को साधने की कला है और यही पर भाजपा समर्थक मात खाते हैं